इस कंबल परेड से सुधार की उम्मीद बेकार

रैगिंग की भाषा में बोला जाए तो इन दिनों मुख्यमंत्री कमलनाथ की कंबल परेड चल रही है। कांग्रेस के विधायकों ने सरकार की जो धुलाई की है उससे पार्टी के बड़े बड़े दिग्गजों की सांसें भी फूल गईं हैं। भाजपा तो अंधे के हाथों बटेर लग जाने से प्रसन्न है। कमलनाथ सरकार जितने दिनों तक इस बगावत को काबू में नहीं कर पाएगी उतने दिनों तक ये धुलाई जारी रहेगी। मुख्यमंत्री कमलनाथ कह रहे हैं कि हम सदन में पहले भी बहुमत साबित कर चुके हैं लेकिन अब ये हालत हो गई है कि कोई भी ऐरागैरा आकर बहुमत साबित करने का चैलेंज देने लग जाता है। दरअसल ये कमलनाथ सरकार की अलोकप्रियता का उद्घोष है जो वे स्वयं कर रहे हैं। सलाहकारों की बात मानकर उन्होंने विधायकों को कथित तौर पर बंधक बनाए रखने के मुद्दे पर पुलिस में प्राथमिकी दर्ज नहीं कराई है। यदि वे ऐसा कर देते तो साफ उजागर हो जाता कि उनकी सरकार अल्पमत में आ गई है। आज दिग्विजय सिंह ने जिस तरह बैंगलौर जाकर बागी विधायकों से मिलने के लिए धरना दिया उसे देखकर कहा जा सकता है कि बगावत के मैनेजर भाजपा के रणनीतिकारों की सलाह पर नहीं चल रहे हैं। दिग्विजय सिंह को विधायकों से न मिलने देने का फैसला बड़ा बचकाना था। यही वजह है कि दिग्विजय सिंह विधायकों को बंधक बनाए रखने का शोर मचा रहे हैं। उनका कहना है कि वे विधायकों को बंधक बनाए रखने के मुद्दे पर कर्नाटक हाईकोर्ट जाएंगे। कमलनाथ सरकार के तमाम रणनीतिकार और अदालत में पैरवी कर रहे वकील पुष्पेन्द्र दुबे भी कह रहे हैं कि विधायकों को बंधक बनाकर रखा गया है। यदि आज दिग्विजय सिंह को विधायकों से मिलने का मौका दे दिया जाता तो खुद ब खुद साबित हो जाता कि विधायक बंधक नहीं हैं। कैमरों के सामने सार्वजनिक मुलाकात में विधायक हाथ जोड़कर दिग्विजय सिंह से वे सभी बातें कह सकते थे जो वे पहले अपने वीडियो जारी करते वक्त कह चुके हैं। वे इस मुलाकात के मंच का उपयोग करके सारी दुनिया को सुना सकते थे कि वे कमलनाथ सरकार के साथ नहीं हैं,जाहिर है कि विधानसभा के मंच से भी ज्यादा बड़े कैनवास पर कमलनाथ सरकार की कंबल परेड बेहतरीन तरीके से की जा सकती थी। ये तो आकलन हम लोग बाहर बैठकर लगा सकते हैं कि बगावत के रणनीतिकार गलती कर रहे हैं लेकिन हमारा आकलन हमेशा सही नहीं हो सकता। जिन विधायकों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में बहादुरी भरा फैसला लिया और सरकार को नसीहत देने का कदम आगे बढ़ाया निश्चित रूप वे किसी न किसी रणनीति पर काम जरूर कर रहे हैं। सिंधिया समर्थक विधायक आज भी कह रहे हैं कि महाराज सिंधिया जो कहेंगे हम वही करेंगे। वे दरअसल देख चुके हैं कि जिन आर्थिक सुधारों से ज्योतिरादित्य प्रदेश का काया कल्प करना चाहते थे उन्हें कमलनाथ की पुरातनपंथी सरकार लागू नहीं कर रही थी। गोस्वामी तुलसी दास कह गए हैं कि मुखिया मुख सो चाहिए खानपान को एक पाले पौसे सकल अंग तुलसी सहित विवेक। कमलनाथ इस कसौटी पर फिसड्डी साबित हुए हैं। उन्होंने प्रदेश के विधायकों, जन प्रतिनिधियों, पत्रकारों, नागरिकों से दूरी बनाई और मनमाने ढंग से बजट खर्च करने का अभियान चलाया। जनता को हित वंचित करके अपने सहयोगियों पर बेइंतहा संसाधन लुटाए और अपनी स्थिति मजबूत की। उम्र के असर से उनकी दृष्टि कमजोर हो गई है। उन्होंने अकेले छिंदवाड़ा में लगभग तेरह हजार करोड़ के निर्माण कार्य स्वीकृत करवा लिए और अन्य विधानसभा क्षेत्रों को रीता छोड़ दिया। यही वजह है कि साल भर से चेताने के बावजूद जब कमलनाथ जी की आदतें नहीं बदलीं तो उन्होंने विद्रोह जैसा फैसला किया। आजादी की लड़ाई में भी जब अंग्रेजों ने लूट का शोषणवादी तंत्र चलाया था तब भारत में विद्रोह की चिंगारी भड़की और दावानल बनी थी। आज के हिंदुस्तान में कमलनाथ की कूढ़ मगज सोच को आखिर कैसे झेला जा सकता था। जिस इंस्पेक्टर राज को नरसिम्हाराव की सरकार के कार्यकाल में डाक्टर मनमोहन सिंह दफन कर चुके थे उसे कमलनाथ दोबारा थोपने में जुटे थे। शुद्ध के लिए युद्ध के नाम पर व्यापारियों का शोषण और लूट का जो दुष्चक्र कमलनाथ सरकार ने चलाया उससे प्रदेश भर में जन आक्रोश भड़क गया था। तबादलों के माध्यम से पोस्टिंग का खुला खेल जिस तरह से साल भर में देखा गया उसने प्रदेश में अराजकता की स्थितियां निर्मित कर दीं हैं। बढ़ते अपराधों ने प्रदेश की शांति व्यवस्था भंग कर दी है। इसके बावजूद कमलनाथ दंड और दमन का दुष्चक्र चलाने में जुटे हैं। इतनी तगड़ी धुलाई के बाद भी उनकी भाषा शैली नहीं बदली है। पिछले दिनों जब उनसे पूछा गया कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा है कि कर्मचारियों और नागरिको से किए वादे पूरे नहीं हुए तो वे सड़क पर उतर जाएंगे तो कमलनाथ ने लगभग दुत्कारते हुए कहा, तो उतर जाएं। इस तरह की भाषा शैली और रवैये के बाद भी यदि कांग्रेस के विधायक चुप थे तो ये उनकी भलमन साहत थी। भाजपा में तो इस तरह के बर्ताव को कैडर की वजह से झेला जा सकता है लेकि कांग्रेस में जहां लीडरशिप आधारित संगठन हो वहां इस तरह के तुर्रमखां को कब तक बर्दाश्त किया जा सकता था। आज सारा दारोमदार ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों के रुख पर निर्भर कर रहा है। यदि वे अपने फैसले पर कायम रहते हैं तो कोई वजह नहीं कि कमलनाथ सत्ता से अपदस्त कर दिए जाएंगे। भाजपा के साथ शामिल होकर ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश को एक अग्रगामी विकास की दिशा दे सकते हैं। लेकिन अब तक ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है। कांग्रेस के भीतर की ये बगावत यदि सफल हो जाती है तो ज्योतिरादित्य सिंधिया प्रदेश के कद्दावर नेता के रूप में उभर जाएंगे। महल से अदावट रखने वाले भाजपाई ये नहीं चाहते। जाहिर है कि प्रदेश की आधुनिक आवश्यकताओं की कसौटी पर फेल हो चुके शिवराज सिंह चौहान भी नहीं चाहते कि भाजपा में कोई उनसे बड़ा लीडर बनकर उभरे। इसके बाद सत्ता की हांडी टूटने की आस लगाए बैठे नरेन्द्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, भूपेन्द्र सिंह, गोपाल भार्गव भी नहीं चाहते कि गोविंद राजपूत और तुलसी सिलावट जैसे धाकड नेता उनके सामने चुनौती के रूप में उभरें। इन हालात में भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ेगा। यदि भाजपा का अंदरूनी महाभारत थम जाता है और ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा के नेताओं का साथ पाकर इस बगावत को सफल बना लेते हैं तो फिर प्रदेश को अबकी बार भाजपा और कांग्रेस की संकर सरकार मिलेगी जो प्रदेश के हितरक्षण के लिए नए कीर्तिमान स्थापित करेगी। ज्योतिरादित्य सिंधिया की बुआ वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे सिंधिया संगठन को किस सीमा तक बांधने में सफल होती हैं बगावत की सफलता उसी से आकी जाएगी। कमलनाथ तो इस बगावत को कुचलने की पूरी तैयारी कर रहे हैं। फिलहाल उन्हें सत्ता जाने की संभावनाओं से डरे हुए कांग्रेस विधायकों का समर्थन मिल रहा है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से यदि पलड़ा भाजपा के पक्ष में झुकता है तो कमलनाथ सरकार का अल्पमत संकट और भी ज्यादा गहरा हो जाएगा। देखना होगा कि ये बगावत सफल होती है या फिर आत्मसमर्पण की चौखट चूमती है। दोनों ही स्थितियों में कमलनाथ इस कंबल परेड से कोई सबक लेंगे इसकी संभावना फिलहाल तो नहीं दिखती।

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