धन प्रबंधन से पहले देखें कुंडली

पं. अशोक पंवार मयंक

धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष ये चार पुरुषार्थ हैं। अर्थ और काम भौतिक हैं,तथा मनुष्यों को इनकी आकांक्षा होना स्वाभाविक है। ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होगा जो धन प्राप्ति की आकांक्षा न रखता हो। धन के बिना जीवन नीरस हो जाता है। जिनके पास धन होता है वे मजे में रहते हैं,एवं अपने नाती पोतों के लिए धन जोड़ते चले जाते हैं। धन हर एक कार्य कर देता है। ज्योतिष की दृष्टि से हम इसी विषय की चर्चा यहां करेंगे।

धन स्थान का कुंडली में दूसरा घर होता है,एवं प्राप्ति(लाभ) स्थान 11 वें भाव को कहते हैं।जहां लाभ स्थान उत्तम होगा वहीं धन की बचत होगी। खर्च की स्थिति जानने के लिए कुंडली में 12 वां घर होता है। इसके साथ ही अन्य घरों का महत्व संक्षेप में निम्नानुसार है।

1.लाभ स्थान में स्वग्रही गुरु और साथ में नेप्च्यून हो तो जातक की(जिसकी जन्म कुंडली हो) आय उत्तम होती है।

2.लाभ स्थान में गुरु अकेला हो, तो जातक की आय स्थिर होती है। अगर गुरु के साथ शुक्र, बुध अथवा ग्यारहवें भाव का स्वामी हो तो आवक थोड़ी होती है।

3.ग्यारहवें भाव में गुरु चंद्र की युति हो तो वारिसनामा मिलता है,तथा गुरु व चतुर्थेश हो, तो भी जातक धन संपत्ति का वारिस बनता है।

4.धनेश, भाग्येश, लाभ स्थान में हो तो जातक की आवक बहुत होती है। अगर धनेश भाग्येश साथ में होकर 11 वें स्थान में हो तो जातक अत्यंत धनवान होता है।

5.धनेश, भाग्येश में से कोई भी एक ग्रह लाभस्थान में हो और दूसरा बारहवें भाव में हो तो जातक की आर्थिक स्थिति सामान्य होती है।

6.ग्यारहवें भाव पर बारहवें भाव के स्वामी की दृष्टि पड़े तो साधारण आय होती है।

7.लाभेश छठे, आठवें या बारहवें स्थान में हो तो दूषित होने के कारण जातक की आर्थिक आय मध्यम होती है।

8.ग्यारहवें स्थान का स्वामी शत्रु स्थान में या नीच का हो तो जातक की आय घटती है।

9.ग्यारहवें भाव का स्वामी दशम भाव में हो तो आवक कम रहती है।

10.ग्यारहवें भाव का स्वामी बारहवें भाव में हो या दशम भाव में हो तो भी आय से खर्च अधिक होता है।

उपर्युक्त दस बिंदुओं में से आय कैसी होगी ये दर्शाया गया है। बचत बैंक बैलेन्स होगा या नहीं इसकी जानकारी इस प्रकार है।

1.धन स्थान से आवक नहीं देखी जाती लेकिन इसे धन संचय या बैंक बैलेन्स का स्थान कहते हैं। धन स्थान के साथ बारहवें भाव की स्थिति का अध्ययन करना जरूरी है। क्योंकि बारहवां भाव जातक का है। आवक-जावक में से जो पैसा बचता है वही बचत होती है।

2.धन स्थान में व लाभ स्थान में ये विशेषता है कि गुरु के साथ शुक्र की युति हो तो धन संचय में बाधा आती है। धन स्थान में गुरु हो और शुक्र लाभेश या भाग्येश होकर पड़ा हो अथवा धन स्थान में गुरु लाभ भाव में भाग्येश होकर पडा हो तो धन संचय में खूब वृद्धि होती है।

3.अगर धन स्थान में भाग्य स्थान का परिवर्तन योग हो तो जातक की आय का काफी हिस्सा खर्च होता है। और उसके बाद भी काफी धन अनुपयोगी पड़ा रहता है।

4.धन स्थान का स्वामी गुरु हो और कुंडली में शनि की युति हो अथवा धन स्थान का स्वामी शनि हो और गुरु की युति हो तो उसकी संपत्ति कोई दूसरा नहीं ले सकता। ऐसा जातक धन इकट्ठा करने वाला होता है।

5.धन स्थान का स्वामी पराक्रम में हो तो जातक के पास पराक्रम द्वारा कमाया धन होता है यानि वह स्वप्रयत्नों से धन लाभ पाता है।

6.धन स्थान और पराक्रम स्थान के स्वामी का एक दूसरी राशि में परिवर्तन हो और इस परिवर्तन योग में मंगल ग्रह हो तो जातक के पास धन रहता है और वह कंजूस प्रवृ़त्ति का होता है।

7.धन स्थान का स्वामी कुंडली में पांचवे स्थान में पड़ा हो और शुक्र ग्रह युक्त हो या उस पर शुक्र ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो या मित्र क्षेत्री हो तो उस व्यक्ति के पास अटूट संपदा होने में कोई शक नहीं है।

8.अगर लाभ स्थान में सारे ग्रह पड़े हों एवं आसपास कोई ग्रह नहीं हो तो जातक की आय बहुत कम रहती है। या यूं कहें कि कामचलाऊ के अलावा धन नहीं रहता।

9.धनस्थान का स्वामी कुंडली में लग्न चतुर्थ, सप्तम, दशम यानि केन्द्र में शुभ या मित्र ग्रह की युति में हों तो धन अच्छा जुड़ता है।

धन स्थान व लाभ स्थान के विचार के बाद अब भाग्य स्थान बाकी रह गया है। भाग्य के बगैर सब अधूरा रहता है। अगर आपकी कुंडली में भाग्य स्थान बली न हो तो न तो धन रहेगा न लाभ तो आईए भाग्य के विषय में थोड़ा जान लें।

सर्व प्रथम तो ये जानना आवश्यक है कि भाग्य स्थान का संबंध मात्र धन संपत्ति से नहीं होता इंसान के व्यक्तित्व,यश कीर्ति से भी इसका संबंध है।

नवम भाव को भाग्य भवन कहते हैं। भाग्य का अर्थ धनवान होना नहीं होता बल्कि भाग्य शब्द का क्षेत्र बहुत बड़ा है। भाग्य के बल पर सब कुछ मिलता है, ये बात ध्यान में रखनी चाहिए।

1 . मेष लग्न हो व भाग्य भाव में गुरु व चंद्र की युति हो तो जातक के धार्मिक होने के साथ साथ बाहिरी संबंध उचित होंगे। व माता सुख उत्तम रहता है। विद्या उत्तम होने के साथ साथ पुत्रवान होकर सुख भोगता है। यदि भाग्य भाव में शुक्र हो तो धन संपत्तिवान व स्त्री सुख उत्तम पाता है।

स्त्रियों से लाभ भी मिलता है। अगर मंगल हो व शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ रही हो तो जातक शारीरिक सुख व आयु लाभ पाने वाला होता है। भाईयों का सहयोग उत्तम रहता है,लेकिन मातृ सुख से वंचित भी करता है। इस भाव में चंद्र, गुरु, शुक्र, सूर्य ही उपयुक्त रहते हैं। बाकी सभी ग्रह कुछ न कुछ अनिष्ट कारक ही रहते हैं।

2.यदि जातक की वृषभ लग्न व नवम भाव में बुध पड़ा हो तो वह धन संपत्तिवान होगा। धन व्यापारिक लेखन, या बुद्धि के कार्यों से अर्जित करने वाला होगा। शनि राज्य से लाभ दिलाने वाला होगा। इसी प्रकार जातक को शुक्र भी स्व प्रयत्नों से नाना माया से या कला के क्षेत्र से अर्थालाभ दिलाने वाला होगा। इन ग्रहों की दृष्टि नवम भावपर पड़ रही होगी तो भी ये लाभ दिलाएगा।

3,मिथुन लग्न वालों का भाग्य अधिकतर कष्टप्रद ही रहता है। व बहुत धीमी गति से आगे बढ़ते हैं क्योंकि अष्टम भाव मकर होता है। अतःशनि बाधक ग्रह बन जाता है।

4.कर्क लग्न वाले भाग्यशाली ही होते हैं। यदि गुरु भाग्य भाव में होता तो वह स्वराशि मीन का होता है, व लग्न पर उच्च दृष्टि डालता है। सप्तम पराक्रम भाव पर शत्रु दृष्टि पड़ती है,लेकिन अशुभ फल न मिलकर शुभ फल ही मिलता है। पंचम भाव पर मित्र दृष्टि पड़ने से ये पंचम भाव को अमृतपान कराता है। अतःविद्या – पूजा आदि उत्तम होते हैं। शारीरिक सौंदर्य भी बढ़ता है लेकिन अक्सर इन्हें गंजेपन का भी रोग होता है। ये उच्च पदों पर भी आसीन होते हैं। यदि सूर्य गुरु की युति रही तो राजदूत न्यायाधीश राजनीति में प्रमुख एवं धनवान होते हैं। यदि शुक्र रहा तो इनके पास अटूट धन रहता है। व प्रारंभ से अंत तक धनाड्य रहते हैं। लाभ भी बहुत होकर वाहन अधिपति होते हैं।

5 सिंह लग्न वालों के लिए सूर्य या सूर्य बुध की युति अति उत्तम होती है। ये जातक भी बिंदु क्रमांक चार के विवेचन के समान रहते हैं।

6.कन्या लग्न वालों के लिए शुक्र या चंद्र या फिर शुक्र चंद्र की युति उत्तम रहकर धनवान बनाती है।

7.तुला लग्न वालों के लिए बुध ग्रह उत्तम रहता है। बुध यदि नवम में हो या बारहवें भाव में हो तो भाग्य उत्तम रहता है। उसे बाहर के व्यापार विदेश या व्यापारी बाहिरी संबंधों से लाभ होता है। शनि भी अति शुभ माना जाएगा।

8.वृश्चिक लग्न वालों को गुरु व चंद्र उत्तम बलशाली रहेंगे या इन ग्रहों की दृष्टि पड़ने पर भी भाग्य बलवान माना जाएगा।

9.धनु लग्न वालों को गुरु व सूर्य भाग्यशाली ग्रह होकर भाग्य को बढ़ाने वाले होंगे। मंगल व चंद्र ग्रह भी शुभ रहेंगे।

10 मकर लग्न वालों को शनि व बुध की स्थिति उत्तम भाग्यवर्धक रहेगी। शुक्र भी उत्तम फलदायक होंगे।

11.कुंभ लग्न वालों को शनि शुक्र की स्थिति लाभप्रद होने के साथ भाग्यवर्धक रहेगी।

12.मीन लग्न वालों को गुरु व मंगल की दृष्टि शुभ रहेगी। कहते हैं कि बिन भाग्य के सब सून ,भाग्यहीन व्यक्ति दरिद्र के समान होता है एवं भाग्य का होना धन संपत्ति में चार चांद लगा देता है।

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