परिवारवाद पर संघवाद की विजय का शंखनाद

शिवराज सिंह चौहान के चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के साथ ही ये भी साबित हो गया है कि मध्यप्रदेश में संघवाद ने परिवारवाद को परास्त कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी की अब तक की विकासयात्रा में ये सबसे महत्वपूर्ण चरण था जिसमें कभी कांग्रेस के सुपरस्टार राजनेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सारी बाधाएं तोड़कर सत्ता की कमान उसे थमाई है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस के जिन 22 पूर्व मंत्रियों और विधायकों ने आगे बढ़कर कुंठित कमलनाथ सरकार के षड़यंत्रों को धराशायी किया वह परिवारवाद पर सबसे प्रभावी प्रहार साबित हुआ। कमलनाथ के नेतृत्व वाली कमलनाथ सरकार ने लगभग पंद्रह महीने के शासनकाल में वैमनस्यपूर्ण तरीके से प्रदेश के विभिन्न वर्गों को प्रताड़ित किया वह अब आपातकाल की तरह एक कलंकित इतिहास बन गया है। कांग्रेस के नेतागण भाजपा के बहाने जनता को गालियां देते रहे उससे मध्यप्रदेश का माहौल कलहपूर्ण बन गया था। आपराधिक वारदातों के बढ़ते आंकड़े और आर्थिक दुर्दशा से मुक्ति का ये स्वप्न इतनी जल्दी साकार हो सकेगा इसका अनुमान शायद भाजपा के शीर्ष नेताओं को भी नहीं था।

शपथ लेने से पहले विधायक दल ने जब शिवराज सिंह चौहान को अपना नेतृत्व सौंपा तब शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं कभी अपनी मां समान पार्टी को कलंकित नहीं होने दूंगा। साथ में उन्होंने दुहराया कि अब हम मिलजुलकर विकास का नया इतिहास लिखेंगे। उनके हर भाषण में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस के विधायकों के प्रति आभार का भाव था। शायद शिवराज सिंह चौहान की यही विनम्रता उन्हें अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के बीच अजात शत्रु बनाती है। यही वजह है कि पिछले विधानसभा चुनावों में माफ करो महाराज का नारा देने वाली शिवराज की भाजपा आज ज्योतिरादित्य सिंधिया से टकराव की वजह नहीं बन रही है।

कांग्रेस के नेताओं को अब भी भरोसा नहीं हो पा रहा है कि उन्होंने अपनी ही कुल्हाड़ी से कैसे अपने ही पैरों को लहू लुहान कर डाला है। दरअसल पिछले पंद्रह सालों के दौरान राजनीति जो करवट ले चुकी है उसका अनुमान बुजुर्ग हो चुके कमलनाथ नहीं लगा पाए थे। उनका राजनीतिक दंभ ये समझने को तैयार ही नहीं था कि किसी विभागीय मंत्रालय की कार्यप्रणाली और प्रदेश के मुखिया की कार्यप्रणाली में भारी अंतर होता है। प्रदेश के मुखिया से लोगों की अपेक्षाएं होती हैं जिन्हें गैरकानूनी तबादले पोस्टिंग की कमीशनखोरी के अलावा भी अन्य साधनों से पूरा किया जा सकता है। कांग्रेस आज भी राबिनहुड की शैली की कबीलाई संस्कृति से बाहर नहीं आ सकी है। नेताओं के इर्द गिर्द बना कांग्रेस का संगठन केवल चंद हजार कार्यकर्ताओं की जरूरतें पूरी करने तक ही सिमटा रहा। जबकि प्रदेश के साढ़े सात करोड़ लोग अपनी अपेक्षाओं के लिए सरकार के प्रति उम्मीदें लगाए बैठे रह गए।

कमलनाथ ने सरकारी तंत्र को अपनी आय का स्रोत मान लिया था।उनका सारा ध्यान सरकारी तंत्र को निचोड़ने में ही लगा रहा। शिवराज सिंह चौहान की विनम्रता को मूर्खता बताने वाले कमलनाथ ने सरकारी तंत्र को जूते की नोंक पर ऱखकर सरकार चलाने का जो प्रयोग किया वह चंद दिनों में ही धराशायी हो गया। अफसरशाही ने कमलनाथ के निर्देशों पर सौ फीसदी अमल शुरु कर दिया और जनहितैषी योजनाओं की समीक्षा सख्ती से कर डाली। नतीजा ये हुआ कि जो योजनाएं जनता के लिए सहारा बनी हुईं थीं वे दूर की कौड़ी साबित होने लगीं। परिवारवाद के एजेंट के रूप में कमलनाथ को गांधी परिवार ने मध्यप्रदेश भेजा था। वे सोनिया गांधी के विश्वसनीय थे इसलिए उन्होंने जागीरदार की तरह पार्टी हाईकमान के लिए चंदा वसूली शुरु कर दी। उनका सारा ध्यान प्रदेश के उस सरकारी तंत्र पर था जिसे राज्य के खजाने से हर महीने तीन हजार दो सौ करोड़ रुपए वेतन के रूप में दिए जाते हैं। अफसरों को टारगेट दिए गए कि उन्होंने टैक्स वसूली का टारगेट पूरा नहीं किया तो उन्हें वेतन नहीं दिया जाएगा। कई विभागों में वेतन बांटने का विलंब शुरु हो गया दो तीन महीनों का वेतन लंबित रहना सामान्य बात हो गई थी। यही वजह है कि कमलनाथ सरकार बड़ी तेजी से अलोकप्रिय हो गई।

शिवराज सरकार ने पंद्रह सालों के प्रयोग के बीच ढेरों ऐसी योजनाएं चालू कीं थीं जिनसे आम जनता को सत्ता में भागीदार बनाया गया था। बेशक वे योजनाएं उत्पादक नहीं थीं लेकिन बाजार व्यवस्था को संतुलित बनाने में उनका योगदान अतुलनीय था। शिवराज की निवृत्तमान सरकार की सबसे बड़ी असफलता ये थी कि इतना लंबा अंतराल सत्ता पर काबिज रहने के बावजूद वह उत्पादकता नहीं बढ़ा पाई थी।इस वजह से हर महीने खजाने पर बोझ बढ़ता जा रहा था। पूर्व वित्तमंत्री राघवजी भाई ने आय को बढ़ाने का जो चमत्कार कर दिखाया था उससे ढेरों योजनाएं शुरु हो पाईं थीं। राघवजी भाई इससे अधिक योजनाएं चालू करने के पक्षधर नहीं थे क्योंकि इससे राज्य का वित्तीय प्रबंधन बिगड़ सकता था। उनकी विदाई के बाद शिवराज ने खजाने की चाभी जयंत मलैया को सौंप दी। मलैया उदार साबित हुए लेकिन इससे खजाना लुट गया। उनकी खजाना खाली है वाली प्रतिक्रिया को कमलनाथ ने सूत्र वाक्य बना लिया और अपने पूरे कार्यकाल में जन प्रतिनिधियों की मांग को शांत करने के लिए खजाना खाली है का राग अलापते रहे। जबकि उनके स्वयं के जिले छिंदवाड़ा में योजनाओं की बाढ़ लग गई। लगभग एक सौ तेरह हजार करोड़ रुपए की योजनाएं अकेले छिंदवाड़ा जिले में शुरु कर दीं गईं। इससे विधायकों में असंतोष फैल गया।

ज्योतिरादित्य से कोटे से सत्ता में आए विधायकों की बैचेनी की वजह भी यही थी कि अफसर शाही उनकी बात ही नहीं सुन रही थी। कमलनाथ ने अफसरों की तैनाती की जवाबदारी दिग्विजय सिंह को ही सौंप दी थी। यही कहा जाने लगा था कि पर्दे के पीछे सरकार दिग्विजय सिंह चला रहे हैं। ये सच भी था, मंत्रालय से लेकर जिलों तक की कमान दिग्विजय़ सिंह के इशारे पर ही दी गई थी। उनके बेटे जयवर्धन सिंह को जिस तरह नगरीय प्रशासन विभाग देकर कमाई के अवसर दिए गए उससे विधायकों में असंतोष बढ़ गया। चुनाव के दौरान बेरोजगार युवाओं को चार हजार रुपए का बेरोजगारी भत्ता देने का झूठा वादा दिग्विजय सिंह की चतुराई भरी चाल थी जबकि सत्ता में आने के बाद वह योजना चालू ही नहीं की जा सकी।इतनी शर्ते लगाईं गईं कि योजना का लाभ युवाओं को दिया ही नहीं जा सकता था। जबकि निजी कमाई के लिए शहरों के मास्टर प्लान धड़ाधड़ लाए गए और शहरों में अराजकता का माहौल बना देने की तैयारी शुरु हो गई। यदि ये तख्तापलट न की जाती तो शहरों के रहवासी इलाकों में आम नागरिकों का रहना भी दूभर हो जाता।

कमलनाथ सरकार ने जिस तरह राज्य को चंद परिवारों तक समेटने की मुहिम चलाई उसका लाभ उनके चंद उद्योगपति मित्रों को तो मिलना शुरु हो गया लेकिन आम जनता के पाले में सिर्फ प्रताड़ना आई। जनता को लूटकर परिवार को संवारने की ये शैली लोकतांत्रिक लगे इसके लिए कर्जमाफी और सस्ती बिजली का शिगूफा इस्तेमाल किया गया। इन योजनाओं का शोर तो बहुत हुआ लेकिन आम जनता फायदे का इंतजार करती रही। जिन आदिवासियों को बरगलाकर कमलनाथ ने उनकी बहुलता वाली सीटें जीतीं थीं जल्दी ही उनकी भी समझ में आ गया कि वे ठगे गए हैं। ब्राह्रमणों को बरगलाकर जिस सवर्ण समाज पार्टी ने शिवराज के बयान कोई माई का लाल आरक्षण समाप्त नहीं कर सकता को बदनामी का हथकंडा बनाया था उन्हें भी जल्दी अहसास हो गया कि उन्होंने कितनी बड़ी गलती की है।

दरअसल आजादी की चाहत में देश ने कांग्रेस के जिस परिवारवाद को स्वीकार किया था उसे हटाने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। कांग्रेस जिस धर्मनिरपेक्षता की आड़ में टुकड़े टुकड़े गेंग बनकर समाज को विभाजित करती रही वहीं संघ समाज को जोड़ने की मुहिम चलाता रहा। संघ के करोड़ों कार्यकर्ताओं ने एक राष्ट्र के विचार के लिए अपने जीवन के स्वर्णिम बसंत न्यौछावर कर दिए हैं। इसके बाद भी उन्हें लांछन और बदनामियां ही झेलनी पड़ीं। बरसों के प्रयासों के बाद जब ज्योतिरादित्य जैसे युवा सितारे ने भाजपा में शामिल होकर संघ के सामाजिक सौहार्द्र के विचार पर अपनी मुहर लगाई है तब जाकर भारतीय जनता पार्टी को वैचारिक विजयश्री का आश्वासन मिल सका है। जो लोग ज्योतिरादित्य को गद्दार या अवसरवादी बताकर लांछित कर रहे हैं उन्हें जल्दी ही समझ में आ जाएगा कि लोगों को जोड़ने का ये विचार कैसे सबल राष्ट्र का प्रणेता साबित होता है। कोई लीडर कैसे समाज को हितकारी लक्ष्यों की ओर प्रवृत्त कर देता है।फिलहाल तो शिवराज सरकार को अपने पुराने ढर्रे से बाहर निकलकर अपनी पार्टी की मौलिक शैली का उद्घोष करना होगा। यही शैली संघवाद की विजयपताका साबित होगी।

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