हिंदुस्तान की राजनीति अनुत्पादक, उद्देश्यहीन और ठहरी हुई बांझ महसूस की जा रही है। कांग्रेस से निराश हो चुके लोग आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भाजपा के बारे में भी निराशाजनक बातें कहते नजर आते हैं। हालांकि जो लोग यूपीए और एनडीए की सरकारों के आधारभूत अंतर को समझते हैं वे जानते हैं कि बदली सत्ता पहले की तुलना में क्या नए लक्ष्य छूने निकल पड़ी है। इसके बावजूद अपनी राजनीतिक विधा को बुलंद करने में जुटे सत्ताच्युत राजनेता ये मानने तैयार नहीं हैं कि बदलते वक्त ने उनकी राजनीतिक शैली को विदा कर दिया है। मध्यप्रदेश विधानसभा के बजट सत्र में दिवंगत विभूतियों को श्रद्धांजलि देने का क्रम चल रहा था। अध्यक्ष डाक्टर सीतासरन शर्मा ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी को जमींदारी उन्मूलन के लिए कार्य करने वाला विधिवेत्ता और संसदविद् बताया । मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के प्रति श्रद्धांजलि देने के लिए कई सम्मानजनक संबोधन प्रेषित किए। वाजिब भी था, जिस विधानसभा की गरिमा आजादी के बाद संवाद आधारित लोकतंत्र से सजाई संवारी गई हो उसके पुरोधाओं को नई पीढ़ी की ओर से सम्मान दिया जाना लाजिमी है।
नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा कि श्रीनिवास तिवारी को विंध्य का टाईगर कहा जाता था। उन्होंने बेरोजगारी मिटाने के लिए पूरे जीवन काम किया। वे विंध्य क्षेत्र के विकास के लिए विशेष प्रयास करते थे। श्री तिवारी का अपने लोगों के लिए कोई कानून कायदा नहीं होता था। वे हरदम प्रयास करते थे कि कानून के अंदर आदमी का संरक्षण कैसे किया जाए। उनके विचार ,सिद्धांत और सपने आज भी अधूरे हैं। वे चाहते थे कि गरीबी दूर हो पर अभी इसके बारे में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। विधानसभा उपाध्यक्ष डाक्टर राजेन्द्र कुमार सिंह इस माहौल में कुछ ज्यादा ही भाव विभोर हो गए। उन्होंने कहा कि समाजवादी सोच के कारण वे परंपरागत रूप से विद्रोही स्वभाव के रहे। इसलिए वे हरदम सरकार से लड़ने के अंदाज में रहते थे। जब विंध्यप्रदेश का विलय मध्यप्रदेश में हो रहा था तब उन्होंने इसका विरोध किया था। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि श्री तिवारी की अष्टधातु की प्रतिमा रीवा में या विधानसभा परिसर में स्थापित की जाए। श्रीनिवास तिवारी के प्रति सम्मान का ये भाव स्वाभाविक है। श्री तिवारी भरी सभा में कहते थे कि श्री राजेन्द्र सिंह मेरे तीसरे बेटे समान हैं। जाहिर है इस आशीर्वाद का प्रतिफल देने का भाव श्री सिंह के मन में आना ही चाहिए। विधानसभा में श्रद्धांजलि आयोजन के इस संवाद में कुछ बातें निकलकर सामने आ रहीं हैं। निश्चित रूप से श्रीनिवास तिवारी इतने बड़े कद के नेता थे कि जीते जी तो उन्हें नजरंदाज करना संभव ही नहीं था। आज भी उन्हें भुलाना संभव नहीं है। जाहिर है कि मध्यप्रदेश के इतिहास में श्रीनिवास तिवारी का नाम हमेशा आदर के साथ याद किया जाएगा। इसके बावजूद कुछ बातें चिंतन करने योग्य हैं। श्रीनिवास तिवारी जब राजनीति में आए तब जमींदारी प्रथा मौजूद थी। जाहिर है कि नई पीढ़ी के युवकों में तब जमींदारी की आड़ में चलने वाले शोषण के प्रति घृणा का भाव हुआ करता था। इसके बाद साम्यवाद के हिंदुस्तानी संस्करण समाजवाद ने भी पूंजीपतियों के प्रति नफरत का भाव पल्लवित पोषित किया। गांधीवाद जरूर सेठों की पैरवी करता था लेकिन कांग्रेस का मौजूदा नेतृत्व तो चूं चूं का मुरब्बा था। गरीबी हटाओ का नारा देने वाली इंदिरा कांग्रेस मंच पर तो सेठों को गाली देती थी पर मंच की आड़ में वह पूंजीपतियों को पोषित करती रही । इसी ऊहापोह में श्रीनिवास तिवारी ने अपनी राजनीतिक सोच को जमीन पर उतारने का प्रयास किया। आज अजय सिंह सार्वजनिक रूप से कहते हैं कि श्री तिवारी के स्वप्न अभी साकार नहीं हो पाए हैं। जाहिर है कि जो स्वप्न जमीनी बुनियाद पर न खड़े हों वे साकार हो भी कैसे सकते हैं।
श्रीनिवास तिवारी अपने अध्यक्षीय कार्यकाल में ही बहुत सारे विवादों में घिरे रहे। विधानसभा में जातिगत और क्षेत्रगत भेदभाव पर आधारित फर्जी नियुक्तियों को लेकर तो विधानसभा सचिवालय ने उनके खिलाफ प्राथमिकी तक दर्ज कराई थी। ये प्रकरण अभी लंबित है। उनके कार्यकाल के दौरान करोड़ों का मोसंबी जूस पिलाए जाने का घोटाला हो या सचिव सत्यनारायण शर्मा की उपस्थिति में गोलीकांड जैसे मामले सभी विधानसभा को कलंकित करते रहे। इसके बाद विधानसभा में फर्जी नियुक्तियों ने तो राजनीतिक हलकों में भारी कोहराम मचाया। आईएएस जे.एल.बोस ने इस मामले की जांच की तो उन्हें गंभीरता का अहसास हुआ। उन्होंने जब इस रिपोर्ट के बारे में सत्ताधीशों को बताया तो वे अचंभित रह गए। इसके बाद रहस्यमयी तौर पर कतिपय असामाजिक तत्वों ने उनसे रिपोर्ट भरी अटैची छीन ली और भाग गए। उन्होंने अपनी सिफारिश में किसी न्यायाधीश से इस मामले की जांच कराने की जरूरत बताई थी। जस्टिस शचीन्द्र द्विवेदी की अध्यक्षता में हुई न्यायिक जांच में ये घोटाला और भी गंभीर रूप में सामने आया। उनके असामयिक निधन से मामले पर पर्दा पड़ता नजर आने लगा। उन्होंने तथ्यात्मक जांच रिपोर्ट में मामले की प्राथमिकी दर्ज करने की सिफारिश की थी। इसके बावजूद ये मामला बरसों तक लंबित रहा। अंततः विधानसभा सचिवालय ने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज कराई जिसके बाद आज भी ये मामला लंबित पड़ा है। विधानसभा के प्रमुख सचिव पद पर डा.ए.के.पयासी की नियुक्ति कैसे हुई ये गोलमाल आज तक लोगों को अचंभे में डाल देता है। शिक्षक से नगर निगम और फिर विधानसभा में उनका पहुंचना। इसी दौरान डिग्रियां पा लेना जैसे मामले सर्वज्ञात हैं। इसके बावजूद राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी ने इस मामले पर पर्दा डाल रखा है। आज भी विंध्यक्षेत्र के ब्राह्मण जाति के लोग विधानसभा में भृत्य और मार्शल जैसे पदों से अपनी आजीविका चला रहे हैं। ये सब इसलिए क्योंकि तुरत नतीजे देने की ललक में श्रीनिवास तिवारी ने युवाओं को सरकारी नौकरियां देने की कांग्रेसी नीति का अनुकरण किया। बल्कि कहा जाए कि अपने नाते रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियां दिलाने में उन्होंने लूट भरी नीति अपनाई। जिस पत्रकार ने उनका विरोध किया उसे उन्होंने विधानसभा परिसर में घुसने से प्रतिबंधित कर दिया। रीवा के माफिया तत्वों ने इस लूट का विरोध करने वाले अफसरों, कर्मचारियों को तरह तरह से प्रताड़ित किया। किसी को लूप लाईन में फिंकवा दिया तो किसी की सेवा पुस्तिकाएं बिगाड़ दीं। मध्यप्रदेश के इतिहास में इस तरह की लूट और अराजकता कभी नहीं देखी गई। दिग्विजय सिंह सरकार ये सब देखकर भी खामोश थी, क्योंकि दिग्विजय सिंह को अपने सारे काले कारनामों पर विधानसभा की मुहर लगवाना पड़ती थी।
आज जो लोग मृत व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने के नाम पर आदर व्यक्त कर रहे हैं उनकी बात तो समझी जा सकती है पर जो लोग श्रीनिवास तिवारी की परंपरा को अष्टधातु में ढालकर पीढ़ियों का मार्गदर्शन करने की बात कह रहे हैं उन्हें अपनी सोच पर पुनर्विचार करना चाहिए। आखिर हम नई पीढ़ी को क्या संस्कार देना चाहते हैं। लोगों को खुश करने के लिए उनकी मुंह पर मीठी बातें करने वालों को मिठलबरा कहा जाता है। किसी भी राजनीति का उद्देश्य यदि केवल लोगों को खुश करना और उनसे वोट पाना हो वह कभी देश और समाज के स्थापित लक्ष्यों को नहीं पा सकती। कांग्रेस की सरकारों ने इन कुसंस्कारों को संरक्षण दिया इसलिए वे रसातल में चलीं गईं। जिस भाजपा ने उनके कार्यकाल में उन गलत नीतियों का विरोध किया वह आज क्यों खामोश बैठी है ये बात जरूर चिंताजनक है। सरकार यदि विंध्य क्षेत्र के विकास के लिए काम कर रही है तो उसे श्रीनिवास तिवारी के पैदा किए गए माफिया गिरोह से डरने की जरूरत नहीं है। खुद विंध्य के बुद्धिजीवी इस माफिया गिरोह को कभी समर्थन नहीं देते थे। वे तो केवल इसलिए खामोश रहते थे क्योंकि उन्हें अपनी जानमाल की चिंता होती थी।
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड परीक्षा की नियंत्रक ताजवर रहमान साहनी को प्रताड़ित करने का मामला तब खूब सुर्खियों में आया था जब खुद श्रीनिवास तिवारी ने उन्हें अपने क्षेत्र के नकलचोर स्कूलों की मान्यता बहाल करने और रिजल्ट सुधारने के लिए धमकाया था। उसी रात रहस्यमय स्थितियों में श्रीमती साहनी की मौत भी हो गई थी। इस तरह के सैकड़ों किस्से मध्यप्रदेश की राजनीति में आज भी सुने सुनाए जाते हैं। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सही कह रहे हैं कि विंध्य क्षेत्र की गलियां और चौपाल इस तरह के सैकड़ों आख्यानों से सराबोर हैं। इसके बावजूद आज के सत्ताधीश उनकी गलतियों से सबक क्यों नहीं लेना चाहते। यदि स्वर्गीय तिवारी जी की नीतियां मुखिया की छवि के अनुकूल होतीं तो क्या विंध्य क्षेत्र आज भी बेरोजगारी का दंश झेल रहा होता। मध्यप्रदेश की दिग्विजय सिंह सरकार बंटाढार साबित हुई होती। जरूरत है कि आज की राजनीति उन गलतियों से सबक ले, उन्हें दुहराने से बचे तभी हम आत्मगौरव की ओर बढ़ सकते हैं। ध्यान रहे भाजपा सरकार को भारत माता का वैभव अमर करने से लिए सत्ता में भेजा गया है। वह यदि इस लक्ष्य से भटककर सस्ती लोकप्रियता के फेर में पड़ी रहेगी तो प्रदेश की जनता उसकी भी परधनिया खोलने में देरी नहीं लगाएगी।
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