प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया से दूरी बनाने के संकेत दिए हैं। अपने फैसले पर उन्होंने देश से मुहर लगाने का अनुरोध भी किया है। मोदी को प्यार करने वाले देश के आम लोगों ने इससे इंकार करते हुए उनसे सोशल मीडिया पर सक्रिय बने रहने का अनुरोध किया है। इतने बड़े पैमाने पर जनसंवाद पहले कभी नहीं देखा गया है। इसके बावजूद प्रधानमंत्री का फैसला कई मायनों में उचित रणनीति पर अमल है। उन्हें अवश्य सोशल मीडिया से दूरी बना लेनी चाहिए।दरअसल पिछले दिनों जिस तरह षड़यंत्र पूर्वक कुछ विदेशी शक्तियों की आड़ लेकर देश के लुटेरे भारत के प्रधानमंत्री पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं उसे देखते हुए इस तरह का फैसला लिए जाने का समय आ गया है। कांग्रेस और वामपंथी राजनैतिक दल बरसों से भारतीय जनता पार्टी पर फासिस्टवादी होने का आरोप लगाते रहे हैं। उन्होंने ये आरोप खुद को लोकतांत्रिक बनाने के लिए गढ़ा है। ये आरोप वे हिटलर और मुसोलिनी की तानाशाही को प्रतीक बनाकर लगाते रहे हैं। इसके विपरीत भारतीय जनता पार्टी देश के लोकतांत्रिक ढांचे में विकसित किया गया राजनीतिक दल है। यहां फैसले सहमति से होते हैं। मोदी जैसे आम आदमी को इस पार्टी में सर्वोच्च हैसियत दी जाती है। जिस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से भारतीय जनता पार्टी ने अपना ढांचा तैयार किया है, उसके सर संघचालक की भूमिका संघ का कैडर निर्धारित करता है। कोई भी सरसंघचालक अपनी व्यक्तिगत इच्छा किसी पर या संघ पर नहीं थोप सकता है। कमोबेश यही हाल भारतीय जनता पार्टी का है। यहां भी कोई व्यक्ति अपनी तानाशाही नहीं चला सकता है। यहां भी फैसले सर्वसम्मति से लिए जाते हैं। इसके बावजूद सोशल मीडिया पर बार बार ये दुष्प्रचार किया जाता है कि मोदी शाह की जोड़ी ने पार्टी के तमाम नेताओं को दरकिनार कर दिया है और अपना एजेंडा चला रहे हैं। सोशल मीडिया का जो बेलगाम चरित्र है उससे कोई चिरकुट सा व्यक्ति देश को जीवन समर्पित करने वाले राजनेताओं,सेनाध्यक्षों, डाक्टरों या समाजसेवियों की इज्जत तार तार कर देता है। उसे कोई रोकने वाला नहीं हैं। ये काम यदि अज्ञानता से किया जाए तो उन्हें ज्ञान से प्रकाशित किया जा सकता है लेकिन जब षड़यंत्र पूर्वक बार बार एक ही आरोप दुहराया जाता रहे तो निश्चित रूप से उस व्यवस्था को नियंत्रित किए जाने की जरूरत है। भारत में सीएए को लेकर फैसला देश के सर्वोच्च सदनों ने किया। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बार बार स्पष्टीकरण देते रहे कि इससे भारत के किसी नागरिक को कोई खतरा नहीं है इसके बावजूद षड़यंत्र पूर्वक कई बाहिरी ताकतें भारत के मुसलमानों को गुमराह करने का एजेंडा चला रहीं हैं। देश भर में सीएए को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है और सरकार की जनहितैषी नीतियों को धता बताते हुए झूठा दुष्प्रचार किया जा रहा है। इस षड़यंत्र को विदेशी ताकतों के हाथों में केन्द्रित सोशल मीडिया की मदद से अंजाम दिया जा रहा है। जाहिर है कि इस षड़यंत्र को रोकना होगा और देश के विकास के लिए ये जरूरी हो गया है।चीन में फेसबुक ,ट्विटर, आदि नहीं चलते वहां का सोशल मीडिया प्लेटफार्म वीबो है। चीन में दस तरह के सोशल मीडिया प्लेटफार्म हैं लेकिन उनका नियंत्रण वैश्विक सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के पास नहीं है। भारत के एक सौ तीस करोड़ लोगों के बीच संवाद का महामार्ग विकसित करने का क्षेत्र अभी खुला पड़ा है। इस क्षेत्र में बहुत कुछ अनुसंधान किए जाने भी जरूरी हैं। जाहिर है कि प्रधानमंत्री का सोशल मीडिया से मोहभंग एक दिन में नहीं उपजा है। यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। भारत का सोशल मीडिया प्लेटफार्म विकसित करके विदेशी ताकतों से भारत के मानस को बचाया जा सकता है। यहां की गई एक झूठी पोस्ट पूरे देश को गुमराह कर सकती है। भारत में चलाई जाने वाली झूठ की फेक्टरी पर तो नियंत्रण संभव है लेकिन विदेशी धरती से बैठकर चलाए जाने वाले झूठ के कारखानों पर रोक लगाना सूचना के इस वैश्विक महामार्ग के बीच बहुत खर्चीला है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ये घोषणा कई मायने रखती है। देश में अपना सोशल मीडिया प्लेटफार्म विकसित करने की दिशा में ये घोषणा महत्वपूर्ण कदम साबित होने वाली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश की वो शख्सियत हैं जिनका एक विचार पूरे देश के बड़े जनमानस का भाव बदल देता है। देश में मोदी की साख बहुत ऊंची है। इस लिहाज से भारत को एक नए जनांदोलन की दिशा में मोड़ने का ये प्रयास सराहनीय है। जितनी जल्दी हो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस सोशल मीडिया को विदा कहें और अपने देश का नया सूचना अखाड़ा शुरु करने की पहल करें जहां होने वाले दंगल वास्तविक हों हालीवुड की फिल्मों की कहानियों की तरह आभासी नहीं।
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