इस खाई को कितना भर पाएगा अंत्योदय का विचार


देश में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन को दीनदयाल अंत्योदय योजना के नाम से जाना जाता है। लगभग एक दशक से ज्यादा पुरानी इस योजना का इतिहास इससे भी ज्यादा पुराना है।आजादी के बाद से सरकारें लगातार गरीबी दूर करने के कार्यक्रम चलाती रहीं हैं। इनके लिए वैश्विक कर्जदाताओं से साफ्ट लोन भी लिए जाते रहे हैं। यदि ये सभी अभियान सफल हो गए होते तो भारत काफी साल पहले विकसित देशों की सूची में शामिल होकर चहुंमुखी विकास की होड़ में शामिल हो चुका होता। अपने लंबे अनुभवों से कांग्रेस की निवृत्तमान सरकारों ने पाया कि नौकरशाही इस अभियान की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। गरीबी दूर करने के लिए सरकारों ने जो संसाधन भेजे वे भ्रष्ट नौकरशाही की भेंट चढ़ गए। इस समस्या से निपटने के लिए कांग्रेस ने पंचायती राज जैसा मूर्खतापूर्ण उपाय ढूंढ़ा था। जो अपनी स्थापना से लेकर कभी सफल नहीं हो सका है। दिग्विजय सिंह की सरकार ने तो पंचायती राज को इतना पावरफुल बना दिया कि गांव गांव में सरपंच,सचिवों और उनकी मंडलियों ने लूट का कोहराम मचा दिया। सत्ता से समानांतर तंत्र खड़ा कर दिए जाने से नौकरशाही खफा हो गई। जनता को तब तक ये नहीं मालूम था कि नौकरशाही और पंचायती राज में असली अपराधी कौन है। जन आक्रोश पंचायती राज के खिलाफ था तो लोग उमा भारती की जन क्रांति में शामिल हो लिए और भाजपा की मजबूत सरकार सत्ता में पहुंच गई। बाद की भाजपा सरकारों ने नौकरशाही से पंगा नहीं लिया और कहानी जस की तस चलती रही। कांग्रेस की कमलनाथ सरकार ने इंसपेक्टरराज लौटाकर नौकरशाही को सब्जबाग दिखाए थे। वह तो भाजपा के रणनीतिकारों और ज्योतिरादित्य सिंधिया की आपसी समझबूझ थी जो करप्टनाथ के षड़यंत्र का भांडा बीच राह में ही फूट गया। इस बार फिर एक बार जनता को समाधान देने में असफल नौकरशाही निशाने पर है। कमलनाथ ने जिस नौकरशाही को सत्ता में आते ही धोबी का कुतका बना दिया था वे आज उसी नौकरशाही के सामने दाना डाल रहे हैं। क्योंकि उन्हें कांग्रेस के संगठन से ज्यादा भरोसा नौकरशाही के भ्रष्टाचार की शैली पर है। हालांकि सोशल मीडिया का चहुंमुखी विकास और संचार के बेहतर साधनों के बीच इस बार कमलनाथ की नाव वहीं डगमगाने लगी है जहां से उसने अपनी यात्रा शुरु की थी। भाजपा के रणनीतिकारों ने एकात्म मानवता वाद के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय के अंत्योदय वाले फार्मूले को मैदान में उतार दिया है। उन्होंने भ्रष्ट नौकरशाही से तो पंगा नहीं लिया लेकिन जनता को हितग्राही मूलक योजनाओं से भरपूर लाभ पहुंचाया। उसकी लाड़ली बहना योजना ने तो रिकार्ड सफलता अर्जित की है। इस योजना के दूसरे चरण को अधिकारी ये कहकर असफल बनाने में जुटे हैं कि सरकार ने योजना का लाभ लेने के लिए घर में टै्क्टर होना अनिवार्य शर्त बना दिया है। इस तरह नौकरशाही इस योजना की राह में अड़ंगे लगा रही है। ये कहा जा रहा है कि लाड़ली बहनों को देने लायक धन आखिर सरकार लाएगी कहां से। फिर जब उसने भविष्य में तीन हजार रुपए मासिक देने का वायदा किया है तो ये धन आखिर आएगा कहां से। भाजपा ने तो नौकरशाही कोसत्ता की बागडोर थमा रखी थी लेकिन भ्रष्ट अफसरों ने अपनी बदमाशी का ठीकरा भाजपा पर ही फोड़ना शुरु कर दिया। भाजपा के नेतागण खुलकर अपनी बात नहीं कह पाए और आज वे लाड़ली बहना योजना की सफलता का भरोसा भी नहीं दिला पा रहे हैं। कांग्रेस की नकल करते और अफसरशाही पर निर्भर भाजपाईयों की स्वतंत्र चेतना विलीन सी हो गई है। वे जनता को नहीं समझा पा रहे हैं कि उनके कार्यकाल में विकास के क्या क्या प्रतिमान गढ़े गए हैं। उसने लाड़ली बहना योजना, किसान सम्मान निधि,प्रधानमंत्री आवास, युवाओं को लैपटाप जैसी योजनाओं से नौकरशाही और सत्ता के विरुद्ध विद्रोह की आंधी को लगभग रोक दिया है। हालांकि ये अभी केवल अर्धविराम है।सत्ताधीशों को ये जान लेना चाहिए कि कांग्रेस के बनाए जिस ढांचे पर भाजपा अब तक चलती रही है वह ढांचा ही आक्रोश की असली वजह है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में कार्य करते हुए जाना कि कांग्रेस अंग्रेजों की फूट डालो राज करो की नीति पर चल रही है। ये चंद लोगों को साथ लेकर बहुसंख्यक जनता को कुचलने वाली अंग्रेजों की ही रणनीति अपनाए हुए है। तब उन्होंने वसुधैव कुटुंबकम की भावना में रचे बसे एकात्म मानवतावाद का सिद्धांत दिया। जिसमें समाज के हर व्यक्ति को परिवार का सदस्य मानकर उसे मजबूत बनाने का लक्ष्य रखा गया था। अंत्योदय इसी से उपजा विचार था जिसमें समाज के दबे कुचले पिछड़े,दलित वर्ग को साथ लेकर चलने का लक्ष्य था। शिवराज सिंह सरकार ने अपने पूरे कार्यकाल में नौकरशाही को छूट दी लेकिन अब जब चुनाव की बेला नजदीक आ गई है तब वह अंत्योदय के सहारे जनता के आक्रोश को नई दिशा में धकेलने का प्रयास कर रहे हैं। नौकरशाही ने अपनी लापरवाही, अनिच्छा, अपना घर भरने के लालच और शोषणवादी मानसिकता से जनधन की खूब लूट मचाई है। जनता शोषण से उसी तरह त्रस्त है जैसे कभी मुगलों, अंग्रेजों, जमींदारों, राजदरबारों, सूदखोरों से त्रस्त रही है,और वह लगभग विद्रोह पर उतारू है।कानून और व्यवस्था दूर के ढोल बने हुए हैं। ऐसे में लाड़ली बहना योजना जैसे कदम उसकी नाराजगी पर ठंडा पानी छिड़कने का काम कर रहे हैं।उन योजनाओं का असर भी हुआ है लेकिन कितना अभी ये कहना जल्दबाजी होगी।

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