पोस्टिंग बेचने वाले संजय चौधरी को बरी करने से खुली पोल

घोड़े की जगह खच्चर खरीदने में कैलाश मकवाना ने संजय चौधरी को बरी किया तो ऊषा राज के घोटाले ने पोल खोल दी.


भोपाल 08 मार्च(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। भैरवगढ़ केन्द्रीय जेल की पूर्व अधीक्षक ऊषा राज से कथित तौर पर तीन करोड़ रुपए लेकर पोस्टिंग देने वाले पूर्व जेल डीजी संजय चौधरी को क्लीनचिट दिए जाने के बाद आईपीएस कैलाश मकवाना अब बुरी तरह उलझ गए हैं। लोकायुक्त संगठन ने संजय चौधरी के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कर जांच फिर शुरु कर दी है लेकिन सीआर के नंबर बढ़वाने के फेर में कैलाश मकवाना की कथित ईमानदारी सवालों के घेरे में आ गई है। लोकायुक्त की जांच रिपोर्ट सामने आ जाने के बाद मकवाना की कथित तौर पर सुधार दी गई गोपनीय चरित्रावली के आदेश जारी करने को अब कोई अफसर राजी नहीं है।


आईपीएस कैलाश मकवाना को पूरा भरोसा था कि वरिष्ठता क्रम में आगे होने की वजह से वे एक बार मध्यप्रदेश के पुलिस मुखिया बन जाएंगे लेकिन लोकायुक्त संगठन से हटाए जाने के बाद अब पूरी न्यायपालिका उन्हें सींखचों में धकेलने में जुट गई है। दरअसल शिवराज सिंह सरकार के कतिपय भ्रष्ट अफसरों की सलाह पर मकवाना को विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त में भेजा गया था। इन भ्रष्ट अधिकारियों के मामले बंद करने की सुपारी लेकर गए मकवाना ने कार्यभार संभालते ही संगठन के रिकार्ड रूम की सफाई शुरु करवा दी। कहा गया कि बरसों पुराना कचरा पड़ा होने से पुलिस की कार्रवाई में व्यवधान होता है। उन्होंने कई लंबित प्रकरणों में भी खात्मा लगाना शुरु कर दिया । उन्हें उम्मीद थी कि यदि कोई शोरगुल नहीं हुआ तो धीरे धीरे फालतू प्रकरण बताकर कई भ्रष्ट अफसरों को भी बरी करवा लिया जाएगा।

इस श्रंखला में मकवाना ने प्रेमवती खैरवार, डीएसपी श्रीनाथ सिंह बघेल, राकेश कुमार जैन, डीएसपी रामखिलावन शुक्ला, मोहित तिवारी, नरेश सिंह चौहान को क्लीनचिट देकर उनके प्रकरण बंद कर दिए। इन प्रकरणों में न तो प्रक्रिया का पालन किया गया, न जांच की गई और न ही लोकायुक्त संगठन के विधि सलाहकारों की टीप ली गई। लोकायुक्त से स्वीकृति का इंतजार भी नहीं किया गया। इस बात से संगठन में पदस्थ विधि अधिकारी(न्यायाधीश) चौंक गए। उनकी अनुशंसा पर लोकायुक्त जस्टिस एनके गुप्ता ने जो जांच कमेटी बिठाई उसने पाया कि सभी प्रकरणों को गैरकानूनी ढंग से बंद किया गया है।


तभी उज्जैन की केन्द्रीय जेल की अधीक्षक ऊषा राज का घोटाला सामने आ गया। उनके संरक्षण में काम करने वाले जेल के सहायक लेखाधिकारी ने लगभग सौ कर्मचारियों के भविष्य निधि खातों से लगभग तेरह करोड़ से ज्यादा रुपया निकाल लिया। इसमें से कुछ रकम उन्होंने अपने खातों में डाली और कुछ रकम ऊषा राज को भेंट की। पुलिस जांच में पता चला कि इसी रकम का एक हिस्सा कथित तौर पर पूर्व डीजी संजय चौधरी को भी पोस्टिंग के एवज में पहुंचाया गया था। इधर जेल डीजी संजय चौधरी के खिलाफ चल रही लोकायुक्त जांच मकवाना ने उनकी बताई कहानी को सच मानकर बंद कर दी ।संजय चौधरी का कहना था कि उनके पास मौजूद आय अधिक संपत्ति उन्होंने घोड़ों की जगह खच्चर बेचकर नहीं कमाई है। उनकी स्कूल मास्टरनी सास ने अपनी करोड़ों रुपयों की चल संपत्ति और सोना अपनी बेटी के बच्चों को गिफ्ट के रूप में दिया है । सागर के एक स्कूल से रिटायर सास के पास इतनी दौलत कभी रही ही नही ये बात सभी जानते थे। इन दिनों इंदौर जेल में बंद ऊषा राज भी सागर की ही मूल निवासी रही है। जब उन्हें उज्जैन की केन्द्रीय जेल भैरवगढ़ में पोस्टिंग दी गई तो विभाग के कई अफसरों ने हो हल्ला भी मचाया था।


अब लोकायुक्त संगठन की जांच कमेटी की अनुशंसा पर जो छानबीन शुरु हुई है उसमें संजय चौधरी तो झमेले में पड़े ही हैं साथ में कैलाश मकवाना भी उलझ गए हैं। खुद को कथित तौर पर बेगुनाह बताने के लिए मकवाना कह रहे हैं कि उनके पूर्व तीन डीजी संजय राणा, अनिल कुमार, और राजीव टंडन भी संजय चौधरी के प्रकरण को बंद करने की सिफारिश कर चुके थे पर केवल उनकी खात्मा रिपोर्ट को ही गलत ठहराया जा रहा है। दरअसल जांच कमेटी की निगाह में जो तथ्य आए थे उनके आधार पर ही फैसला लेने वाले मकवाना को दोषी पाया गया है। देखना है कि पुलिस मुखिया पद का ये खिलाड़ी कहीं खुद अपराधी न करार दिया जाए।

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