गांधी हत्या पर गोडसे के बहाने लुटेरों को बचाने की साजिश

भोपाल,17मई(प्रेस सूचना केन्द्र)। भाजपा की लोकसभा प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा ने आम चुनाव के अंतिम दौर में महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की देशभक्ति पर जैसे ही बयान दिया भूचाल आ गया। खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसे खारिज किया और कहा कि वे इसके लिए मन से साध्वी को माफ नहीं कर पाएंगे। प्रश्न फिल्म अभिनेता कमल हासन के गोडसे को आतंकवादी बताए जाने पर था लेकिन इस पर समूची भाजपा बैकफुट पर आ गई।

इसकी एक बड़ी वजह 19 मई को होने जा रहा आम चुनाव का अंतिम चरण भी है। गांधी देश के लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं और उनके हत्यारे को देशभक्त बताना राजनीतिक रूप से उचित नहीं था।साध्वी का बयान आसानी से देश के आम मतदाता के गले उतरने वाला नहीं था । इसलिए आनन फानन में भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा को माफी मांगने के निर्देश दिए। उनके समर्थन में बहस को गांधीवाद पर लाने के प्रयास करने वाले अनिल सौमित्र को तो भाजपा ने निलंबित ही कर दिया। अनुशासन समिति उनके बयानों पर स्पष्टीकरण लेगी और फिर तय किया जाएगा कि पार्टी इन बयानों को कैसे देखे। हालांकि तब तक आम चुनाव का अंतिम दौर बीत जाएगा।

महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनके व्यक्तित्व की जिस तरह मीमांसा की गई है उससे भारत में गांधी को महापुरुष माना जाता है। दुनिया भी उन्हें शांतिदूत मानती है। जिस तरह उन्होंने सत्य और अहिंसा को लेकर प्रयोग किए उससे गांधी के व्यक्तित्व की विशालता का पता चलता है। उनके व्यक्तित्व का एक पक्ष हत्या के लिए फांसी पाने वाले नाथूराम गोडसे ने भी अपने बयानों में रेखांकित किया है। हालांकि तत्कालीन कांग्रेसी सरकारों ने उन विचारों पर लिखी पुस्तक यह कहते हुए प्रतिबंधित कर दी कि बापू के हत्यारे को महिमा मंडित नहीं किया जा सकता।

चुनाव प्रचार के अंतिम दौर में आयोजित पत्रकार वार्ता में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जिस तरह मालेगांव बम धमाके की आड़ में हिंदुओं को आतंकवादी बताने का षड़यंत्र किया गया हमने उसके विरुद्ध साध्वी प्रज्ञा को मैदान में उतारकर अपना सत्याग्रह दर्ज कराया है। साध्वी प्रज्ञा को इस मामले में झूठा फंसाया गया था। एनआईए अदालत ने विचारण के बाद इसीलिए उन पर से आतंकवादी निरोधक कानून(मकोका) हटाया था।

साध्वी प्रज्ञा तथा कथित हिंदू आतंकवाद की शिकार रहीं हैं। कांग्रेस पार्टी की ओर से भाजपा पर हिंसा को समर्थन देने के जो आरोप लगाए जाते रहे हैं उसे षड़यंत्र बताने के लिए ही साध्वी प्रज्ञा को प्रत्याशी बनाया गया था। जरूरत थी कि साध्वी प्रज्ञा इस मुद्दे पर खूब बोलतीं। वे बताती कि हिंदू आतंकवाद के षड़यंत्र का वे कैसे शिकार बनीं। उनके बयान कांग्रेस के लिए संकट खड़े करने वाले साबित हो सकते थे। इसीलिए कांग्रेस ने अपनी चिरपरिचित शैली में इस पर चर्चा को रोकने की रणनीति बनाई और उसे सफल बनाने में कामयाब भी हुई। कांग्रेस के इस षड़यंत्र में उसके भाजपाई सहयोगियों ने बढ़ चढ़कर सहयोग दिया। उनके हर बयान को वे भाजपा के लिए संकट में डालने वाला बताते रहे और अपनी ओर से स्पष्टीकरण देने के बजाए साध्वी से बयान वापस लेकर माफी मंगवाने की रणनीति अपनाते रहे।

जब साध्वी प्रज्ञा ने बाबरी ढांचा और राम मंदिर के संदर्भ में बयान दिया तो भाजपा के इन्हीं बौड़म रणनीतिकारों ने बयान वापस करवा दिया। जबकि ये बयान बहुसंख्यक वोट दिलाने में मददगार था। हेमंत करकरे के अत्याचारों का उल्लेख करने पर इसे मराठी भाषियों को नाराज करने वाला बताकर माफी मंगवा दी गई। जब कमलहासन ने गोडसे को देश का पहला आतंकवादी बताया तो साध्वी प्रज्ञा ने अपनी जानकारी के आधार पर उन्हें देशभक्त बता दिया। दरअसल वे जिस अभिनव भारत नाम के संगठन से कथित तौर पर जुड़ी रहीं हैं वो संगठन देश विरोधी ताकतों को चुनौती देने के लिए जाना जाता है। इस संगठन ने बापू वध के उस पक्ष को भी करीब से देखा सुना है जिसे आम लोग नहीं जानते। न केवल कांग्रेस बल्कि कई भाजपा की सरकारें भी चाहती रहीं हैं कि जनता देश के जरूरी मुद्दों के बजाए काल्पनिक कहानियों में ही उलझी रहे। कुछ इसी रणनीति के चलते प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा हाईकमान को भी सीमित जानकारियां पहुंचाई गईं हैं।

अनिल सौमित्रःसाध्वी प्रज्ञा को जनता की आवाज बनाने की कीमत चुकाई

भाजपा मीडिया विभाग के प्रमुख अनिल सौमित्र ने साध्वी के बयान के दुष्परिणामों से पार्टी को बचाने के लिए निजी हैसियत से जो स्पष्टीकरण दिया और बहस को मोदी सरकार के गांधीवादी कार्यों की ओर मोड़ने का प्रयास किया उस पर भी राज्य भाजपा ने निलंबन की अज्ञानता भरी जल्दबाजी दिखाई। श्री सौमित्र का कहना था कि भारत तो सनातनी देश है। इसका कभी निर्माण नहीं किया गया। यहां कोई भी महापुरुष धरती माता का सुपुत्र होता है पिता या पति नहीं।निर्माण तो पाकिस्तान का हुआ था। अंग्रेजों ने इसके लिए बाकायदा षड़यंत्र किया जिसकी कीमत देश के हिंदू मुस्लिम दोनों समुदायों के नागरिकों को चुकानी पड़ी। ये विभाजन गांधी जी के दो शिष्यों जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना के आपसी टकराव की वजह से हुआ था। अंग्रेजी भाषा में देश बनाने वाले को फादर आफ द नेशन कहा जाता है। इस लिहाज से गांधी तो पाकिस्तान के राष्ट्रपिता हुए। श्री सौमित्र ने कहा कि कांग्रेस के नेतागण ही कहते हैं कि इंदिरा गांधी जी ने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिए। इस लिहाज से बंगलादेश बनाए जाने पर उन्हें बंगलादेश की माता कहा जाना चाहिए।

तर्कों और तथ्यों के आधार पर ये बातें पहली बार नहीं कही गईं हैं। देश के कई मूर्धन्य विद्वानों ने महात्मा गांधी के व्यक्तित्व की मीमांसा करते हुए ये बातें कही हैं। देश के कई विद्वान और संगठन इनसे सहमत हैं और समय समय पर ये कहते भी रहते हैं। भाजपा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए इन देशभक्त संगठनों से सहयोग भी लेती रहती है। इन संगठनों से जुड़े लोग राष्ट्रवादी संगठन आरएसएस से भी जुड़े रहे हैं। इस लिहाज से वे भाजपा से भी जुड़े रहे हैं। इस आम चुनाव में जब भाजपा का संगठन खुलकर मैदान में नहीं था तब अनिल सौमित्र ने अपने संपर्कों के जरिए आगे बढ़कर साध्वी प्रज्ञा के प्रचार की कमान संभाली थी। इस लिहाज से वे भाजपा के उन दिग्गजों के निशाने पर आ गए थे जो कांग्रेस के दिग्विजय सिंह के साथ खड़े ठेकेदारों के गिरोह से जुड़े रहे हैं। यही समूह चुनाव में साध्वी प्रज्ञा के बयान और भाषण रोकने की रणनीति पर काम कर रहा था। अब जबकि चुनाव अंतिम चरण में पहुंच गया है तब ये गिरोह अपने षड़यंत्र उजागर न होने देने के लिए किसी को जिम्मेदार ठहराने का प्रयास कर रहा था। अनिल सौमित्र का ताजा बयान उनके लिए बहाना बन गया।

पिछले पंद्रह सालों के शासनकाल में भाजपा के प्रदेश नेतृत्व ने पार्टी की विचारधारा को मजबूत न होने देने के लिए भरसक प्रयास किए । पार्टी का मुखपत्र रही चरैवेति चरैवेति पत्रिका और अन्य प्रकाशनों को भी छिन्न भिन्न कर दिया गया। प्रदेश में स्वस्थ परिचर्चा न हो इसके लिए मालवीय नगर के पत्रकार भवन को भी आपराधिक तत्वों के हाथों में सौंपकर गूंगा बना दिया गया। यही वजह है कि देश के मूलभूत मुद्दों पर जब भी कोई चर्चा होती है पत्रकार और नागरिक सभी ज्ञानशून्य और दिशा शून्य नजर आते हैं। प्रदेश में सत्ता माफिया की लूट को छुपाने के लिए भी इसी षड़यंत्र का सहारा लिया गया। पहली बार साध्वी प्रज्ञा के मैदान में आ जाने से इस गिरोह को अपनी रणनीति असफल होती नजर आने लगी है। इस गिरोह को साध्वी प्रज्ञा एक बड़ी बाधा नजर आ रहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के खिलाफ षड़यंत्र करने वाला ये गिरोह अब साध्वी प्रज्ञा और उन्हें समर्थन देने वालों के विरुद्ध भी साजिशें रच रहा है। देखना है कि खुद को जनता का चौकीदार कहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मामले पर क्या भूमिका निभा पाते हैं। यदि जनता उन्हें एक बार फिर सत्ता सौंपती है भूमिका भी तभी तय होगी।

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