छिंदवाड़ा मॉडल का फटा ढोल

कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस के जिन सयाने रणनीतिकारों ने छिंदवाड़ा मॉडल का ढोल पीटा था वे अब कहां हैं। जब छिंदवाड़ा माडल की कहानियां सुनाते कमलनाथ की कुंठित सत्ता का ढोल सरे चौराहे फट गया है तब वे सलाहकार जनता के सामने आने का साहस क्यों नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस की सरकार के पतन के लिए असली जिम्मेदार तो वे ही हैं जिन्होंने कमलनाथ की उद्योगपति वाली छवि गढ़ने का काम किया था। नेहरू गांधी परिवार के कारिंदे के रूप में कमलनाथ बेहद असफल मुख्यमंत्री साबित हुए हैं। उन्होंने दस जनपथ के लिए रसद पानी जुटाने में भले ही सफलता पाई हो लेकिन मध्यप्रदेश की धरती पर वे एक लुटेरे शासक के रूप में ही पहचाने जाएंगे।सारी योजनाएं छिंदवाड़ा ले जाने और अन्य क्षेत्र के विधायकों के लिए खजाना खाली बताने की उनकी कंजूसी ने विधायकों को बेचैन कर दिया था। आते ही तबादलों और पोस्टिंग का जो ओछा कारोबार उन्होंने शुरु किया उसने प्रदेश भर में कोहराम मचा दिया।कांग्रेस की पिछली सरकारों ने ही अनाप शनाप नौकरियां बेचकर मध्यप्रदेश के वित्तीय प्रबंधन का कबाड़ा निकाला था। बाद की भाजपा सरकारों ने भी उसी माडल की लीक पकड़ ली। शिवराज सरकार के सलाहकार दिग्विजय सिंह और मुकेश नायक जैसे कांग्रेसी ही रहे हैं। लूट का जो साम्राज्य शिवराज सिंह चौहान की हवा हवाई शासनशैली की वजह से पनपा उससे प्रदेश में असंतोष को जगह बनाने का अवसर मिला था। शिवराज सिंह चौहान बेहद सफल कार्यकर्ता और प्रचारक रहे हैं।उन्होंने जनता के बीच लोकप्रियता भी पाई। इसके विपरीत वे कई मायनों में असफल भी साबित हुए। उन्होंने वोटरों की खेती की। तालियां बजवाने के लिए खैरातें बांटीं लेकिन वे प्रदेश को आत्मनिर्भर नहीं बना सके। इसे गरियाते कमलनाथ तो और भी फिसड्डी साबित हुए।उन्होंने आते ही जो झांकी पेली कि लोगों को लगा अब प्रदेश की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। प्रदेश के मिलावटखोरों के खिलाफ शुद्ध के लिए युद्ध करते कमलनाथ का स्वागत किया गया लेकिन वे व्यापारियों के लुटेरे साबित हुए। उनके कार्यकाल में व्यापारियों से जो लूट खसोट की गई वह दर्दनाक थी। इसका सीधा असर प्रदेश की जनता पर पड़ा। व्यापारियों ने जरूरी सामानों की कीमतें बढ़ा दीं। अफसरों ने वसूली बढ़ा दी लेकिन मिलावटखोरी जस की तस रही। शहरों के मास्टर प्लान में अराजकता फैलाने के लिए भी कमलनाथ सरकार को कभी माफ नहीं किया जा सकेगा। रहवासी इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियां शुरु कर देना, अवैध संपत्तियों को रिश्वत लेकर वैध बना देना कमलनाथ के कारिंदों के लिए बाएं हाथ का खेल था। जिस तरह मंत्रालय के पांचवे तल पर कमलनाथ का गोपनीय आफिस चलता था उसे देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता था कि यहां कोई न कोई गलत काम जरूर हो रहा है। जनता से छिपाकर आखिर वे कौन सी जनता का भला करना चाह रहे थे। उनके कार्यकाल के फैसलों की विधिवत समीक्षा होनी चाहिए।इनमें से बहुत से फैसले निरस्त करने पड़ेंगे। प्रदेश की कानून व्यवस्था की स्थिति हो या वित्तीय व्यवस्था सभी की समीक्षा नए सिरे से करनी होगी तब जाकर पटरी से उतरी प्रदेश की गाड़ी को सीधा किया जा सकेगा। छिंदवाड़ा माडल का फटा ढोल तो सबने देख लिया है अब उस ढोल की पोल भी लोगों को दिखानी पड़ेगी। प्रयास करना होगा कि भविष्य में कोई राजनीतिक दल या सत्ता के दलालों का कोई गिरोह मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज न हो सके। इसके लिए मौजूदा दलालों की फौज का सफाया करना जरूरी होगा।

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