जनादेश की बेहतर डिलीवरी के लिए शिवराज की विदाई उचित फैसला

शिवराज जी की खैरात बांटकर सत्ता बटोरने वाली आत्मकेन्द्रित शैली की विदाई प्रदेश के लिए अच्छा संकेत है.


-आलोक सिंघई-
भारतीय जनता पार्टी की डॉक्टर मोहन यादव सरकार ने अभी तक अपना मंत्रिमंडल घोषित नहीं किया है। चुनाव नतीजों के इक्कीस दिन बीत चुके हैं लेकिन आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा कोई चूक नहीं करना चाह रही है। शिवराज की सत्ता के नजदीक रहकर उपकृत होता रहा एक बड़ा धड़ा ये कह रहा है कि शिवराज जी जैसे राजनेता को कमतर आंकना उचित नहीं है। वे एक आलराऊंडर खिलाड़ी थे उन्हें जबरन पेवेलियन में भेज दिया गया है। कांग्रेस के गुंडों की तरह शिवराज और उनके गुंडे बन चुके मंत्रियों ने भाजपा संगठन को आंखें दिखाना शुरु भी कर दी हैं। जबकि भाजपा का राष्ट्रीय संगठन जिस कार्पोरेट संस्कृति का अनुसरण कर रहा है उसमें चेहरे से ज्यादा अंकों का महत्व है । जिसने सेवा कार्य में ज्यादा अंक जीते हैं उसे कमान थमाई जा रही है। यही फार्मूला अपनाकर तीनों राज्यों में नए नेतृत्व को अवसर दिया गया है। कांग्रेस संस्कृति की घिसी पिटी परिवारवादी अवधारणा को छोड़कर ही भाजपा आज कार्यकर्ताओं की आशा का दल बनकर उभरी है। मध्यप्रदेश में तो कार्यकर्ताओं की एक बड़ी जमात बरसों से सत्ता की बाट जोह रही है ऐसे में शिवराज की विदाई हो या मंत्रियों की संभावित विदाई उसे देखने की दृष्टि बदलने का समय आ गया है।


दरअसल जब हम मानना शुरु कर देते हैं जो जानने की वैज्ञानिक दृष्टि लुप्त प्राय हो जाती है। महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने हनुमानजी का आवाहन कर उनको रथ के ऊपर पताका के साथ विराजित किया। अर्जुन का रथ श्रीकृष्ण चला रहे थे और शेषनाग ने पृथ्वी के नीचे से अर्जुन के रथ के पहियों को पकड़ा था, जिससे रथ पीछे न जाए। इतना सब कुछ अर्जुन के रथ की रक्षा के लिए भगवान ने व्यवस्था की थी।


महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद अर्जुन ने भगवान से कहा पहले आप उतरिए मैं बाद में उतरता हूं, इस पर भगवान बोले नहीं अर्जुन पहले तुम उतरो। भगवान के आदेशनुसार अर्जुन रथ से उतर गए, थोड़ी देर बाद श्रीकृष्ण भी रथ से उतर गए, तभी शेषनाग पाताल लोक चले गए। हनुमानजी भी तुरंत अंतर्ध्यान हो गए। रथ से उतरते ही श्रीकृष्ण अर्जुन को कुछ दूर ले गए। इतने में ही अर्जुन का रथ तेज अग्नि की लपटों से धूं-धूं कर जलने लगा। अर्जुन बड़े हैरान हुए और श्रीकृष्ण से पूछा, भगवान ये क्या हुआ!


कृष्ण बोले- ‘हे अर्जुन- ये रथ तो भीष्मपितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण के दिव्यास्त्रों के वार से बहुत पहले ही जल गया था, क्योंकि पताका लिए हनुमानजी और मैं स्वयं रथ पर बैठा था, इसलिए यह रथ मेरे संकल्प से चल रहा था। अब जब कि तुम्हारा काम पूरा हो चुका है, तब मैंने उसे छोड़ दिया, इसलिए अब ये रथ भस्म हो गया।’


व्यक्ति को लगता है कि उसके प्रभाव, बल, बुद्धि से सब हो रहा है, लेकिन जीवन में ऐसा बहुत कुछ होता है जो प्रभु कृपा या गुरु कृपा से हो रहा है, पर हमारा अहंकार कृपा को मानने को तैयार नहीं होता, जिस कारण अहंकार बढ़ता जाता है।ऐसा ही कुछ शिवराज सिंह चौहान और उनके समर्थकों के साथ हो रहा है। शिवराज जी के नेतृत्व में तो भाजपा सरकार पिछला चुनाव हार चुकी थी। खुद शिवराज जी सार्वजनिक तौर पर बोल चुके थे कि मैं मुक्त हुआ। ये अलग बात है कि किसी नए ब्रांड की तैयारी न होने की वजह से कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद शिवराज जी को जवाबदारी सौंपी गई थी। ये शिवराज जी भी अच्छी तरह जानते थे कि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जरूर जा रहा है लेकिन उन्हें सत्ता की बागडोर पार्टी के सुपुर्द करनी है। यही वजह है कि वे प्रदेश के कर्ज लिए धन से चलाई जा रहीं योजनाओं का श्रेय बटोरने का प्रयास करने लगे थे उन्हें लगता था कि जनता में उनकी लोकप्रियता को देखकर भाजपा हाईकमान हमेशा की तरह एक बार फिर लाचार हो जाएगा और मजबूर होकर उन्हें ही एक बार फिर प्रदेश की बागडोर सौंप देगा।


यथार्थ तो ये है कि शिवराज की सत्ता काफी पहले ही विदा हो चुकी थी। वे तो सत्ता माफिया और चमचों की फौज के सहारे जैसे तैसे अपना काम चला रहे थे। शिवराज का कार्यकाल राज्य के इतिहास में मजबूरी का काल कहा जाएगा। जिस तरह से सत्ता पर शिव राज की ताजपोशी हुई और जिस तरह उन्होंने अपना एकछत्र साम्राज्य स्थापित करने के लिए पार्टी के स्वाभाविक नेतृत्व की नर्सरी को मटियामेट किया उससे पार्टी के भीतर बड़ा आक्रोश फैला चुका था।चुनाव जीतने की मजबूरी के चलते कार्यकर्ताओं ने चुप्पी साध रखी थी। भाजपा संगठन के सख्त तेवरों और उमा भारती की राजनीतिक दुर्दशा को देखकर कोई भी नया क्षत्रप खड़ा नहीं हो सका था। खुद मोहन यादव भी सत्ता सिंहासन के लिए अपनी जमात नहीं खड़ी कर पाए। आज भी उन्हें मालूम है कि यदि उन्होंने किसी लाबी का सहारा लेकर अपनी मनमानी की तो पार्टी के भीतर मजबूत हो चुके कई कार्यकर्ता उन्हें बर्दाश्त नहीं करेंगे। यही वजह है कि उन्हें अपना मंत्रिमंडल घोषित करने में देरी हो रही है। भाजपा हाईकमान ने राज्यों की सत्ता में मनमानी रोकने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर प्रशासनिक अफसरों और पुलिस अफसरों की सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया है। यही कुछ वह अपने मंत्रिमंडल में भी करने जा रही है। शिवराज और उनके मंत्रियों को सत्ता के मार्गदर्शन का अवसर जरूर मिलेगा। इससे ज्यादा की उम्मीद वे न रखें तो अच्छा होगा क्योंकि अब प्रदेश को सख्त सर्जरी की जरूरत भी है।

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