शिक्षा में अराजकता से कैसे निपटेंगे जावड़ेकर

-आलोक सिंघई-

दंभ से सराबोर भारत के शैक्षणिक संस्थानों में –या विद्या सा मुक्तये– का नारा लगाने वालों की भरमार है। जुगत भिड़ाकर या चयन के अवैज्ञानिक मापदंडों का लाभ लेकर स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में फर्जी शिक्षकों की भीड़ गुजारा भत्ता पा रही है। यही वजह है कि सफलता के मापदंडों पर भारत का युवा सोशल मीडिया तक ही पहुंच पाया है। सवा सौ करोड़ का देश पेटेंट पाने के पैमाने पर फिसड्डी साबित हो रहा है। सरकारें बदल गईं हैं, पर शैक्षणिक संस्थानों का ढर्रा वही है। देश को विश्वगुरु बनाने का सपना पाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मुर्दों में जान फूंकने की कितनी भी कोशिश करें लेकिन जब तक उनकी पार्टी भाजपा इन फर्जी शिक्षकों के स्थान पर असली मुक्तिदाताओं को नहीं बिठाती तब तक बदलाव की शुरुआत भी कैसे हो सकती है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने शैक्षणिक संस्थाओं में अपना जनाधार बढ़ा लिया है इसके बावजूद युवाओं की इस बैचेनी को भांपने में भाजपा की सरकारें पूरी तरह असफल साबित हो रहीं हैं।

सागर के डाक्टर सर हरिसिंह गौर केन्द्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के पूर्व छात्रों ने आगामी 14- 15 अप्रैल को पूर्व विद्यार्थियों की एल्युमनी मीट बुलाई है। पूर्व छात्रों के मिलने का ऐसा अवसर कोई पहली बार नहीं आया है। जमाने भर के शैक्षणिक संस्थानों में विद्यार्थी इस तरह के आयोजन करते रहते हैं। सागर के भी कुछ पुरा छात्रों ने इस प्रथा की नकल करने की कोशिश की,लेकिन उनका प्रयास कुछ अलग ही अंदाज में सामने आया है। पत्रकारिता विभाग से निकले ये छात्र देश भर के विभिन्न शहरों में ख्यातनाम पत्रकार बन चुके हैं। उन्हें मलाल है कि कभी इस विभाग के जिन छात्रों को कटंगी के रसगुल्ले की तरह खास प्यार मिलता था वो अब क्यों नहीं मिल रहा है। उनका प्यारा संस्थान आज देश के कई अन्य पत्रकारिता पढ़ाने वाले संस्थानों के बराबर ऊंचाई तक भी क्यों नहीं पहुंच पाया । आज इस संस्थान में गिने चुने विद्यार्थी ही क्यों प्रवेश लेते हैं। उन्हें आग में तपाकर कुंदन बनाने का प्रयास कहां गुम हो गया है। ऐसे तमाम सवाल हैं जिनके जवाब ढूंढ़े जा रहे हैं। पुरा छात्रों ने इस एल्युमनी मीट के लिए जो वाट्सएप समूह बनाया है उसमें चल रहे संवाद उस बैचेनी का उद्घोष कर रहे हैं।

इस संस्थान की विकास यात्रा अलबेली है। बोफोर्स कांड की गूंज जब पूरे देश में चल रही थी,तब आकाशवाणी के एक प्रसारण केन्द्र पर जीवित प्रसारण के दौरान अनोखी घटना घटित हो गई। एक बच्चे ने बोल दिया गली गली में शोर है राजीव गांधी चोर है। देश में कांग्रेस का दबदबा था और ये कल्पना में भी नहीं सोचा जा सकता था कि सरकारी मीडिया से इस तरह की आवाज भी आ सकती है। जाहिर है कि जागरूक जनता ने इस घटना को गंभीरता से लिया। अखबारों में भी ये खबर प्रकाशित की गई। अब जो विद्यार्थी पत्रकारिता की पढ़ाई में प्रवेश लेना चाहते हैं वे कितने जागरूक हैं ये जानने के लिए प्रवेश परीक्षा में उस आकाशवाणी केन्द्र का नाम पूछा गया था। सवाल सीधा था, प्रवेशार्थियों की जागरूकता जानने के लिए पूछा गया था। पत्राकारीय अभिरुचि जानने का इससे अच्छा पैमाना कोई दूसरा नहीं हो सकता था। इसके बावजूद कांग्रेस की चिलम भरने वाले छात्र संगठनों ने इसे उछालना शुरु कर दिया। इस प्रश्नपत्र को बनाने वाले पत्रकारिता के मूर्धन्य शिक्षक प्रदीप कृष्णात्रे पर सवाल उठाए जाने लगे। भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन के कतिपय गुंडों ने अभिव्यक्ति की आजादी के प्रतिमान गढ़ने वाली इस फैक्टरी पर हमला कर दिया। प्रदीप कृष्णात्रे का मुंह काला करके विश्विद्यालय परिसर में जुलूस निकाला गया। इस तरह की घटना झकझोर देने वाली थी। देश भर के समाचार पत्रों ने इस घटना को गंभीरता से लिया। नवभारत टाईम्स, जनसत्ता समेत तमाम अखबारों ने इस कलंकित घटना का विरोध करते हुए संपादकीय लिखे। मामला अदालत पहुंचा। सालों चला। घटना के बाद इस विभाग की सक्रियता और भी बढ़ गई। शिक्षकों ने दुगुने उत्साह से विद्यार्थी गढ़ना शुरु कर दिया। इसके बावजूद राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ता गया और प्रतिभाशाली शिक्षकों ने विभाग से पलायन कर लिया। इस बीच अभियुक्त को कांग्रेस की सरकारों ने पुरस्कृत करते हुए विश्वविद्यालय के इसी विभाग में मीडिया असिस्टेंट जैसी गैर शैक्षणिक नौकरी देकर उपकृत करवा दिया। इसके बाद विवि और इसके पत्रकारिता विभाग की साख धूलधूसरित हो गई। बाद में विद्यार्थी तो निकले लेकिन फील्ड पर वे ही सफल हो सके जिनमें खुद कुछ कर गुजरने की जिजीविषा थी। विभाग की निरंतर गिरती साख का नतीजा ये है कि आज वहां चंद विद्यार्थी ही डिग्री लेने पहुंचते हैं।

ये बात पत्रकारिता के शीर्ष पर पहुंच चुके विभाग के पूर्व विद्यार्थियों को आज भी सालती है कि जिस संस्थान को अपनी समर्पित शिक्षा के कारण शीर्ष पर होना था वो आज गुमनामी के अंधेरे में क्यों धकेला जा रहा है। समय बदला, सरकारें बदलीं लेकिन विश्वविद्यालय का ढर्रा नहीं बदला। केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद कभी ये प्रयास नहीं किए गए कि देश को कुशल संवाद से आगे ले जाने वाले मीडिया कर्मी कैसे तैयार किए जाएं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय हो या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, या देश का शैक्षणिक ढांचा संवारने वाला कोई अन्य संस्थान कोई भी अब तक इस पत्रकारिता संस्थान की खोई साख नहीं लौटा सका है। इस कसमसाहट ने ही इस बार एल्युमनी मीट की चाहत को परवान चढ़ा दिया है।

सागर का पुरा छात्र सम्मेलन अब केवल गलबहियां करने का अरमान लिए नहीं आयोजित नहीं हो रहा है। इसमें कई सवाल घुमड़ रहे हैं। क्या देश की शिक्षा कभी क्षुद्र राजनीतिक चंगुल से आजाद हो सकेगी। शैक्षणिक संस्थानों में चापलूसी या कृपा के नाम पर जो गंदगी जमा हो गई है उसे आखिर कब तक पाला पोसा जाता रहेगा। मोदी सरकार अपनी पूर्ववर्ती सरकारों से आखिर किस नजरिए से अलग है। उसने देश को जो भ्रष्टाचार गंदगी और अयोग्यता से मुक्ति दिलाने का स्वप्न दिखाया था वो क्या कभी पूरा होगा। आखिर अच्छे दिन कब आएंगे। डिग्रियों की आड़ में ज्ञान के संरक्षण और संवर्धन की हत्या कब तक की जाती रहेगी। मानव संसाधन और विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर आखिर कर क्या रहे हैं । देश के शैक्षणिक ढांचे में सुधार की उनकी क्या योजना है। पत्रकारिता के पुरा छात्रों को ही यदि अपने प्रिय संस्थान को सुधारने और संवारने का कार्य करना है तो फिर सरकार की जरूरत ही क्या है। सरकार की ये बेरुखी क्या देश में किसी अराजकता को पनपने का अवसर तो नहीं दे रही । कल यदि शैक्षणिक संस्थानों में सुधार और बदलाव की आकांक्षा गुटीय टकराव की वजह बन गई तो फिर उससे कैसे निपटा जा सकेगा।

ये तमाम ज्वलंत सवाल न केवल सागर के डाक्टर सर हरिसिंह गौर विवि कुनबे के बीच सुलग रहे हैं वे चाहते हैं कि उनका प्यारा पत्रकारिता संस्थान एक बार फिर अपनी पहचान स्थापित करे। यहां से निकले पत्रकारिता के शावक देश में बदले निजाम का संदेश फैलाएं। देश के आम जनमानस को भी बदलाव की बयार का इंतजार है। सरकार को यदि अपनी उपस्थिति दिखानी है तो उसे कोई ठोस कदम उठाकर दिखाने होंगे। शेर बूढ़ा हो जाए तो उसके मुंह पर मक्खियां भिनकने लगती हैं, पर जब शेर दहाड़ता नजर आ रहा हो तब उसके मुंह पर मक्खियां भिनकने लग जाएं तो साफ है कि उसने मक्खियों से ही यारी कर ली है।

(लेखक स्वयं डाक्टर सर हरिसिंह गौर विवि के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के पूर्व छात्र हैं)

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