वाहन कंपनियों की सेल्स एजेंट क्यों बनी कमलनाथ सरकार

मध्यप्रदेश की कमलनाथ कांग्रेस सरकार इन दिनों भारी अंतर्विरोधों से जूझ रही है इसके बावजूद वह अपनी घिसी पिटी शासन शैली से मुक्त होने का प्रयास नहीं कर रही है। इसकी वजह उसके आकाओं की वह रणनीति है जिससे पार्टी को भारी आय होती रही है। पार्टी की आय का ढांचा जिस चुनावी चंदे पर टिका है उसे केन्द्रीय मोटर व्हीकल एक्ट के सुधारों ने तगड़ी चुनौती दी है। इसी कारण से आर्थिक संकटों से घिरी कमलनाथ सरकार प्रदेश की आय बढ़ाने का ये नया अवसर छोड़ रही है। एक्ट पर तत्काल अमल न करने के लिए उसने जनता की असुविधा का हवाला दिया है। हकीकत ये है कि वह अपने नागरिकों को वैकल्पिक सस्ता परिवहन दिलाने के बजाय जीवाश्म ईंधन आधारित मंहगे परिवहन के लिए मजबूर कर रही है।

नए मोटर व्हीकल एक्ट में तगड़े जुर्माने के प्रावधान को लेकर पूरे देश में बहस चल रही है। कई राज्यों ने तो इसे लागू कर दिया है पर कई राज्य इसके प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार के परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत ने ये कहकर प्रावधान लागू करने से इंकार कर दिया कि हम इन प्रावधानों का परीक्षण करा रहे हैं। हमारे पास ये अधिकार है कि हम एक्ट के प्रावधानों का परीक्षण करे और उसे स्थानीय जरूरतों के अनुसार लागू करें। हालांकि ऐसा करते हुए सरकार को अपनी आय बढ़ाने का एक बड़ा अवसर छोड़ना पड़ रहा है।

केद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि देश में वाहन दुर्घटनाएं बढ़ रहीं हैं और प्रतिवर्ष लगभग डेढ़ लाख दुर्घटनाओं में 48000 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ रहा है। अधिकतर दुर्घटानाओं के मामलों में सड़क परिवहन के नियमों का उल्लंघन ही प्रमुख वजह होता है। नियमों के पालन के लिए जो शर्तें रखीं गईं थीं वे इतनी सरल थीं कि लोग आसानी से चालान भरकर निश्चिंत हो जाते थे। अब दंड के प्रावधान इतने कड़े किए गए हैं कि लोग सड़कों पर चलते समय यातायात के नियमों का पालन करने को मजबूर हो जाएंगे। दस्तावेजों के अभाव में घायलों और मृत व्यक्तियों को क्षतिपूर्ति भी नहीं मिल पाती है इसलिए नए मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधान लोगों को सुरक्षा दिलाने में मददगार साबित होंगे।

इसके विपरीत मध्यप्रदेश राज्य के पुलिस और परिवहन विभाग ने दस्तावेजों के परीक्षण के लिए सिर्फ नियमों का उल्लंघन करने वाले वाहन चालकों को रोके जाने की व्यवस्था की है। यदि वाहन चालक नियमों का पालन करते हुए यातायात करेंगे तो पुलिस उन्हें नहीं रोकेगी। वाहन चालक नियम तोड़ते हैं तो फिर उनके दस्तावेज भी चेक किए जाएंगे और चालानी कार्रवाई भी की जाएगी। वास्तव में इसकी बड़ी वजह राज्य सरकार के आरटीओ दफ्तरों में फैला भ्रष्टाचार और अव्यवस्था है। वाहन लाईसेंस बनवाने के लिए लोगों को इतने चक्कर काटने होते हैं कि वे बगैर दस्तावेज पूरे करवाए ही वाहन चलाना शुरु कर देते हैं। वाहन चालकों को वाहन का पंजीयन प्रमाणपत्र, और लाईसेंस बनवाने के लिए जो रिश्वत देना पड़ती है वह इसके लिए निर्धारित शुल्क से कई गुना ज्यादा होती है। चक्कर काटने होते हैं सो अलग।

दरअसल भारत में राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने इतनी सारी वाहन कंपनियों को दुपहिया, चारपहिया वाहन बनाने की छूट दे डाली थी कि पूरे देश में सार्वजनिक परिवहन का ढांचा धराशायी हो गया। बड़ी संख्या में चार पहिया वाहन आ जाने से बसों से होने वाला सार्वजनिक परिवहन ढप पड़ गया। मध्यप्रदेश में राज्य सड़क परिवहन निगम जैसे प्रतिष्ठान को बंद करने की एक बड़ी वजह यह भी रही है। सार्वजनिक परिवहन बहुत सस्ता पड़ता है लेकिन इसके बावजूद भारत जैसे गरीब देश में राजीव गांधी की सरकार ने मंहगे वैयक्तिक परिवहन को बढ़ावा दिया। तेल उत्पादक देशों के व्यापारियों ने वाहन निर्माण में रुचि ली और देश में कई वाहन निर्माता कूद पड़े। जिसकी वजह से भारत की सड़कें वाहनों से पट गईं। हालात ये हो गए कि सड़कें चौड़ी करने के लिए, नए राजमार्ग बनाने के लिए देश को कर्ज लेना पड़ा। पिछली भाजपा सरकारों ने सड़क, बिजली और पानी के सुधार के नाम पर इतना कर्ज लिया कि प्रदेश को अपनी आय का बड़ा हिस्सा कर्ज का ब्याज चुकाने पर खर्च करना पड़ रहा है।

कमलनाथ सरकार के सामने चुनौती है कि वह कैसे उत्पादकता बढ़ाए। उत्पादकता की लागत कैसे घटाए। इसके बावजूद उसकी रुचि जनता को सस्ता सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध कराने में नहीं है। कांग्रेस पार्टी के चुनावी चंदे का बड़ा हिस्सा तेल उत्पादक देशों, वाहन कंपनियों, वाहन कलपुर्जे बनाने वाली कंपनियों से ही आता है। यदि वह केन्द्रीय मोटर व्हीकल एक्ट को सख्ती से लागू करती है तो लोग सार्वजनिक परिवहन के साधनों की मांग करेंगे।वे अपने वाहन खरीदने के बजाए सार्वजनिक बसों में यात्रा करना पसंद करेंगे।इससे वाहन कंपनियों का मुनाफा घटेगा। तेल की खपत घटेगी और तेल कंपनियों को नुक्सान होगा।यही वजह है कि कमलनाथ सरकार मोटर व्हीकल एक्ट के प्रावधानों को सख्ती से लागू नहीं करना चाहती है। बेशक तेल खरीदी के नाम पर प्रदेश और देश की जनता को अपनी आय का बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ता है। ये रकम विदेशी तेल कंपनियों तक जाती है। भारत की उत्पादकता की लागत बढ़ती है और मुनाफा तेल कंपनियों को होता है। यही वजह है कि तेल उत्पादक कंपनियां भारत में ऐसी सरकारें चाहती हैं जो परिवहन के नाम पर न तो वाहनों की कटौती करे और न ही सड़कों पर खर्च घटाए। इसके लिए वे राजनीतिक दलों को मोटा चंदा भी देती हैं।

वैकल्पिक ईंधन के रूप में बिजली आधारित सार्वजनिक परिवहन के साधन आज मौजूद हैं। प्रदेश में बिजली का उत्पादन खपत से ज्यादा हो रहा है। बिजली कंपनियों को अपने अनुबंधों की वजह से बिजली खरीदी किए बगैर भी उसकी कीमत चुकानी पड़ रही है। ऐसे में जरूरत है कि अतिरिक्त बिजली की मदद से सरकार जनता को सस्ता सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध कराए। चुटका परमाणु बिजलीघर चालू होने के बाद देश के बिजली नेटवर्क में ऊर्जा का उत्पादन और भी ज्यादा बढ़ जाएगा। तब बिजली आधारित सार्वजनिक परिवहन सबसे सस्ता विकल्प होगा। कई राज्यों ने भविष्य की इस व्यवस्था को देखते हुए अपने शहरों में बिजली आधारित सार्वजनिक परिवहन शुरु भी कर दिया है। कमलनाथ सरकार के सामने मॉडल मौजूद हैं लेकिन वह पच्चीस साल पुराने अपने चंदा कमाऊ मॉडल पर ही चल रही है। वास्तव में वह तेल उत्पादक कंपनियों के सेल्स एजेंट की तरह काम कर रही है जो प्रदेश के विकास के लिए एक मंहगा सौदा साबित हो रहा है।

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