अदालतों में भ्रष्टाचार का अंत

भोपाल जिला बार एसोसिएशन ने जिले के लोगों को स्वाधीनता दिवस की बड़ी सौगात दी है। उसने घोषणा की है कि आज से जिले की अदालतों में भ्रष्टाचार नहीं होगा। किसी भी प्रकार के गैरकानूनी लेनदेन की शिकायत यदि मिलती है तो बार एसोसिएशन उस आपराधिक कृत्य करने वाले व्यक्ति के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में शिकायत दर्ज कराएगा। जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश व्यास राज्य की एडवोकेट एनरोलमेंट कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। जबलपुर हाईकोर्ट के दायरे में चलने वाली ये संस्था संवैधानिक दर्जा प्राप्त है। इस लिहाज से राजेश व्यास की राय प्रदेश की समूची न्यायपालिका की आत्मा की आवाज मानी जा सकती है। खुद राजेश व्यास कहते हैं कि उनकी ये राय एक दिन में नहीं बनी है। वे लंबे समय से प्रदेश भर के पीठासीन जजों, बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों,सदस्यों,वरिष्ठ अधिवक्ताओं, न्यायिक कर्मचारी संघों के पदाधिकारियों, कर्मचारियों, वरिष्ठ और कनिष्ठ अधिवक्ताओं, कोर्ट मुंशियों, थाने के मुंशियों ,चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से चर्चा करते रहे हैं। सभी इस घृणित परंपरा को पसंद नहीं करते हैं। इसके बावजूद बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे। इस मुद्दे पर कोई बोलने की पहल नहीं करता है। इसलिए अदालतों की गरिमा रोज खंडित होती रहती है और न्याय देने दिलाने का काम आम जनता से दूर होता जाता है।

राजेश व्यास कहते हैं कि ये बात सही है कि मंहगाई के इस दौर में किसी अनजान पक्ष के लिए न्याय दिलाने की लंबी जद्दोजहद बहुत खर्चीली होती है। यदि भ्रष्टाचार का सामना न भी करना पड़े तब भी पक्षकार को दर दर की ठोकरें खाना पड़ती हैं। ऐसे में लोग अदालत की चौखट चढ़ने को भी अपने पूर्व कर्मों का पाप मानने लगते हैं। यही वजह है कि सभी के बीच संवाद के दौरान उनके मन में भ्रष्टाचार मुक्त अदालतों का विचार आया। उनका कहना है कि लोगों के बीच से न्यायपालिका को लेकर बना संशय दूर होने से समूची न्यायप्रक्रिया से जुड़े लोगों को सिर ऊंचा करके चलने का अवसर मिलेगा।

वे कहते हैं कि जिस तरह अदालतों का कामकाज तेजी से कंप्यूटरीकृत होता जा रहा है ऐसे माहौल में किसी पक्षकार का काम केवल इसलिए टरकाया जाए कि उससे रिश्वत वसूलनी है तो ये बड़ा गंभीर अपराध है। देश भर की अदालतों में जब लंबित प्रकरणों को निपटाने की तेजी अपनाई जा रही है ऐसे माहौल में वकीलों का काम सरल बनाने के लिए जरूरी है कि समूचा कामकाज पारदर्शी बनाया जाए। अब जबकि नोटबंदी के बाद लेनदेन का काम भी लोग मोबाईल एप से करने लगे हैं तब वकीलों की भागदौड़ घटाने के लिए भी जरूरी है कि न्याय प्रक्रिया को सरल बनाया जाए।
राजेश व्यास ने झंडावंदन के बाद अध्यक्षीय उद्बोधन में जब ये बात कही तो वकीलों ने इसका भरपूर स्वागत किया। जिला एवं सत्र न्यायाधीश शैलेन्द्र शुक्ला ने भी उनकी बात का समर्थन करके इस राय पर अपना निर्णय सुना दिया। उन्होंने कहा कि ये सराहनीय पहल है और पूरी न्यायपालिका की ओर से वे इस फैसले का स्वागत करते हैं। ये राय इस संवैधानिक स्तंभ से जुड़े लोगों के बीच व्यापक विमर्श से निकली है इसलिए अदालतों में इसे लागू कराने के लिए कोई सख्ती की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।

राजेश व्यास ने कहा कि लोगों को सस्ता त्वरित और सुलभ न्याय दिलाना आज इसलिए भी जरूरी हो गया है कि देश विकास के एक नए दौर में प्रवेश कर रहा है। यदि हम लोगों को कानूनी पचड़ों में ही उलझाए रहेंगे तो पड़ौसी देशों या विश्व के देशों से विकास के पैमाने पर कभी मुकाबला नहीं कर पाएंगे। उनका मानना है कि लोगों को सुलभ न्याय मिले और वकीलों को उन्हें न्याय दिलाने के लिए अनावश्यक परेशान न होने पड़े इसे देखते हुए ही उन्होंने ये निर्णय लिया कि इस नैतिक गंदगी का पुरजोर विरोध किया जाए।

वरिष्ठ अधिवक्ता सी.एस. शर्मा कहते हैं कि इस फैसले से न्यायपालिका की गरिमा बढ़ेगी। अदालतों और जनता के बीच करीबी बढ़ने से ज्यादा लोग अदालतों के माध्यम से अपने फैसले करवा सकेंगे।जिस तरह पारिवारिक मामले अदालतों में अधिक आने लगे हैं उन्हें देखते हुए अदालतों को लोगों की मित्र बनाना जरूरी है। अदालत का कामकाज सुगम हो तो ज्यादा लोग अदालतों के माध्यम से कानून का राज कायम कर सकेंगे। विकास की गति तेज करने की दिशा में ये कदम मील का पत्थर साबित होगा। उनका कहना है कि इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।

एडवोकेट श्रीमती सुनीता राजपूत ने कहा कि अदालत की चौखटों पर पहुंचने वाले आम नागरिकों के हितों की रक्षा में ये नई परिपाटी ऐतिहासिक साबित होगी। उन्होंने कहा कि न्याय प्रक्रिया का लाभ आम नागरिकों तक पहुंचाने में वकीलों की बड़ी भूमिका होती है। अदालतों में बढ़ने वाले अनावश्यक खर्चों से डरकर बहुत से लोग न्याय से वंचित रह जाते हैं। अब जब अदालतों का कामकाज जनता के ज्यादा करीब होगा तो इससे ज्यादा लोग अदालत पहुंचेंगे और न्यायपालिका की गरिमा बढ़ेगी।

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