बीना रिफायनरी से ज्यादा धंधा कर रही रिलायंस

वैश्विक कारोबार का बड़ा खिलाड़ी होने के नाते भारत अब रूस का जीवनदाता बन गया है.

भोपाल,26 मई(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। भारत की सरकारी तेल रिफायनरियां नियमों से बंधे होने की वजह से बाजार की रपटीली राहों पर फिसड्डी साबित हो रहीं हैं।इसकी तुलना में निजी रिफायनरीज ज्यादा अच्छा धंधा कर रहीं हैं। मसलन भारत पेट्रोलियम या इंडियन ऑइल, कच्चे तेल से बने उत्पाद – माने पेट्रोल-डीज़ल निर्यात नहीं कर सकते. वहीं, निजी रिफाइनरीज़ पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं है. उन्हें बस 65 हज़ार पेट्रोल पंप्स में से 10 हज़ार में तेल की सप्लाई देने की बाध्यता है. उसके बाद वो चाहे जहां तेल बेच सकती हैं. रूस-यूक्रेन जंग से पहले, रिलायंस और नायरा जैसी निजी रिफाइनरियों को इंटरनैशनल मार्केट से कच्चा तेल ख़रीदना पड़ता था, जो कि रूसी तेल की तुलना में काफी महंगा था. अब ये दोनों रिफाइनरियां रियायती दरों पर रूस से तेल आयात करती हैं. और विदेश में माल बेचकर भयानक मुनाफ़ा कमाती हैं.

नायरा गुजरात में स्थित है, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से कंपनी का स्वामित्व, प्रमुख रूसी तेल कंपनी रॉसनेफ्ट के पास है. रॉसनेफ्ट ने 2017 में रुइया समूह से एस्सार रिफाइनरी को क़रीब 105 करोड़ रुपए में ख़रीद लिया था. विशेषज्ञ इस बात को भी रेखांकित करते हैं कि रिलायंस का पहले से ही रूसी कंपनियों से अच्छा संपर्क है.

बीना रिफायनरीज के एक प्रमुख सूत्र ने बताया कि भारत सरकार रूस पर लगे अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों की वजह से न तो उसका तेल खरीद की अनुमति दे सकती है न ही वह खुद रशिया से कोई कारोबार कर सकती है। जबकि निजी कंपनियों के सामने ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। भारत की निजी कंपनियों ने जिस तरह विदेशी परिवहन के क्षेत्र में अपने कदम बढ़ाए हैं उससे भारतीय कंपनियों का विदेशी कारोबार तेजी से बढ़ा है। यही वजह है कि चाहे रिलायंस हो या नायरा दोनों के कारोबार में भारत सरकार कोई दखल नहीं दे सकती है। यही नहीं उसे इन कंंपनियों के कारोबार को सफल बनाने के लिए सुरक्षा के प्रबंध भी करने हैं। यही वजह है कि मुक्त बाजार की अर्थव्यवस्था का ये मसला आज वैश्विक प्रतिबंधों पर भारी पड़ रहा है।

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