माफिया से संग्राम का डरावना अध्याय

मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार किन हालात में आई सभी जानते हैं। प्रदेश के लोग शिवराज सिंह चौहान की प्रशासनिक असफलताओं से खफा थे और उन्होंने विकास के नाम पर लूट करने वाले फोकटियों को अपने पड़ौस में देखा था। नतीजतन वे खफा हुए और शिवराज सिंह चौहान की खरीदी हुई अतिलोकप्रियता धराशायी हो गई। अब कांग्रेस के गुटीय संतुलन को साधकर सत्ता में आए कमलनाथ ने शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में जड़ विहीन कर दी गई भारतीय जनता पार्टी को फुटबाल बना दिया है। खुद भाजपा के नेता आश्चर्य से देख रहे हैं कि आखिर कमलनाथ की शक्ति का आधार क्या है। ऐसा क्या हो गया कि कमलनाथ कथित कैडर आधारित पार्टी को आए दिन ठोक रहे हैं और कोई बोलने वाला तक नहीं है। दरअसल शिवराज सिंह चौहान ने अपने नजदीक जैसै भ्रष्ट और नपुंसक लोगों की भीड़ जमा कर ली थी उनकी शक्ति का आधार केवल सरकार थी। सरकारी तंत्र का लाभ लेकर वे भ्रष्ट मंत्री अफसर विकास के नाम पर लिए गए कर्ज को जीमने में जुटे रहे। धनागमन के इस आंकड़े को बाहर बैठा कोई सामान्य शख्स भी अच्छी तरह समझ सकता है। शुरुआती दौर में उमा भारती ने जब राघवजी भाई को वित्तीय प्रबंधन की कमान थमाई तो उन्होंने प्रदेश की आय बढ़ाने में व्यावसायिक प्रबंधन का सहारा लिया। वे स्वयं टैक्स सलाहकार थे सो उन्होंने टैक्स प्रदाताओं से धन जुटाकर प्रदेश की बैलेंस शीट मजबूत की। जिससे भाजपा सरकार केन्द्र से अधिक धन प्राप्त कर सकी। मैचिंग ग्रांट भरपूर होने की वजह से तरह तरह की योजनाएं बनाईं गईं और प्रदेश के लिए वित्तीय प्रबंधन मजबूत किया गया। शिवराज सिंह चौहान इस वित्तीय प्रबंधन की वजह से भरपूर धन लुटाते रहे। हितग्राहियों के जो सम्मेलन भाजपा कर रही थी वह वास्तव में फुगावा था। दरअसल सत्ता के अंतिम मुहाने पर पंचायतों में बैठे दिग्विजय सिंह के समर्थक उस धन को आहरित कर रहे थे। वे गांव के लोगों को ठेलकर हितग्राही सम्मेलनों में भेज रहे थे और भाजपा उन्हें प्रदेश के विकास की धुरी मान रही थी। राजीव गांधी के पंचायती राज को माफिया राज में बदलने वाले इस षड़यंत्र की आहट जब पंचायत सचिव रहे आईएएस आरएस जुलानिया को लगी तो उन्होंने पंचायतों को जाने वाला फंड रोक दिया। इसके बावजूद इस दौरान जन धन का भारी अपव्यय हो चुका था। ठेकेदारों और अफसरों के जिस गठजोड़ ने राजनेताओं का संरक्षण पाकर विकास की कहानियां सुनाईं वे भी इस प्रक्रिया में भरपूर मजबूत हो चले थे। अब सत्ता की मलाई चाटने वाला ये माफिया इस बार कांग्रेस के साथ है, और कमलनाथ सरकार माफिया के विरुद्ध संग्राम का उद्घोष कर रही है। सरकार की निगाह में माफिया वो है जो टैक्स नहीं देता और कानूनी इबारतों को अनदेखा करके अनगढ़ तरीके से धन बनाने का काम कर रहा है। दरअसल प्रदेश और देश में धन बनाने वाला बड़ा वर्ग वो है जो बगैर किसी सरकारी मदद के अपना कारोबार करके धनार्जन करता है। निश्चित रूप से सरकारी तंत्र उसे अवैध कारोबारी कहता है। इसीलिए सरकार ने शुद्द के लिए युद्ध नाम का जो अभियान चलाया उसमें निरीह व्यापारियों की मौत हो गई। उन पर रासुका लाद दी गई और जेलों में ठूंस दिया गया। उनके उद्योग से जुड़े हजारों कर्माचारी बेरोजगार हो गए। इसके बावजूद कमलनाथ सरकार और उससे पोषित मीडिया इसे बेईमानों के विरुद्ध संग्राम बताता रहा। आज जब कमलनाथ माफिया के विरुद्ध शंखनाद करने के लिए सरकारी तंत्र को छूट दे रहे हैं तो वो कहर कांग्रेस के विरोधियों पर टूटने वाला है। जो अवैध कारोबार करने वाले कांग्रेस की गोदी में बैठे हैं या बैठ चुके हैं उन पर इस युद्ध का कोई असर पड़ने वाला नहीं है। इसके साफ संकेत कमलनाथ सरकार की कार्यप्रणाली को देखकर मिल जाता है। तबादले पोस्टिंग के कारोबार में जिस तरह खुलेआम नौकरियों की बोलियां लगाईँ गईं उससे साफ पता चलता है कि सरकार अपने विरोधियों को अपराधी बताने में कोई गुरेज नहीं कर रही है। जिस तरह कांग्रेस ने चुनाव के दौरान कर्ज माफी या सस्ती बिजली के वादे किए उसके लिए धन की जरूरत थी। ये धन इसी तरह बेरहमी से टैक्स वसूली से उगाया जा सकता है। साथ में बंदर हीरा खदान को नीलाम करके सरकार ने अपने धन की उगाही का एक अजस्र स्रोत भी तलाश लिया है। चुनावों को देखकर शिवराज सिंह चौहान ने रेत को टैक्स मुक्त करके अपने समर्थकों को खुश करने का खेल खेला था उसे भी कमलनाथ माफिया के विरुद्ध युद्ध बता रहे हैं। निश्चित रूप से सरकार और प्रदेश को चलाने के लिए धन की जरूरत होती है। यह धन टैक्स से ही जुटाया जाता है। जो सरकार अपनी आय का अस्सी फीसदी हिस्सा स्थापना खर्च में ही लुटा देती हो वह प्रदेश के लिए धन बनाने वाले कारोबारियों को माफिया कहे तो ये वास्तव में क्रूरता होगी। इसके बावजूद सरकार धड़ल्ले से फोकटियों को ये अधिकार दे रही है कि वे प्रदेश के लिए पैसा उत्पादन करने वाले या सेवाएं उपलब्ध कराने वालों को माफिया कहे क्योंकि वे सरकार से सहमत नहीं हैं। ये आपातकाल से भी ज्यादा नृशंस और निंदनीय कार्य कहा जाएगा। इतिहास में आपातकाल को इंदिराजी का सबसे घिनौना अत्याचार बताया जाता है लेकिन कमलनाथ का ये माफिया संग्राम सदियों तक डरावने अध्याय के रूप में जाना जाएगा।

Print Friendly, PDF & Email

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*