दिल्ली से मजदूरों को किसने खदेड़ा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब देश में 21 दिनों के लॉक डाऊन की घोषणा की तो लोगों को लगा कि ये कैसे संभव होगा। प्रधानमंत्री ने हाथ जोड़कर अपील की और कहा कि लॉक डाऊन का मतलब पूरा बंद है। रेल और बसों का परिवहन भी रोक दिया गया। हवाई मार्ग पर भी रोक लगा दी गई। इसके बावजूद कुछ राज्यों में मजदूरों के घर लौटने की कवायद जारी है। प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से जरूरत मंदों को खाना उपलब्ध कराने और खाद्य सामग्री की आपूर्ति जारी रखने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद केरल और दिल्ली से भारी संख्या में मजदूरों का पलायन हुआ है। दिल्ली में तो प्रशासनिक अधिकारियों ,मस्जिदों और आप पार्टी के कार्यकर्ताओं की ओर से ऐलान किया गया कि आपको डीटीसी की बसों से यूपी सीमा से लगे आनंद विहार बस अड्डे तक छोड़ा जा रहा है। योगी सरकार ने वहां बसें उपलब्ध कराईं हैं जिनसे आपको आपके घरों तक छोड़ा जाएगा। इस ऐलान के बाद हजारों लोगों की भीड़ बसों में भरकर यूपी बार्डर तक पहुंच गई।हजारों मजदूर तो पैदल ही घरों की ओर रवाना हो गए। जब उन्हें यूपी सरकार की बसें नहीं मिलीं तो वे पैदल ही बच्चों महिलाओं समेत अपने गांवों की ओर चल दिए।जब शोर मचा तो प्रशासन ने उनके लिए भोजन की व्यवस्था कराई और संक्रमण फैलने के खतरों के बीच इन मजदूरों को उनके घरों तक छोड़ा गया । इस पलायन ने पूरे देश में कोरोना संक्रमण फैलने की आशंका जगा दी है। राज्य सरकारों की गैर जिम्मेदारी का ये नमूना ठेठ दिल्ली में ही देखने मिला है।

चीनी वायरस कोरोना के कहर से इन दिनों पूरी दुनिया हलाकान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित किया है।भारत में लगभग एक हजार पचास मरीजों में कोरोना वायरस की पहचान की गई है। देश के विभिन्न अस्पतालों में उनका इलाज किया जा रहा है। इस वायरस के प्रति रोग प्रतिरोधक टीके के विकास के प्रयास चल रहे हैं लेकिन टीके का विकास इतनी जटिल प्रक्रिया है कि उसे तत्काल न तो बनाया जा सकता है और न ही पूरी दुनिया में उसे उपलब्ध कराया जा सकता है। भारत की विशाल आबादी के बीच इसे फैलने से बचाने के लिए आईसीएमआर और देश के विशेषज्ञों ने त्वरित उपाय के रूप में रोग के प्रसार की कड़ी तोड़ने की सलाह दी थी। ये तभी संभव था कि जब 130करोड़ लोगों को उनके घरों में ही रोक दिया जाए। चीन के वुहान राज्य में फैले कोरोना संक्रमण के बाद चीनी सरकार ने लगभग तीन अरब लोगों को अपने घरों में कैद करने का विशाल अभियान चलाया था। चीनी पुलिस और सेना ने लोगों को घरों तक सीमित करने के लिए सख्त कवायद की तब जाकर संक्रमण का फैलाव रोका जा सका। विश्व के अन्य देशों से सबक लेकर ही भारत में संपूर्ण लॉक डाऊन का फैसला लिया गया। इससे विश्व के कई देशों की तरह भारत की अर्थव्यवस्था को भी भारी क्षति पहुंचने का अंदेशा है, इसके बावजूद कोई अन्य विकल्प नहीं था।

अमेरिका, इटली, जर्मनी,आस्ट्रेलिया ने चीन की स्थितियों से सबक नहीं लिया। नतीजतन इन देशों में कोरोना संक्रमण से मरने वालों की तादाद चीन के आंकड़ों को भी पार कर गई। भारत में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डाक्टरी सलाह को पूरे देश में लागू किया और संक्रमण दो चरण पार होने के बाद भी तीसरे चरण में नहीं पहुंच पाया है। तीसरे चरण का मतलब है कि महामारी घर घर तक फैल जाए। यदि ऐसा हो जाता तो भारत की स्वास्थ्य सुविधाएं अचानक अस्पताल पहुंचने वाली मरीजों की भीड़ से नहीं निपट सकती थीं। वैसे भी स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से भारत दुनिया में 120 देशों के पीछे खड़ा है। भारत में सरकारी ढांचे की विफलताओं के बाद बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य को उद्योग का दर्जा देकर निजी निवेश से स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार के प्रयास किए गए हैं लेकिन इससे भारत के लोगों पर दोहरा बोझ पड़ रहा है। उन्हें इलाज निजी अस्पतालों में करवाना पड़ता है जबकि सरकारी तंत्र को पालने के लिए अपनी जेब से मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। मूर्खतापूर्ण ढंग से किए गए घटिया सरकारीकरण जिस तरह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा उसे देखकर कोरोना संकट ज्यादा भयावह नजर आने लगा है। अमीर देशों की स्वास्थ्य सुविधाएं जब कोरोना का कहर आते ही चरमरा गईं तो भारत में तो इसकी भयावहता का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। मजदूरों के कल्याण का नारा देने वाली केरल की कम्युनिस्ट सरकार हो या कांग्रेस और कम्युनिस्ट की संकर सोच से उपजी दिल्ली की आप पार्टी सरकार सभी ने मजदूरों को उकसाकर वोट कबाड़ने की जो रणनीति अपनाई उससे कोरोना संकट का खतरा बढ़ गया है। इन सरकारों को लगा कि यदि कोरोना संकट बढ़ा तो हमारे अस्पताल आबादी के बोझ को सहन नहीं कर पाएंगे इसलिए भविष्य की बदनामी से बचने के लिए उन्होंने मजदूरों को खदेड़ना शुरु कर दिया। जब औद्योगिक विकास के लिए उन्हें मजदूर मिल रहे थे तो वे खुश थे क्योंकि इससे उन्हें राज्य में टैक्स अधिक मिलता था। लेकिन जब महामारी के आसन्न संकट का बोझ आता दिखा तो उन्होंने मजदूरों से सबसे पहले पिंड छुड़ाया। इस तरह की अमानवीयता दिल्ली की वो आप पार्टी सरकार कर रही है जिसने मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर पूरे देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का ढिंडोरा पीटा था। अब जबकि केन्द्र सरकार ने नाराजगी व्यक्त करते हुए वरिष्ठ अधिकारियों पर गैर जिम्मेदारी से काम करने की वजह से उन्हें हटाना शुरु कर दिया है तब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल टीवी पर आकर लोगों से अपने ही घरों में रुके रहने की अपील कर रहे हैं। भारत की राजनीति का ये अंधियारा पक्ष है जिसकी वजह से भारत आज भी छोटी सोच वाले विकासशील देश से आगे नहीं बढ़ पा रहा है। महामारी जैसे संकट से निपटने के लिए राज्यों की सरकारें यदि देश की नीति के साथ कदमताल नहीं कर पा रहीं हैं तो फिर इन सरकारों को बर्खास्त करके वहां राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाना चाहिए ताकि देश को महामारी के प्रकोप से होने वाली क्षति से बचाया जा सके।

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