भाजपा के शक्ति संधान से चौखाने चित्त कमलनाथ कांग्रेस

अपने आदिवासी वोट बैंक को मजबूत बनाने के लिए भाजपा ने मोनिका बट्टी को पार्टी में लाकर उन्हें अमरवाडा़ से अपना प्रत्याशी घोषित किया है।


भाजपा ने तीसरी सूची में आदिवासी नेता रहे मनमोहन शाह बट्टी की बेटी मोनिका बट्टी को अमरवाड़ा से टिकिट देकर खलबली मचा दी है। कभी सनातन परंपरा के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले आदिवासी नेता मनमोहन शाह बट्टी की बेटी को चुनाव मैदान में उतारकर भाजपा ने कांग्रेस के अरमानों पर घड़ों पानी उढ़ेल दिया है। मनमोहन शाह बट्टी आदिवासी सम्मान का नारा देकर राजनीति में उतरे थे। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी बनाई। इस पार्टी ने समय समय पर अपनी मौजूदगी भी दर्ज कराई लेकिन राजनीतिक बदलाव लाना रेत में नाव खेने के समान होता है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी में फूट भी पड़ी और पार्टी अप्रासंगिक भी हो गई। इसके बावजूद पिछले विधानसभा चुनावों में कमलनाथ कांग्रेस ने हीरालाल अलावा के नेतृत्व में जयस संगठन के नेतृत्व तले आदिवासियों को लामबंद करने में सफलता पा ली थी. आदिवासी वोट बैंक प्रदेश की 36 सीटों पर निर्णायक होता है। नतीजतन वोट का गणित गड़बड़ाया और भारतीय जनता पार्टी अधिक वोट पाने के बावजूद सत्ता से दूर रह गई थी। कमलनाथ की कूटनीति ने उन्हें सत्ता तक तो पहुंचा दिया था लेकिन शुचिता के अभाव ने सत्ता की लूट का जो नंगा नाच किया उससे क्षुब्ध होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस के विधायकों ने विद्रोह कर दिया। कमलनाथ की सरकार औंधे मुंह गिर गई। तबसे भाजपा ने अपना खोया जनाधार वापस समेटने का अनुष्ठान शुरु कर दिया और आज वह मजबूत स्थिति में चुनावी कीर्तिमान स्थापित करने चल पड़ी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हालिया भोपाल दौरे के बाद तरह तरह की अटकलबाजियां शुरु हो गईं थीं लेकिन लोग तब भौंचक्के रह गए जब उनके दौरे के तुरंत बाद भाजपा हाईकमान ने अपने प्रत्याशियों की दूसरी सूची जारी कर दी। इस सूची में भाजपा ने तीन केन्द्रीय मंत्रियों और चार सांसदों को मैदान में उतारकर सभी को चौंका दिया। टिकिट बांटकर लौटे नरेन्द्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल और फग्गन सिंह कुलस्ते को भी शायद अंदाजा नहीं था कि उन्हें मैदान में दो दो हाथ करना पड़ेंगे। बरसों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की शासन शैली के खिलाफ शिकायतें आती रहीं हैं। भाजपा के कई दिग्गज स्वयं को मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं। खुद शिवराज सिंह चौहान बार बार खुद को चुनौतियों के सामने असहाय पाते रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनावों में जब उनकी सरकार चली गई तो उन्होंने ये कहते हुए संतोष व्यक्त किया था कि मैं मुक्त हो गया। आखिर उन्हें किसने बांध रखा था। खुला हाथ मिलने के बावजूद वे खुद को बंधक क्यों महसूस कर रहे थे।
दरअसल शिवराज सिंह चौहान लगभग अठारह सालों तक प्रदेश में ऐसी सरकार चलाते रहे हैं जो सत्ता माफिया की गिरफ्त में जकड़ी रही है। वे चाहकर भी इस गिरोह पर लगाम नहीं लगा सके। इस माफिया गिरोह ने एक क्लब बना रखा है और सारे कमाऊ ठेके इसी गिरोह के चंगू मंगू हड़प लेते रहे हैं। सत्ता की इस लूटपाट में आईएएस अफसरों का एक गिरोह भी शामिल रहा है। आज राजधानी की सड़कों पर रोज वाहनों का जाम लगता है। इसकी वजह सत्ता की लूट से आई काली कमाई रही है। अरबों रुपयों का विदेशी कर्ज लेकर जन कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर जन धन की लूट ने ये हालात निर्मित किए हैं। कल्याणकारी योजनाएं सफल भी हुईं हैं जनता को उनका लाभ भी मिला है लेकिन ये लाभ उस कर्ज की तुलना में बहुत कम है जिसका ब्याज आम जनता को भुगतना पड़ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भाजपा कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि मोदी है तो मुमकिन है।इस पर शिवराज के एक करीबी मंत्री ने कहा कि ये बड़बोला पन है किसी को अपने मुंह मियां मिट्ठू थोड़ी बनना चाहिए। भाजपा संगठन से जुड़े समर्पित स्वयंसेवक जानते हैं कि जिन नेताओं ने खुद को ब्रांड के रूप में स्थापित करके जनता के दिलों तक सफर किया है उन्होंने मतदाताओं को भरोसा दिलाने के लिए खुदकी मौजूदगी बताई है। कभी नारा दिया जाता था बच्चा बच्चा अटल बिहारी । शिवराज खुद मैं हूं न बोलकर लोगों को भरोसा दिलाने का प्रयास करते रहे हैं। इसके बावजूद उनकी सरकार की घोषणाएं सौ फीसदी सफल नहीं रहीं। यही वजह है कि भाजपा के ही वरिष्ठ नेता ने उन्हें घोषणा वीर की संज्ञा दे डाली थी।
भाजपा हाईकमान के पास स्पष्ट फीड बैक था कि शिवराज सिंह चौहान के नाम को लेकर लोगों में बैचेनी है। खास तौर पर युवा वर्ग बदलाव चाहता है। उसने जबसे होश संभाला है भाजपा सरकार ही देखी है। ये सरकार न तो उसे रोजगार दे पाई न ही पूंजी निर्माण का कोई माहौल बना पाई है। ऐसे में कांग्रेस ने उसे पिछले विधानसभा चुनावों में बरगला लिया था। इस बार फिर ऐसा न हो इसके लिए हाईकमान ने शिवराज सिंह चौहान को हटाया तो नहीं है। इसकी वजह ये है कि शिवराज पर पिछले दो दशकों में भाजपा ने करोड़ों रुपए खर्च किए हैं। उन्हें ब्रांड के रूप में स्थापित किया है। इसलिए उन पर ही जवाबदारी है कि पार्टी को एक बार फिर सत्ता में लाएं। शिवराज के इर्द गिर्द जुटे सत्ता माफिया ने पंचायतों से लेकर स्वास्थ्य ,सड़क, बिजली, पानी और उद्योग सभी क्षेत्रों में जो लूट मचाई है उससे सभी खफा हैं। जाहिर है कि भाजपा को यदि 2024 में लोकसभा का चुनाव जीतना है तो उसे मध्यप्रदेश की अपनी सत्ता बचानी पड़ेगी। यही वजह है कि मोदी शाह की जोड़ी और भाजपा हाईकमान पूरी गंभीरता से मध्यप्रदेश में अपना परचम फहराने में जुट गए हैं।
नरेन्द्र मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर का टारगेट रखकर जो योजनाएं बनाई हैं उसमें वे कोई चूक नहीं होने देना चाहते हैं। कांग्रेस जहां डिफाल्टरों को पालने पोसने में जुटी रही है वहीं भाजपा ने किसानों और महिलाओं को अपना साथी बनाया है। आधी आबादी को मजबूती देकर वे अर्थ व्यवस्था में लंबी छलांग लगाना चाहते हैं। उन्होंने जाति,धर्म, वर्ग की राजनीति नहीं खेली। उन्होंने देश के विशाल वर्कफोर्स पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है। यही वजह है कि मोदी ने जब अपने भाषण में शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं लिया तो उनके समर्थक बौखला गए। उनके समर्थक एक मंत्री ने कहा कि जब शिवराज सिंह इस चुनावी रण के दूल्हे हैं तो उन्हें नजरंदाज नहीं किया जाना चाहिए। जबकि दूसरी सूची में जिन दिग्गजों और क्षेत्रीय क्षत्रपों को चुनाव में भेजकर भाजपा ने उन्हें चुनाव जिताने की जो जवाबदारी सौंपी है उससे साफ है कि भाजपा हाईकमान शिवराज का साफ विकल्प तैयार करना चाहती है। ये जनता की मांग पर लिया गया फैसला है जो भले ही कड़वा लगे पर समस्या का इससे अच्छा समाधान दूसरा नहीं हो सकता। इस फैसले से फिलहाल कांग्रेस तो चौखाने चित्त नजर आ रही है।

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