छोटे उद्यमों से दूर होगी देश की बेरोजगारी

डॉ. अरुणा शर्मा प्रैक्टिशनर डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट और इस्पात मंत्रालय की पूर्व सचिव


समावेशी विकास के लिए एमएसएमई ही सबसे बेहतर विकल्प है। उसमें आ रही समस्याओं को नजरअंदाज नहीं कर सकते।डॉ. अरुणा शर्मा,प्रैक्टिशनर डेवलपमेंट इकोनॉमिस्ट और इस्पात मंत्रालय की पूर्व सचिव

मध्यप्रदेश और भारत में अपने फौलादी इरादों से बदलाव की इबारत लिखने वाली देश की प्रख्यात आईएएस अरुणा शर्मा आर्थिक मुद्दों पर देश का मार्गदर्शन कर रहीं हैं। उन्होंने पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में भारत के आर्थिक सुधारों पर गहरा अध्ययन किया है। उनका कहना है कि भारत के कुल एमएसएमई में से 50% ग्रामीण क्षेत्र में संचालित होते हैं और वे कुल रोजगारों में 45% का योगदान देते हैं। एमएसएमई मंत्रालय के डाटा के अनुसार इस सेक्टर के कुल रोजगार का 97% हिस्सा माइक्रो सेगमेंट से प्राप्त होता है। एमएसएमई पर फोकस करने से देश की ग्रोथ बढ़ेगी।
भारत की आबादी 1.4 अरब है, जिसमें से 65% आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की 1 मार्च 2023 की रिपोर्ट के अनुसार 7.45% युवा ऐसे हैं, जिन्हें नौकरियां नहीं मिल रही हैं। इस कारण भारत की 3.7 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी की ग्रोथ समावेशी नहीं रह जाती है। हमारे सामने चुनौती है कि न केवल इस ग्रोथ स्टोरी को जारी रखें, बल्कि साथ ही रोजगार के अवसर भी पैदा करें। यह एमएसएमई यानी छोटे और मंझोले उद्योगों द्वारा ही किया जा सकता है। भारत में रोजगारों का जो परिदृश्य है, उसमें आज भी कृषि क्षेत्र द्वारा सबसे ज्यादा 42% रोजगार सृजित किए जाते हैं, सेवा क्षेत्र का योगदान 32% और उद्योग क्षेत्र का 25% का है। लेकिन केवल कृषि और सेवा से दीर्घकालीन और गुणवत्तापूर्ण रोजगार नहीं मिल सकते, इसके लिए उद्योग पर फोकस जरूरी है।
बड़ी संख्या में एमएसएमई के बंद होने की समस्या : उद्यम पोर्टल में रजिस्टर्ड एमएसएमई की बात करें तो मौजूदा वित्त वर्ष में यह 18.04 लाख पंजीयनों तक पहुंच गई है, जबकि विगत वित्त वर्ष में कोई 10 हजार एमएसएमई बंद हुए हैं। मौजूदा वित्त वर्ष में बंद होने वाली एमएसएमई की संख्या 2016 से 2022 के दौरान बंद हुए एमएसएमई की कुल संख्या से भी अधिक है। सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए जाने के बावजूद महामारी के उपरांत एमएसएमई को चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कुल पंजीयनों में से 0.59% यानी 30,997 ने रजिस्ट्रेशन रद्द करवा दिए, 67% ने अनियतकालीन रूप से अपने उद्यम को बंद कर दिया और एसआईडीबीआई के एक सर्वेक्षण के मुताबिक 50 हजार से ज्यादा ने नौकरियां गंवाईं। जो सेक्टर देश में युवाओं को रोजगार देने में सबसे ज्यादा सक्षम है, वही ऐसी समस्याओं से जूझ रहा है, जिनका सामना नहीं किया गया है।
ऑटो मोड में एनपीए घोषित करने की समस्या : बड़ी कम्पनियों को कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती का लाभ मिल जाता है, लेकिन एमएसएमई को करों में छूट नहीं दी जाती। महामारी के दौरान और उसके बाद कार्यशील पूंजी बड़ी समस्या बन गई थी और एक छोटे प्रतिशत को यह प्रदान की गई थी, लेकिन मौजूदा पूंजी/कार्यशील पूंजी ऋण और इस नए अतिरिक्त कर्ज की प्रणाली को सुधारने के बजाय एमएसएमई पर पुराने और नए कर्जों की किश्तों के भुगतान का बोझ लाद दिया गया। समस्या तब और बढ़ गई, जब रिटेलरों, सेलरों, ट्रेडरों आदि के 90 दिनों के अनपेड लोड को डिफॉल्टर्स घोषित करने के बजाय ऑटो मोड में एनपीए घोषित कर दिया गया।
जीएसटी से सम्बंधित समस्याएं : जीएसटी के पांच वर्ष पूर्ण होने पर गुड्स एंड सर्विसेस टैक्स नेटवर्क की वित्त वर्ष 2021-22 की एक रिपोर्ट के मुताबिक जीएसटी के लिए रजिस्टर की गई कुल कम्पनियां 1.45 करोड़ हैं, जिनमें से 78% राजस्व संग्रह निजी और सार्वजनिक कम्पनियों, न्यासों, विदेशी और अन्य शासकीय संस्थाओं से प्राप्त होता है, जबकि स्वामित्व वाली फर्मों से प्राप्त होने वाला जीएसटी राजस्व संग्रह 13.28% और साझेदारी फर्मों से प्राप्त होने वाला जीएसटी राजस्व संग्रह 7.29% है। वहीं 69.80% कुल कर-संग्रह मंझोले और बड़े उद्योगों से प्राप्त होता है, 16.67% छोटे उद्योगों से और केवल 13.53% जीएसटी माइक्रो एंटरप्राइजेस से प्राप्त होता है। ऐसे में यह सुझाव दिया गया है कि माइक्रो और छोटी इकाइयों के लिए जीएसटी दरों में राहत दी जाए।
डिजिटल भुगतान को हतोत्साहित करना : डिजिटल भुगतान की ओर शिफ्ट सुरक्षा कारणों से हुआ है, लेकिन आरटीजीएस और एनआईएफटी पर सेवा शुल्क लेकर इसे हतोत्साहित किया जा रहा है। एनपीसीआई का कहना है कि यूपीआई नि:शुल्क है, तब तो यही सिद्धांत किसी भी तरह के डिजिटल भुगतान पर लागू होना चाहिए, फिर वह आईएमपीएस हो, आरटीजीएस या एनआईएफटी हो। वैसे भी ये मुद्रा की छपाई में आरबीआई का लगने वाला पैसा बचा रहे हैं और नगदी के आदान-प्रदान में बैंकों का होने वाला व्यय भी कम कर रहे हैं। देश में समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए एमएसएमई ही सबसे बेहतर विकल्प है। उसमें आ रही समस्याओं को नजरअंदाज करने से विकास एकतरफा होकर रह जाएगा। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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