कमलनाथ चाहें भी तो नहीं रोक पाएंगे पुलिस कमिश्नर प्रणाली

भोपाल,18 अगस्त(प्रेस सूचना केन्द्र)। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पुलिस कमिश्नर प्रणाली को एक कमेटी के हवाले करके उसे अपने अनुकूल बनाने की कवायद भले ही शुरु कर दी हो लेकिन इस विषय पर जितनी कवायद हो चुकी है उसके चलते मध्यप्रदेश के प्रमुख शहरों में इस प्रणाली को लागू करने से वे इंकार नहीं कर पाएंगे।इसके संकेत मिलने लगे हैं। भोपाल और इंदौर में एसएसपी प्रणाली लागू करके इस संबंध में सभी प्रायोगिक प्रक्रिया पूरी की जा चुकी है और अब सिर्फ मजिस्ट्रेटी अधिकार देकर इस प्रणाली को कारगर बनाया जाना बाकी रह गया है।

कानून और व्यवस्था की जवाबदारी भारतीय लोकतंत्र में राज्य को सौंपी गई है। इसके बावजूद राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर राज्य की जिम्मेदारी है कि वह केन्द्रीय एजेंसियों की सिफारिशों पर अमल भी करे। यही वजह है कि पिछली शिवराज सिंह चौहान सरकार ने भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली को लागू करने की पूरी कवायद कर ली थी। चुनावों के मद्देनजर उसे लागू करने की प्रक्रिया जरूर नहीं अपनाई गई थी। अब कमलनाथ सरकार की जवाबदारी है कि वह इसे कैसे लागू करे।

चुनावी संग्राम के दौरान राज्य पुलिस ने पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने और नई भर्तियां किए जाने के मुद्दे पर कमलनाथ सरकार का साथ दिया था। अब जब कमलनाथ सरकार में आ चुके हैं तब वे पुलिस के मुद्दों पर पूरी तरह असफल साबित हो रहे हैं। राज्य का खजाना खाली होने का हल्ला मचाकर उन्होंने पुलिस की भर्तियां भी टाल दी हैं और पुलिस कर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने की व्यवस्था भी लागू नहीं हो पाई है। ऐसे में पुलिस के आला अफसरों का दबाव है कि भले की महानगरों से शुरुआत हो पर प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली की शुरुआत कर दी जानी चाहिए। इससे कानून और व्यवस्था के विषय में पुलिस को जो बेवजह लांछन झेलना पड़ रहे हैं उससे राहत मिल सकेगी।

कमलनाथ सरकार ने स्वाधीनता दिवस के अवसर पर पुलिस कमिश्नर प्रणाली की घोषणा किए जाने के संकेत दिए थे। ऐन वक्त पर सरकार ने राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के प्रतिनिधि मंडल की आशंकाओं पर गौर करते हुए घोषणा टाल दी। अब सरकारी सूत्रों की ओर से तर्क दिया जा रहा है कि इस प्रणाली का अध्ययन कराया जाएगा तब इसे लागू किया जाएगा। हालांकि इस संबंध में पुलिस सूत्रों का कहना है कि कमिश्नर प्रणाली के संबंध में सारी कवायद पूरी की जा चुकी है और अब इसे सिर्फ लागू करना बाकी है।

दरअसल कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदारी तो पुलिस की है पर फैसले लेने का अधिकार राजस्व अमले पर है। कलेक्टर तय करते हैं कि एसडीएम कैसे कानून व्यवस्था पर नियंत्रण रखें। आज देश के 71 महानगरों, मेट्रो शहरों में कमिश्नर प्रणाली लागू हैं। वैसे दस लाख तक की आबादी वाले शहरों में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू किए जाने का प्रावधान है। कलेक्टर के पास डिस्ट्रीक मजिस्ट्रेट की शक्तियां होती हैं। इसके तहत रासुका लगाने, जिलाबदर करने, संवेदनशील हालातों में फायरिंग, लाठी चार्ज की इजाजत देने व धारा 144 व कर्फ्यू घोषित करने के अधिकार हैं। इसी प्रकार धारा 151 व अन्य प्रतिबंधात्मक कार्रवाई में जमानत दिए जाने व नहीं दिए जाने के फैसले भी कलेक्टर करते हैं. कमिश्नरी लागू हो जाने के बाद कलेक्टर की ये तमाम शक्तियां पुलिस कमिश्नर को हंस्तारित हो जाएंगी और कलेक्टर की भूमिका महज राजस्व अधिकारी की रह जाएगी।

जहां तक पुलिस प्रणाली में सुधार और संशोधित एक्ट को लागू करने की बात है तो अब तक कई राज्यों ने इस पर अमल नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित पुलिस एक्ट को लागू करने के आदेश भी दिए थे, जिसमें नए एक्ट के तहत राज्य सुरक्षा आयोग गठित करके पुलिस के कामकाज की निगरानी करके सरकार को रिपोर्ट सौंपने की सिफारिश की गई थी। सरकार को आयोग की रिपोर्ट मानना होगी इससे सरकार की मनमर्जी पर रोक लग सकेगी।डीजीपी, आईजी, डीआईजी की नियुक्ति के लिए वरिष्ठता और सेवा रिकार्ड का आधार ही मापदंड माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट का मानना था कि पुलिस के कामकाज में राजनैतिक हस्तक्षेप रोका जाए।

वर्तमान व्यवस्था पुलिस को जांच और कानून के पालन के अधिकार तो देती है पर अपराध पर अंकुश लगाने की जवाबदारी उसकी नहीं है। इसके लिए उसे प्रशासनिक अफसरों और अदालत पर निर्भर रहना पड़ता है। यही वजह है कि कई पुलिस अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर अन्य विभागों में चले जाते हैं या फिर कविताएं लिखने और किताबें लिखने में जुट जाते हैं। अपराध पर अंकुश लगाने में उनकी रुचि नहीं रहती है। अपराध रोकने के तंत्र पर भारी संसाधन खर्च करने के बावजूद अपराधियों का जाल अपना काम बदस्तूर जारी रखता है।

मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार के सामने अपराधों पर नियंत्रण रखने की चुनौती तो है लेकिन वह अपराधों की जड़ को उजागर नहीं होने देना चाहती।कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर जारी बजट को हड़पने,मकानों की जमाखोरी करने, खेती की जमीनों की आड़ में काला धन सफेद करने वाले, सरकारी ठेकों को हड़पने के लिए अपराधियों का सहारा लेने वाले, टैक्स चोरी करने वाले व्यापारी, आयकर चोरी करने वाले फर्जी एनजीओ जैसों की वजह से जो आपराधिक जंजाल पनपता है उसे भी सरकार उजागर नहीं होने देना चाहती। यही वजह है कि पुलिस कमिश्नर प्रणाली को विभिन्न बहानों से टालने की जुगत हो रही है। इसके बावजूद अब देश जिस आर्थिक प्रणाली की ओर बढ़ चला है उसमें फर्जी पुलिस पालना किसी भी शासन व्यवस्था के लिए संभव नहीं रहा है। जाहिर है कि ऐसे हालात में कमलनाथ चाहकर भी पुलिस कमिश्नर प्रणाली को रोक नहीं पाएंगे। वे मुख्यमंत्री हैं प्रदेश के मालिक नहीं, ये बात जितनी जल्दी समझ लेंगे उतनी जल्दी टकराव से बचकर जन समस्याओं का समाधान कर पाएंगे।

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