माफिया से गलबहियां और मुक्ति की लबरयाई

भारत पर 514 अरब डॉलर का कर्ज है और इस कर्ज का अधिकतर हिस्सा या तो अनुत्पादक है या फिर उसके मुनाफे पर चंद लोग ऐश कर रहे हैं। इस कर्ज का अधिकांश हिस्सा विदेशी बैंकों में छिपाकर रखा गया है।विदेशी धन वापस लाने का वायदा करके सत्ता में आई भाजपा की मोदी सरकार के लिए यह विदेशी कर्ज एक अबूझ पहेली बन गया है। पहले कार्यकाल में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टैक्स हैवन देशों से नई संधियां करके विदेशी बैंकों में रखे धन के मालिकों को ढूंढ़ने का भरपूर जतन किया। इसके बावजूद सरकार को अधिक सफलता नहीं मिली। ये जरूर पता चल गया कि बैंकों की 85 फीसदी कर्ज की रकम जिन उद्योपतियों ने गड़प ली है वे भारत में ही सक्रिय हैं और फर्जी कंपनियों से धन का उपयोग कर रहे हैं। सरकार ने फर्जी कंपनियों को भी ढूंढ़ निकाला और उनका धन बरामद कर लिया। इसके बावजूद जिस धन को शोधन के बाद बाकायदा सीए की मंजूरी के बाद कंपनियों में निवेश किया गया है उनसे धन की वसूली की प्रक्रिया देश भर में अपनाई जा रही है। कमलनाथ सरकार भी उस व्यवस्था का हिस्सा हैं जो देश में काले धन की खोजबीन में जुटे हैं। उनसे ये उम्मीद की जाती रही है कि वे अपना काम जिम्मेदारी से करेंगे और काला धन उजागर करने में सहयोगी की भूमिका निभाएंगे।

इसके विपरीत कमलनाथ की भूमिका प्रोपेगंडा से अधिक साबित नहीं हो रही है। वे शुद्द के लिए युद्ध और भू माफिया के विरुद्ध जिस तरह से अभियान चला रहे हैं उसे लेकर वे ये जताने का प्रयास कर रहे हैं कि वे काले धन की वसूली के प्रयास कर रहे हैं। वास्तव में उनकी भूमिका देश से काला धन उजागर करने की मुहिम को पंचर करना अधिक नजर आ रहा है। उन्होंने जिस तरह रेत के ठेकों में देश की पूंजी हड़पने वाले फर्जी उद्योगपतियों की भीड़ जुटाई है उसे देखकर उनकी भूमिका की असलियत आसानी से समझी जा सकती है। जिस रेत कारोबार से प्रदेश को 250 करोड़ रुपए की आय होती थी और बाद में इसे शिवराज सरकार ने मुक्त कर दिया उससे कमलनाथ 1200 करोड़ रुपए की आय होने की कहानियां सुना रहे हैं। उनकी सरकार का कहना है कि रेत माफिया पर अंकुश लगाकर ये आय की जा रही है। इस कारोबार के पुराने खिलाड़ी धंधे से बाहर कर दिए गए हैं और जिला स्तर पर नए ठेकेदारों को खदानें आबंटित की गई हैं। रेत खदानों के ठेके लेने वालों में वे लोग शामिल हैं जिन पर देश का अरबों रुपया जीम जाने का आरोप है।

सरकार ने जिन रेड्डी बंधुओं को रेत कारोबार का सहयोगी बनाया है और राज्य के लिए आय देने वाला बताया जा रहा है उन रेड्डी बंधुओं की असलियत कुछ और है। मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की पुलिस उन्हें सरगर्मी से तलाश रही है। उन पर हजारों लोगों को झांसा देकर उनके साथ बैंक धोखाघड़ी करने का आरोप है।इसके बावजूद कमलनाथ सरकार उन्हें राज्य को आय कराने वाला निवेशक बता डाला है। जो लोग बैंकों का हजारों करोड़ रुपया पौंजी स्कीमों से हड़प चुके हैं वे प्रदेश को कितनी और कैसी आय कराएंगे ये तो आने वाले समय में पता चलेगा लेकिन तब तक कमलनाथ सरकार ने उन्हें पुलिस से रक्षा कवच जरूर उपलब्ध करा दिया है।

इसके विपरीत भारत सरकार का ध्यान बंटाने के लिए राज्य सरकार माफिया को ध्वस्त करने की मुहिम चला रही है। इस मुहिम में सैकड़ों निर्दोष व्यापारियों और बिल्डरों की बलि चढ़ाई जा रही है। राज्य सरकार की इस मुहिम में अफसर, जज और पुलिस सभी शामिल हैं। जिस तरह की रिपोर्ट के आधार पर आम नागरिकों को भयंकर माफिया, मिलावटखोर, जमाखोर बताया जा रहा है वे आने वाले समय में आपातकाल से भी ज्यादा भयावह प्रताड़ना की असलियत सामने लाने लाएंगे। लेकिन इससे प्रदेश की विकास यात्रा बुरी तरह तहस नहस हो रही है। जो लोग छुटपुट कारोबार करके हजारों लोगों को रोजगार देने का काम कर रहे थे वे भी खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। सरकार की मुहिम से बचने के लिए व्यापारियों ने न केवल भारी भरकम टैक्स चुकाना जारी रखा है बल्कि वे राजनीतिक चंदे की मुंहमांगी रकम भी देने को मजबूर किए जा रहे हैं। जिन लोगों को माफिया बताकर प्रशासन ने उनके ठिकाने तहस नहस कर डाले हैं उनमें से अधिकतर केवल दस्तावेजों की कमी की वजह से निशाना बने हैं। जिन अफसरों और दलालों ने उन्हें झांसा देकर कारोबार बढ़ाने में मदद की अब वही लोग उन्हें माफिया साबित करने में जुटे हुए हैं।

सरकार की इस मुहिम से आम जनता परेशान है और काला धन बनाने वाला माफिया अपनी बुलंदियां छू रहा है। वह न केवल काला धन बचाने में सफल हो रहा है बल्कि निर्दोष लोगों को डरा धमकाकर उनसे अवैध वसूलियां भी कर रहा है। ये हालत कमोबेश वैसी ही है जैसे कभी इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान सामने आई थी। बेशक कमलनाथ कह रहे हैं कि निर्दोष लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है लेकिन जब प्रशासन और तंत्र उन्हें आरोपी बना देता है तब वे अपनी बेगुनाही साबित ही नहीं कर पाते और सरकार के दमनचक्र का शिकार हो जाते हैं।

ऐसे ही एक पनीर कारोबारी के विरुद्ध हाईकोर्ट ने बाईस पेज का फैसला दिया और उसे दोषी बताते हुए मामले की सुनवाई अधिक जजों की खंडपीठ से कराने का निर्देश दिया। जिस मामले को कोई बच्चा भी षड़यंत्र पूर्वक रचा गया बता सकता है उसे हाईकोर्ट मानने तैयार नहीं है। हाईकोर्ट के ही एक विद्वान न्यायाधीश कह रहे हैं कि वह व्यक्ति निर्दोष है और उसे बरी किया जाना चाहिए लेकिन दूसरे जज केवल अपना तमगा बढवाने और कमलनाथ की गुड बुक में आने के लिए अपनी विद्वत्ता का प्रदर्शन किए जा रहे हैं।

वास्तव में समय आ गया है जब देश की सर्वोच्च संस्थाएं इन मामलों पर गौर करें और राज्य सरकार की पक्षपातपूर्ण नीतियों पर लगाम लगाएं। ये तो साफ हो चुका है कि मध्यप्रदेश एक बार फिर आपातकाल दो के दौर से गुजर रहा है लेकिन ये आपातकाल भारत की मानवता के लिए कलंक न बन जाए इसके लिए आगे बढ़कर इस पर रोक लगाना समय की मांग बन गई है।

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