जरूरत थी संजीवनी की पूरा पहाड़ उठा लाए सरकार

राजधानी भोपाल में बनने वाले नए मीडिया सेंटर पर कब्जा जमाने के लिए सत्ता माफिया फिर सक्रिय हो गया है।


आलोक सिंघई
चुनाव की बेला में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल में मीडिया सेंटर की आधारशिला रखने जा रहे हैं। भूमिपूजन के इस विशाल समागम में प्रदेश भर से पत्रकारों को ढो ढोकर लाया गया है। होटलों में ठहराया गया है। सरकार ये दर्शाने का जतन कर रही है कि कांग्रेस के बदमिजाज कमलनाथ की तुलना में मौजूदा सरकार पत्रकार हितैषी है।कमलनाथ कांग्रेस के छोटे से कार्यकाल को देखकर ये बात गले भी उतरती है। कमलनाथ ने जिस तरह मीडिया पर लांछन लगाए उसे देखते हुए तो शिवराज सिंह चौहान की भाजपा सरकार पत्रकारों को सम्मान देने वाली सरकार ही नजर आती है। इसके बावजूद उसे चुनाव की बेला में पत्रकार भवन का प्रहसन क्यों खेलना पड़ रहा है। लगातार साढ़े अठारह सालों तक मीडिया पर मोटा बजट खर्च करने वाली भाजपा सरकार को दूरदराज के छोटे पत्रकारों तक का आशीर्वाद क्यों बटोरना पड़ रहा है।पत्रकार खुद हतप्रभ हैं कि अचानक सरकार उन पर क्यों मेहरबान हो गई है।
सत्ताधीशों का लंबा अनुभव रहा है कि चुनाव जिताने वाले अलग होते हैं और सत्ता का सुख लूटने वाले अलग हैं। भाजपा को लंबा शासन करने का अवसर मिला है। इसके बावजूद पिछले चुनावों में कांग्रेस को मिला मत प्रतिशत बताता है कि संगठन, जनता और पत्रकार कोई भी मतदान की आंधी की दिशा नहीं बदल सकते हैं। जनता के बीच से उठने वाली मनोभावों की आंधी जनमत बनाती है और वही सत्ता की असली कुंजी है। पिछले चार कार्यकालों में भाजपा सरकार ने पत्रकारों को कल्पनातीत तरीके से उपकृत किया है। उसका उपकार पाने वाले पत्रकारों की तादाद भी बहुत ज्यादा है। जब मनीष सिंह को जनसंपर्क आयुक्त बनाया गया तो उन्हें आश्चर्य हुआ कि सरकार इतना बडा बजट पत्रकारों पर खर्च करती है फिर भी सरकार के कार्यकलापों को सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करने वाला कंटेट नदारद है। पिछली सरकारों के मंत्रियों, प्रशासकों ने इतने बोगस पत्रकार पाल रखे हैं जिनकी बुद्दि केवल चापलूसी की योग्यता रखती है। जनसंपर्क की भाषा बोलने वाले इन पत्रकारों ने दो दशकों में जन संवाद को इतना भौंथरा बना दिया है कि सरकार पर जनता का नजला गिरना सुनिश्चित है।


चमचों की इस फौज में से असली पत्रकारों को तलाशना और फिर जनहित में उनका उपयोग करना भूसे में सुई तलाशने जैसा कठिन कार्य है। यही सोचकर आयुक्त महोदय ने हनुमान जी वाला फार्मूला अपना लिया। संजीवनी लाने के साथ साथ वे पूरा पर्वत ही उठा लाए हैं । सरकार ने उनके प्रयासों को हरी झंडी दिखाई क्योंकि वह पिछले चुनावों में मिली बारीक हार का जोखिम दुबारा नहीं उठाना चाहती थी। शिवराज जी आज आलोचना का केन्द्र बिंदु बने हुए हैं। उन्होंने भाग भागकर प्रचार किया और जनता से सीधा संवाद करने की कोशिश की । इस आपाधापी में वे भूल गए थे कि नौकरशाही कभी विधायिका का रूप नहीं ले सकती है। मोटी तनख्वाह पाने वाले अफसरों को इस बात से क्या लेना देना कि वे जिन पत्रकारों को पाल रहे हैं वे असरकारी संवाद कर रहे हैं या कि सिर्फ खानापूरी।


राजधानी का पत्रकार भवन पिछले तीन दशकों से समस्या ग्रस्त रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने अपनी मनमानी को मीडिया के माध्यम से सही दर्शाने के लिए जिस ढांचे का गठन किया था वह आज खलनायक बन चुका है। एडीजी इंटेलीजेंस ए.एन सिंह के घिसे पिटे फार्मूले ने प्रदेश की पूरी पत्रकारिता को धूल धूसरित कर दिया है। कोई भी सैन्य या पुलिसिया सोच जन संवाद की भूमिका नहीं निभा सकता है। इसके बावजूद सत्ता माफिया ने अपने काले कारनामों को छुपाने के लिए इस ढांचे को बरकार रखा। एएन सिंह की सलाह पर तत्कालीन अर्जुनसिंह सरकार ने कम्युनिस्ट ढांचे में रंगे श्रमजीवी पत्रकार संघ का प्रोजेक्ट चलाया था। इसकी फंडिंग जनसंपर्क विभाग के बजट और पुलिस के मुखबिर तंत्र के लिए मिलने वाले एसएस फंड से की जानी थी। यही वजह थी कि प्रदेश की पत्रकारिता नागरिकों को नक्सली ,चरित्रहीन, भ्रष्टाचारी और शराबी के तौर पर पहचानने लगी।


भाजपा सरकार के सत्ता में आते ही उमा भारती ने इस आततायी संगठन को उखाड़ फेंका। तभी उनके इर्द गिर्द जुट रहे लोधियों को निशाना बनाकर उमा भारती को कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया। इसके बाद वही ढाक के तीन पात वाली पुरानी कहानी चल पड़ी। बाबूलाल गौर तो अघोषित तरीके से अर्जुनसिंह जी के ही प्यादे थे। उन्होंने उमा भारती सरकार के फैसलों को पलट दिया। सरकार से वे सभी फाईलें गायब हो गईं जिन्हें लौह महिला और आयुक्त जनसंपर्क अरुणा शर्मा ने विशेष परिश्रम से तैयार किया था। इसके बाद आई शिवराज सरकार ने यही नीति जारी रखी। शिवराज सिंह के गुरु सुंदरलाल पटवा भाजपा में अर्जुनसिंह गुट के ही खासमखास माने जाते थे सो उन्होंने पत्रकार भवन पर वही पत्रकार विरोधी व्यवस्था कायम रखी। लगभग डेढ़ दशक के शासनकाल में पत्रकारों की तमाम मांगों पर सहमति जताने के बावजूद शिवराज सिंह ने इस व्यवस्था पर कोई प्रहार नहीं किया बल्कि पर्दे के पीछे वे इस बदनाम संगठन के पदाधिकारियों को उपकृत करते रहे।


जनता ने पिछली बार जब इस व्यवस्था को पलटने का जनादेश दिया तो कमलनाथ सरकार ने आते ही पत्रकार भवन को जमींदोज करके पत्रकारों की बरसों पुरानी मांग पूरी कर दी थी। उनके इर्द गिर्द भी किताबी पत्रकारों का जमावड़ा हो गया था सो उन्होंने इन बदमाशों के साथ पूरी पत्रकार बिरादरी को लांछित करना शुरु कर दिया। यही वजह थी कि कमलनाथ की भ्रष्ट सरकार के उखाड़ फेंकने में मीडिया के सभी वर्गों ने भाजपा को भरपूर साथ दिया। भाजपा ने दुबारा सत्ता में आने के बाद कमलनाथ की नीति को जारी ऱखा और पत्रकारों से दूरियां बनाए रखीं। ये भी महज दिखावा साबित हुआ। लुटेरे पत्रकारों की फौज को जनसंपर्क के भ्रष्ट अधिकारियों ने दुबारा सरकार के गले में लटका दिया। नतीजतन असली पत्रकार फिर भी वंचित ही रहे। बल्कि वे खामखां जनता के निशाने पर आते रहे जबकि मलाई खाने वाला तबका तो सरकार के साथ मजे लूटता रहा।

दरअसल स्व. माखनलाल चतुर्वेदी के एक बदमाश रिश्तेदार ने जनसंपर्क विभाग में रहते हुए दिग्विजय सिंह की सामंती सरकार की आंखों में धूल झोंककर जो विश्विद्यालय सरकार के गले में बांध दिया वह उसे डुबाने वाला बोझा साबित हो रहा है। बरसों से सरकारें अपने चमचों को इस विवि में उपकृत करती रहीं हैं। कभी दिग्विजय सिंह सरकार जो करती थी उसे भाजपा सरकार ने कई सौ गुना तरीके से किया। अन्य प्रदेशों से लाए गए हवा हवाई पत्रकारों को यहां पत्रकारिता का शिक्षक बनाया गया और उन्हें यूजीसी के निर्धारित वेतनमानों से उपकृत किया जाने लगा। वास्तव में पत्रकारिता की आड़ में एक ऐसे चरोखर खुल गई जिस पर पत्रकार भी खामोश थे।


यही वजह है कि आज ऐसा लगता है कि सरकार पत्रकारों पर भारी बजट खर्च कर रही है लेकिन वह वास्तव में सरकार का जेबी प्रचार तंत्र है जो हर बार बोगस साबित होता रहा है।असली पत्रकार तो आज भी झुनझुना पकड़कर घूम रहा है। इस बार जब भाजपा सरकार को बिजली सड़क और पानी के नाम पर भारी बजट खर्च करने मिला तो निर्माण माफिया को लगने लगा है कि ये व्यवस्था जारी रहनी चाहिए। भ्रष्ट अफसरशाही के लिए इससे अनुकूल सरकार दूसरी कोई हो नहीं सकती। यही वजह है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मैं हूं का नारा देते हुए भाजपा हाईकमान के निशाने पर आ गए हैं। बजट का आंकड़ा तो जारी करने वाली संस्थाओं की बैलेंस शीट से पढ़ा जा सकता है। जो रकम प्रदेश पर खर्च की गई उसकी तुलना में उत्पादकता कितनी बढ़ी। ये आंकड़े कितने असली और कितने फर्जी हैं इसे जांचना आज तकनीकी के दौर में कठिन नहीं है। सरकार के बजट का कितना हिस्सा माफिया की भेंट चढ़ गया इसका आकलन अच्छी तरह कर लिया गया है। यही वजह है कि शिवराज जी के शासनकाल को जनता की कसौटी पर तो बाद में परखा जाएगा अभी तो पार्टी के अंदरूनी आडिट ने इसका अध्ययन अच्छी तरह कर लिया है। जाहिर है कि सरकार ने अब पत्रकार भवन का नाम मीडिया सेंटर रखा है। वह नहीं चाहती कि फिर कोई माफिया इस पर कब्जा जमा ले और प्रदेश के विकास की कहानी को पटरी से उतार कर चलता बने।उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार मीडिया सेंटर मध्यप्रदेश में प्रोफेशनल जनसंवाद कायम करेगा। हां यदि कोई जनहितैषी व्यक्ति सत्ता के शीर्ष पर आ जाए तो फिर जनधन लूटकर भागने वाले माफिया को भी जमींदोज किया जा सकेगा।

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1 Comment

  1. अत्यंत महत्वपूर्ण 🙏सोई हुई सरकार को जगा कर दिशा दिखाने वाला सच

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