अपने ही चक्रव्यूह में उलझते कमलनाथ

मुख्यमंत्री कमलनाथ की अब तक की राजनीति को चाहने वालों की लंबी जमात है। उनकी कार्यशैली के दीवाने नेता भी हैं और आम जनता भी। छिंदवाड़ा के लोग बरसों से उनकी सुलझी राजनीति के कायल रहे हैं। एक बार जब जनता ने उन्हें पराजय से दंडित किया तब भी उनके प्रति दीवानगी और सम्मान कम नहीं हुआ। लोगों को अपनी गलती का अहसास हुआ और बाद में उन्होंने अपनी गलती सुधारी भी। कमलनाथ के चाहने वालों को अब भी भरोसा है कि वे कथित छिंदवाड़ा माडल की तर्ज पर मध्यप्रदेश की कायापलट देंगे। सत्ता संभालने के लगभग छियासठ दिन बीतने के बाद लोगों की ये सोच संशय से घिरती नजर आ रही है। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने जो फैसले लिए हैं, जो मंशाएं जाहिर की हैं और जमीन पर उसकी जो कार्यशैली नजर आ रही है उसे देखकर कहा जा सकता है कि कमलनाथ अपने ही चक्रव्यूह में उलझते जा रहे हैं।

कमलनाथ की अब तक की राजनीति कभी सत्ता का केन्द्र नहीं रही है। वे या तो गांधी परिवार की नीतियों के पैरवीकोर रहे हैं या फिर अपनी राज्य सरकारों के सलाहकार की भूमिका में रहे हैं। उनके हाथों में केन्द्र सरकारों का बजट रहा जिससे उन्होंने राज्यों और जनता को उपकृत करने की भूमिका भी निभाई। पहली बार उन्हें सीमित बजट से राजनीतिक महल खड़ा करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। उनके करिश्मे का जैसा प्रचार चुनाव के दौरान किया गया था उससे लोगों की अपेक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। लोगों में बैचेनियां बढ़ रहीं हैं उन्हें अब भी लग रहा है कि आज नहीं तो कल कमलनाथ जी अपने पिटारे में छिपी धन की थैली निकालेंगे और मध्यप्रदेश की तस्वीर पलटकर रख देंगे।

दो महीनों के शासनकाल की गतिविधियों को देखने के बाद ये कहा जा सकता है कि ऐसा कुछ होने नहीं जा रहा है। कांग्रेस सरकार की दो महीनों की रिकार्डशीट बेहद धुंधली है।वे न तो कोई बड़ा निवेश लाने में सफल हुए हैं और न ही पूंजी उत्पादन की कोई इबारत लिख पाए हैं। हां पिछली सरकार की योजनाओं की कतरब्यौंत करने का असफल प्रयास करते जरूर नजर आ रहे हैं।जिन योजनाओं पर उन्होंने कैंची चलाई उन्हें दुबारा जारी करके उन्होंने अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता का भी उदाहरण पेश किया है। उनकी राजनीति सरकार के बजट को खर्च करने के इर्दगिर्द ही घूमती रही है। पहली बार उन्हें एक साथ कई आयामों के लिए पूंजी उत्पादन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है जिसमें वे असफल साबित हो रहे हैं।

इसकी एक बड़ी वजह आगामी लोकसभा चुनाव भी हैं।उन पर लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की सीटें बढ़ाने का जबर्दस्त दबाव है। इसके लिए वे लगातार लोकप्रियतावादी योजनाओं की घोषणाओं का जादू फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। बहुचर्चित किसान कर्जमाफी योजना से वे किसानों को बैंकों से नो ड्यूज दिलाने जा रहे हैं।किसानों का कर्ज चुकाने के लिए सरकार के पास कोई जमाराशि नहीं है। इसके लिए वे बैंकों की साख का सहारा ले रहे हैं। निश्चित तौर पर इसी महीने से वे किसानों को ये प्रमाण पत्र दिलवाना शुरु कर देंगे। वचनपत्र का ये वायदा पूरा होने से किसान प्रसन्न भी होंगे,लेकिन नया गल्ला सरकार नहीं खरीद रही है इससे किसान परेशान हैं।

कमलनाथ की सरकार को किसानों की जिस फौज का सामना करना पड़ रहा है उससे वे खासे तनाव में भी हैं। पूर्व मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्र ने विधानसभा को बताया कि कार्यमंत्रणा समिति की बैठक के बाद अनौपचारिक चर्चा में मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से कहा कि आपने कृषि का उत्पादन इतना अधिक बढ़ा दिया कि अधिक उत्पादन ही समस्या बन गई है। दरअसल में कांग्रेस जिस रोजगार बढ़ाने की बातें सोच रही है या कर रही है उसे भाजपा की सरकार पहले ही कृषि क्षेत्र में बढ़ा चुकी है। कमलनाथ जी की सोच अभी भी उद्योगों के विस्तार से आगे नहीं निकल पा रही है,जबकि इसके लिए न तो सरकार के पास धन है और न ही निवेशक।उन्होंने दुनिया घूमी है,वे विकसित देशों की चकाचौंध से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं जबकि प्रदेश की हकीकत इसके विपरीत है।

कांग्रेस सरकार के नेतागण जमीनी हकीकत समझने तैयार नहीं हैं। हवा हवाई बातें उनकी कार्यशैली का आधार हैं। सदन में कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह कह रहे थे कि पिछली सरकार अरबों रुपया विज्ञापन में बांट गई है इसलिए प्रदेश पर एक लाख अस्सी हजार करोड़ का कर्ज हो गया है। जबकि जमीनी हकीकत ये है कि मध्यप्रदेश का कर्ज आज भी तयशुदा सीमा से अधिक नहीं है।

कमलनाथ ने सार्वजनिक कार्यक्रम में ये कहकर सनसनी फैला दी थी कि मैं अखबारों में अपनी फोटो नहीं छपवाना चाहता। आपको जो छापना हो छापें। हमारी सरकार विज्ञापन की सरकार नहीं है। बेहतर होगा कि आप लोग कोई दूसरा कारोबार कर लें। जबकि अपनी ही कही गई बातों के विपरीत कमलनाथ की सरकार अपने साठ दिनों में प्रचार के नाम पर 35 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। शिवराज सरकार ने मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था को दो लाख दस हजार करोड़ रुपए के आंकड़े तक पहुंचाया था।इसमें से प्रचार पर खर्च साढ़े तीन सौ करोड़ रखा जाता था।इसकी अस्सी फीसदी राशि तो सरकारी प्रचार तंत्र की स्थापना, सत्कार और वाहनों पर ही खर्च हो जाती थी। मीडिया इंडस्ट्री आज बड़ा रूप ले चुकी है और वो इस बजट पर टिकी हुई नहीं है। तभी तो एक बड़े मीडिया संस्थान को कांग्रेस के कथित प्रयासों से तीन हजार करोड़ की आय कराई गई है। आज भी तमाम बड़े मीडिया संस्थानों की आय का महज तीस फीसदी धन सरकारी सेक्टर से आता है। जिसमें मध्यप्रदेश सरकार का हिस्सा तो और भी कम है। इसके बावजूद कमलनाथ सरकार और उसके मंत्री अपनी असफलताओं को छुपाने के लिए मीडिया को आधारहीन आरोपों से बदनाम कर रहे हैं।इसकी वजह स्वयं मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके अनुभवहीन सलाहकारों की जमात है।

कमलनाथ के करीबी और वित्तमंत्री तरुण भनोट अपनी सरकार पर दलाली के आरोपों से खफा हैं। उन्होंने सदन में कहा कि यदि सरकार जनहित के काम कर रही है तो क्या हम लोग दलाली खा रहे हैं।उन्हें सार्वजनिक तौर पर बताना होगा कि वे कौन से जनहित के कार्य हैं जिनके लिए दलालों की फौज वल्लभ भवन और विधानसभा में टूटी पड़ रही है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के थोपे गए सरकारी तंत्र को पालने के लिए राज्य को हर महीने तीन हजार दो सौ करोड़ रुपए स्थापना व्यय करना पड़ता है। इस व्यय का अधिकांश हिस्सा अनुत्पादक है। राज्य की आय तो सरकारी तंत्र को पालने और कर्ज का ब्याज चुकाने में ही खर्च हो जाती है। इसके बावजूद तबादलों के धंधे में लिप्त कमलनाथ सरकार प्रदेश की तस्वीर बदलने की डींगें हांक रही है।निश्चित तौर पर आने वाले समय में ये असंतोष की बड़ी वजह बनेगी। जिसका खमियाजा कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में तो उठाना ही पड़ेगा साथ में पहली बार मध्यप्रदेश अपराध और अराजकता के दलदल में फंसने जा रहा है जिसके लिए आम जनता को अभी से तैयार रहना होगा।

(लेखक जन न्याय दल के प्रदेश प्रवक्ता भी हैं। यह आलेख मीडिया पर लगाए जा रहे अनर्गल आरोपों के जवाब में लिखा गया है।)

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