पीएफआई पर प्रतिबंध पर्याप्त नहीं


पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के ठिकानों पर राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण(एनआईए) के छापों ने देश में राजनैतिक रूप से गुमराह तबके की असलियत को उजागर कर दिया है। ये कड़वी सच्चाई है कि लगभग एक सौ तीस करोड़ की आबादी के विशाल हिंदुस्तान में बड़ा तबका आज भी मूलभूत जरूरतों के लिए जद्दोजहद कर रहा है। केन्द्रीय मंत्री और भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने भी स्वीकार किया है कि भारत धनवान देश है लेकिन यहां की जनता गरीब है, लोग बेरोजगारी और भुखमरी से जूझ रहे हैं। यहां आज भी जातिवाद, अस्पृश्यता और मंहगाई ने लोगों का जीवन दूभर कर रखा है। उनकी इस स्वीकारोक्ति के बावजूद ये भी सच्चाई है कि देश की अधिसंख्य आबादी अपना जीवनस्तर सुधारने की हरसंभव कोशिशें कर रही है। इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपना जीवन संवारने के लिए आतंक से आधिपत्य का रास्ता चुनने का ख्वाब देख रहे हैं। इन पर प्रहार समय की मांग है। एनआईए और तमाम सुरक्षा एजेंसियों ने बड़ी कुशलता से पीएफआई के अड्डों पर छापों में और स्लीपर सेल से जुड़े लोगों को गिरफ्तार किया है। पीएफआई के सहयोगी संगठनों और राजनैतिक विंग सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया (एसडीपीआई) में भी सक्रिय लोगों की गिरफ्तारियां हुईं हैं। लंबी छानबीन के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने जो तथ्य जुटाए हैं उनकी वजह से छापों की अहमियत बढ़ गई है। ये भी तय है कि सबूतों के आधार पर पकड़े गए लोगों की सजा अभी से मुकर्रर हो गई है। साक्ष्य इतने अकाट्य हैं कि आतंक और विद्रोह का जाल फैलाने वालों का शेष जीवन अब जेलों में ही कटेगा। इन तथ्यों की जानकारी अभी देश के लोगों को नहीं है यही वजह है कि एनआईए के छापों को लोग राजनीति से प्रेरित बता रहे हैं। न केवल मुसलमानों बल्कि उन्हें अपना वोट बैंक मानने वाले लालू प्रसाद यादव और मायावती जैसे नेताओं ने भी छापों पर नाराजगी जताना शुरु कर दिया है। मुस्लिम समुदाय के ज्यादातर व्यक्ति यही कहते सुने जा रहे हैं कि भाजपा और खासतौर पर आरएसएस के इशारे पर ये कार्रवाई अपने विरोधियों को कुचलने के लिए की गई है। जबकि हकीकत ये है कि विदेशों से करोड़ों रुपयों का धन गरीबों के कल्याण के नाम पर लाया जा रहा था और उसका इस्तेमाल आतंकी वारदातों को अंजाम देने के लिए किया जा रहा था। ये कहा जाता था कि अरब देशों की तेल समृद्धि का बड़ा हिस्सा जकात के नाम पर देश को मिलता है। धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भी अरब देशों से जो धन आता है उससे गरीब मुस्लिम आबादी का कल्याण किया जा रहा है। ये बात ऊपरी तौर पर सही भी नजर आती है। देश भर में खुले मदरसों के माध्यम से जो धार्मिक शिक्षा दी जाती है उससे कई प्रतिभाशाली बच्चे भी सामने आते हैं लेकिन वे तो तब भी उभरते जब उन्हें देश के सरकारी स्कूलों में शिक्षा मिली होती। ईसाईयों ने भी शिक्षा में जो निवेश किया है उससे भी दुनिया के लिए अच्छे पेशेवर मिले हैं। इसका मतलब ये तो नहीं कि वे आतंक की नर्सरी भी बन गए। एनआईए को मदरसों और जकात की आड़ में आतंकियों को फंडिंग किए जाने के जितने स्पष्ट सबूत मिले हैं उससे साफ जाहिर होता है कि भारत जैसे विशाल बाजार पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए दुनिया की कई शक्तियां किस तरह देश को गृह युद्ध की ओर धकेल रहीं हैं। इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक एंड सीरिया यानी आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठन देश की तरुणाई को गुमराह करने के लिए क्या क्या हथकंडे अपना रहे हैं इसके भी सबूत एनआईए के हाथ लगे हैं। स्कूल, कालेजों के परिसरों में कैंपस फ्रंट आफ इंडिया( सीएफआई) और नेशनल वीमेंस फ्रंट( एनडब्ल्यूएफ) के माध्यम से कैसे बच्चों को साफ्ट टारगेट के रूप में गुमराह किया जाता है ये भी चिंताजनक है। यही वजह है कि सबूतों को देखते हुए मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा अपनी नाराजगी तो जता रहा है लेकिन उसने इस कार्रवाई में कोई व्यवधान नहीं डाला है। भारत के मुसलमान प्रगतिशील माने जाते हैं। यही वजह है कि दुनिया के आतंकी संगठन भारत के मुसलमानों पर भरोसा नहीं करते हैं। मुस्लिम आतंकियों के निशाने पर रहने वाले आरएसएस को भी भारत के मुसलमान अब तिरछी निगाह से नहीं देखते हैं। उन्हें ये तो पता है कि आरएसएस हिंदुत्व की विचारधारा का समर्थन करता है लेकिन वे ये भी जानते हैं कि हिंदुत्व की विचारधारा सर्वपंथ समभाव के घोषित विचार पर कार्य करती है। आरएसएस ने कभी मुस्लिम धर्म को न तो नकारा है न ही उस पर कोई प्रहार किया है। भारत में मुसलमान आज भी अपनी योग्यता के बल पर ऊंचाईयां छू सकता है। यही वजह है कि भारत में आतंक के पर फैलाने का प्रयास टांय टांय फिस्स हो गया है। अब सरकार को सोचना होगा कि आखिर वे क्या वजहें थीं जिसके चलते लोग भारत की साम्प्रदायिक एकता में सेंध लगाने की जुर्रत भी करते हैं। मोदी सरकार ने कई मूलभूत समस्याओं पर प्रहार किया है। इसके बावजूद सरकार के आंख,नाक, कान ,हाथ और पैर जिस तंत्र पर टिके हैं उनकी कार्यक्षमता लगभग शून्य है। मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल ने तो सार्वजनिक तौर पर कहा है कि हम दो लाख करोड़ की अर्थव्यवस्था में से साठ हजार करोड़ रुपए केवल तनख्वाह बांटते हैं इसके बावजूद सरकारी तंत्र जन समस्यायों के निराकरण की जवाबदारी नहीं निभा पा रहा है। सरकार ने जो हितग्राही मूलक योजनाएं बनाई हैं उनका लाभ भी जनता को नहीं मिल पा रहा है। लगभग अठारह साल से काम कर रही शिवराज सिंह चौहान सरकार अब तक इसी सरकारी तंत्र के सहारे अपने राजनैतिक उद्देश्य पाने का प्रयास करती रही है। उसके मंत्री विधायक और कार्यकर्ता बार बार चेताते रहे हैं कि सरकारी अफसर जनता की योजनाओं को लागू नहीं कर रहे हैं लेकिन इस तंत्र ने पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं को योजनाओं की रिश्वत देकर खामोश कर दिया। आज जब चुनाव की बेला आ रही है तब भाजपा के नेतागण अपनी अक्षमता और असफलता का ठीकरा अफसरशाही पर थोप रहे हैं। इससे जनता की समस्याओं का समाधान कैसे हो सकेगा। मोदी सरकार भी यदि यही शैली अपना ले तो जाहिर है कि जनता को अपनी जरूरतों के लिए अन्य साधनों की ओर रुख करना होगा। आतंकी साजिशों ने भारत की इसी कमजोरी का फायदा उठाने की चेष्ठा की है। इसका अर्थ ये भी हुआ कि सरकार भले ही अपनी सुरक्षा एजेंसियों के सहारे आतंक के साजिशकर्ताओं को पकड़कर जेलों में ठूंस दे लेकिन दहशत फैलाने की ये परंपरा बंद नहीं होगी। भारत की अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी डॉलर के आयात पर निर्भर होती है। सरकार का प्रयास भी होता है कि किसी भी बहाने डॉलर देश में आते रहें । यही कारण है कि कल्याणकारी गतिविधियों के लिए विदेशों से धन लाने वालों को सरकार टैक्स में भी राहत देती है। अब यदि उस धन का इस्तेमाल आतंकियों गतिविधियों के लिए किया जाने लगे तो भारत की विकास प्रक्रिया षड़यंत्रों की भेंट चढ़ जाएगी। इसे रोकने के लिए एनआईए ने जो कार्रवाई की है उसका समर्थन किया जाना चाहिए। इसके साथ साथ ये भी जरूरी है कि सरकार पूरी पारदर्शिता से अपनी विकास प्रक्रियाएं चलाए जिससे असंतोष को जड़ें जमाने का अवसर न मिले। आरएसएस और भाजपा को अपने कार्यकर्ताओं का भी प्रशिक्षण इस तरह से करना चाहिए ताकि वे अपनी भड़काऊ बयानबाजियों से लोगों को विद्रोह का मार्ग अपनाने के लिए मजबूर न करें। पीएफआई पर प्रतिबंध पर्याप्त नहीं है इससे आगे बढ़कर हमें एक ऐसी विचारधारा का सूत्रपात करना होगा जो न केवल भारत बल्कि विश्व में भी मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करे।

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