सरकार ने रोका जबलपुर के मत्स्य महाविद्यालय का अनुदान

मांझी समाज से भेदभाव भारी पड़ेगा बोले आनंद निषाद

भोपाल,2फरवरी(प्रेस सूचना केन्द्र)। विधानसभा चुनावों में रोजगार दिलाने का वादा करने के लिए इस्तेमाल किया गया छिंदवाड़ा मॉडल कांग्रेस के सत्ता में आते ही हवा हवाई साबित होने लगा है। मुख्यमंत्री कमलनाथ बात बात में युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए प्रशिक्षण दिलाने की बात करते हैं लेकिन सरकार का मछली पालन विभाग ये जवाबदारी उठाने को ही तैयार नहीं है।सरकार ने जबलपुर के मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय का अनुदान रोक दिया है जिससे वहां कई महीनों से वेतन नहीं बंट पा रहा है। सरकार की इस बेरुखी से मांझी समाज आक्रोश में है और उसके नेतागण दो दो हाथ करने की तैयारी कर रहे हैं।

प्रदेश में मछली पालन के क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने और पूंजी निर्माण के लिए निवृत्तमान भाजपा सरकार ने वर्ष 2012 में मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय जबलपुर की स्थापना की थी। मांझी समाज की एक मांग उनके बच्चों को उनकी पारंपरिक कला में प्रशिक्षित करने की भी थी। इसे देखते हुए कुलाधिपति के आदेशानुसार यह कालेज मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास विभाग ने शुरु किया था। पूरे मध्यप्रदेश में मछली पालन सिखाने वाला ये एकमात्र कालेज है।विभाग ने कालेज की स्थापना के साथ ही उसे पांच साल की ग्रांट उपलब्ध कराई थी। तबसे कालेज से निकले करीबन अस्सी विद्यार्थी आज देश भर में मछली पालन व्यवसाय में रोजगार पा रहे हैं और प्रदेश में मछली उत्पादन के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं।

कालेज शुरु होने के बाद से मंजूर पंचवर्षीय प्रोजेक्ट का समय विगत वर्ष अगस्त माह में पूरा हो गया था। अनुपूरक बजट पारित होने के साथ इसकी नई ग्रांट मंजूर होनी थी। एक सितंबर 2018 को मत्स्य पालन विभाग ने अनुपूरक बजट के लिए कालेज का प्रस्ताव प्रस्तुत ही नहीं किया। विभाग के संचालक ओपी सक्सेना ने तब आश्वासन दिया था कि विभाग का बजट आबंटित होते ही कालेज की ग्रांट नवीनीकृत कर दी जाएगी। उस वक्त चुनाव का माहौल था और आचार संहिता के दौरान कोई बड़ा फैसला नहीं लिया जा सका। अब जबकि नई सरकार अपना कामकाज सुचारू रूप से संभाल चुकी है और पिछले पांच छह महीनों से कालेज में वेतन तक नहीं बंट सका है तब विभाग और शासन दोनों ही कालेज को फंड देने में आनाकानी कर रहे हैं।

प्रमुख सचिव मछुआ कल्याण एवं मत्स्य विभाग अश्विनी कुमार राय का कहना है कि सरकार ने पांच साल के लिए बजट मंजूर किया था। मंजूरी देते वक्त कहा गया था कि भविष्य में कालेज अपने कामकाज का विस्तार अपने वित्तीय संसाधनों से करेगा। कालेज को शैक्षणिक जगत में अपनी गुणवत्ता स्थापित करनी चाहिए और बजट की व्यवस्था खुद करनी चाहिए।उनका कहना है कि इंडियन इंस्टीट्यूट आफ एग्रीकल्चर रिसर्च और उच्च शिक्षा अनुदान आयोग से अनुदान लेकर कालेज को चलाया जाना चाहिए। हालांकि यूजीसी के मान्यता दिलाने और अनुदान दिलाने की जवाबदारी शासन की ही होती है। जबकि आईएआरआई की ओर से अनुसंधान कार्यों के लिए अनुदान दिया जाता है।

हकीकत ये है कि सरकार की पहल पर शासन ने बाकायदा अधिसूचना जारी करके यह कालेज शुरु कराया था।जाहिर है कि कालेज की स्थापना का व्यय शासन को ही वहन करना था।शासन ने ये जवाबदारी अपनी ओर से मत्स्य पालन विभाग को दी थी। अपना रुतबा दिखाते हुए मत्स्य पालन विभाग ने कालेज को शुरु कराते समय ऐसे शिक्षकों की भर्ती कर ली थी जिनकी पढ़ाई मत्स्य विज्ञान में नहीं हुई थी। ऐसे में उच्च शिक्षा के राष्ट्रीय संस्थानों की कसौटी पर कालेज को कसा जाना संभव नहीं था। इसके बावजूद चूंकि शासन ने गारंटी ली थी इसलिए कालेज का शैक्षणिक कामकाज सुचारू तौर पर चलता रहा।

मत्स्य पालन के क्षेत्र में रोजगार और पूंजी निर्माण की बढ़ती संभावनाओं को देखते हुए देश के सीमांत राज्यों ने अपने युवाओं को इस क्षेत्र में प्रशिक्षित किया है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में दो कालेज हैं जहां इस कारोबार के कुशल युवाओं को तैयार किया जाता है। बिहार जैसे राज्य में भी मछली पालन के स्टार्टअप तैयार हो चुके हैं जबकि मध्यप्रदेश इस क्षेत्र में बहुत पिछड़ा है।

मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय जबलपुर के प्रभारी अधिष्ठाता डॉ.एस.के.महाजन का कहना है कि पिछले सालों में हमने राज्य के बच्चों को वैश्विक कसौटियों से मुकाबले के लिए तैयार किया है। आज हमारे कालेज से निकले छात्र देश के मछली उद्योग की शीर्ष जवाबदारियां संभाल रहे हैं। विशाखापट्टनम के मछली उद्योग में छात्रदल के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने गए डॉ.महाजन ने कहा कि मत्स्य पालन विभाग और उसका ये कालेज अपनी जवाबदारी ठीक तरह से निभा रहा है। यदि सरकार की ओर से इसे संरक्षण मिले तो प्रदेश के युवाओं को रोजगार के नए अवसर देने में हम कामयाब होंगे। कालेज की ओर से अनुदान और विकास संबंधी प्रस्ताव हमने विभाग को भेजा है, जिस पर शासन की मंजूरी का हमें इंतजार है।

हालांकि मांझी समाज के साथ किए जा रहे सरकार के भेदभाव से मछुआरों के सर्वमान्य नेता आनंद निषाद बहुत नाराज हैं। उनका कहना है कि हमने जब प्रदेश में अपना राजनीतिक वजूद खंगालना शुरु किया तब घबराकर भाजपा की शिवराज सरकार ने इस कालेज की स्थापना की थी। बाद में कुछ राजनीतिक कारणों से मांझी समाज भेदभाव का शिकार हो गया। विधानसभा चुनाव में मांझी समाज ने राष्ट्रीय महान गणतंत्र पार्टी के बैनर तले अपने स्वाभिमान की लड़ाई लड़ी। जिसके कारण भाजपा की सरकार का पतन संभव हुआ। अब कमलनाथ की कांग्रेस सरकार मछुआरों के बच्चों से शिक्षा का हक छीन रही है, जिसे देखते हुए हम आने वाले समय में कांग्रेस के वजूद पर भी प्रहार कर सकते हैं। उनका कहना है कि प्रदेश के जन,जंगल,जमीन, जल, और जानवरों पर पहला हक प्रदेश के मूल निवासियों का है। सरकार यदि मांझी समाज के बच्चों की शिक्षा में रोड़े अटकाएगी तो हम उसकी ईंट से ईंट बजा देंगे। प्रदेश के हर जिले और हर विधानसभा सीट पर हमारी समाज का वोट बैंक निर्णायक है। हम इसे एकजुट कर रहे हैं और आगामी चुनावों में हमारी मौजूदगी सरकार बनाने और बिगाड़ने में निर्णायक साबित होगी।

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