कमलनाथ की कुर्सी बचाने में जुटे गोपाल रेड्डी

भोपाल,17 मार्च(प्रेस सूचना केन्द्र)। तेज तर्रार आईएएस गोपाल रेड्डी को प्रदेश का प्रशासनिक मुखिया बनाकर मुख्यमंत्री कमलनाथ अपनी सत्ता के विरुद्ध हुई बगावत को काबू में करने का जतन करने में जुट गए हैं।रेड्डी के पद संभालते ही जेल विभाग ने पुरानी जेल के परिसर और भेल दशहरा मैदान को अस्थायी जेल में बदलने का आदेश जारी कर दिया है। ये तैयारी आने वाले दिनों में होने वाले किसी संभावित विद्रोह को देखते हुए की जा रही है। कमलनाथ यदि सुप्रीमकोर्ट और विधानसभा को धता बताते हुए कुर्सी छोड़ने पर राजी नहीं होते हैं तो संभावित जनांदोलनों पर नियंत्रण करने के लिए ये तैयारियां काम आ सकेंगीं।

जेल विभाग के अवरसचिव अजय नथानियल ने विधानसभा के कार्यकाल के दौरान 13 अप्रैल तक ये नए जेल परिसर मान्य किए हैं। सरकार के खिलाफ होने वाले संभावित आंदोलनों में यदि अधिक लोग शामिल होते हैं तो उन्हें जेल पहुंचाने के बजाए इन परिसरों में ही निरुद्ध किया जा सकेगा। पुलिस और प्रशासन के बीच तालमेल जमाते हुए इस फैसले में प्रभारी पुलिस मुखिया रहे राजेन्द्र कुमार की सलाह की भूमिका मानी जा रही है।

डीजी प्रशासन अकादमी बनाए गए सुधीरंजन मोहंती का कार्यकाल समाप्त होने के लगभग दो हफ्ते पहले की गई रेड्डी की नियुक्ति की वजह समझने में लोग सफल हो पाएं इससे पहले रेड्डी ने अपनी प्रशासनिक क्षमताओं पर पूरी तरह अमल शुरु कर दिया है।वे अपने त्वरित और दूरगामी फैसलों के लिए जाने जाते रहे हैं।

सुधीरंजन मोहंती को इस महीने होने वाले रिटायरमेंट के बाद विद्युत नियामक आयोग का चेयरमेन बनना है। मुख्य सचिव पद पर रहते हुए ये नियुक्ति फिलहाल संभव नहीं थी। भले ही मुख्यमंत्री आदेश दे दें पर उसके ऊपर अमल तो मुख्य सचिव को ही करना पड़ता है। सरकार के खिलाफ उठी बगावत और अस्थिरता की स्थिति में यदि कमलनाथ सरकार बर्खास्त कर दी जाती है या सदन में बहुमत खो देती है तो फिर विद्युत नियामक आयोग की नियुक्ति का फैसला लटक सकता था। मुख्य सचिव के लिए ओएसडी बनाए जा चुके गोपाल रेड्डी की नियुक्ति भी नए हालात में खटाई में पड़ सकती थी।

गोपाल रेड्डी ने पदभार संभालते ही अपने अनुकूल प्रशासनिक कसावट भी शुरु कर दी है। वे 1985 बैच के आईएएस हैं और लंबे समय से प्रदेश की प्रशासनिक जमावट से परिचित रहे हैं। समाज के सभी वर्गों से उनका जुड़ाव रहा है। ऐसे में माना जा रहा है कि कमलनाथ सरकार के खिलाफ उठ रहे असंतोष के स्वरों को वे संतुष्टि की आवाजों में बदल सकेंगे। इसके बावजूद फिलहाल कमलनाथ से नाराजगी के स्वर बहुत तेज हैं और उन्हें काबू में रखने के लिए राजदंड का प्रयोग करने की जरूरत भी पड़ रही है और नए मुखिया ने इस भूमिका पर अमल भी शुरु कर दिया है।

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