कमलनाथ एमपी में फिर ले आए इंस्पेक्टर राज

भारत की राजनीति में खुले बाजार की अर्थव्यवस्था का श्री गणेश करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री पीव्ही नरसिंम्हाराव और डाक्टर मनमोहन सिंह का अनुमान था कि देश अब आर्थिक विकास की ओर अग्रसर हो जाएगा। डाक्टर मनमोहन सिंह तो बार बार कहते रहे कि भारत में इंस्पेक्टर राज अब कभी नहीं लौटेगा। तीन दशकों तक हिंदुस्तान उसी राह पर चलता रहा। आज भी हिंदुस्तान पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का अनुष्ठान कर रहा है। इसके विपरीत मध्यप्रदेश में एक बार फिर इंस्पेक्टर राज लौट आया है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सत्ता का जो फार्मूला इस्तेमाल किया है उससे कांग्रेस की सत्ता में वापिसी तो हो ही गई साथ में अजेय मानी जाने वाली भाजपा के भीतर भी भगदड़ मच गई है। भाजपा के होश तो तब उड़े जब कांग्रेस ने भरी विधानसभा में उसके दो विधायक अपने पाले में खड़े कर लिए। अब भाजपा अपने विधायकों को समेटने में जुटी हुई है और विधायक हैं कि वे कमलनाथ की राजनीति से सहमत होते नजर आ रहे हैं।

कमलनाथ की राजनीति की ये कलाकारी आखिर क्यों जादू की तरह विधायकों के सिर चढ़कर बोल रही है। इसे समझने के लिए भाजपा के पंद्रह साल पुराने शासनकाल पर गौर करना होगा। वर्ष 2003 में बिजली, सड़क और पानी के मुद्दे पर भाजपा सत्ता में आई थी। उसने पंद्रह सालों तक इस पर खूब काम किया। भारी भरकम कर्ज लेकर आधारभूत संरचना का विकास भी किया गया। जनता के लिए सरकार ने विभिन्न तरह की योजनाएं चलाईं जिनके हितग्राहियों ने भी पर्याप्त लाभ उठाया। हितग्राहियों से ज्यादा लाभ अफसरों ने उठाया। उन्होंने जनता के लिए जारी योजनाओं में भारी भ्रष्टाचार किया और धन संग्रह भी किया। सातवें वेतनआयोग की सिफारिशों की वजह से अफसरों और कर्मचारियों का वेतन भी खासा बढ़ता गया। आज ये स्थिति है कि हर महीने सरकार अपने अमले को 3200 करोड़ रुपए वेतन भत्तों के नाम पर देती है। जबकि उसकी आय लगभग चार हजार करोड़ रुपए मासिक है।

मुख्यमंत्री कमलनाथ अपने भाषणों में बार बार कहते हैं कि भाजपा की सरकार खाली खजाना छोड़कर गई है। जबकि हकीकत ये है कि पिछली सरकार का बजट आधिक्य 137 करोड़ रुपए था। उसने चालीस हजार करोड़ की अर्थव्यवस्था को एक लाख छह हजार करोड़ की विशाल अर्थव्यवस्था का स्वरूप देने में सफलता पाई थी।हर महीने सरकार के खजाने में चार हजार दो सौ करोड़ रुपए आ ही जाते हैं। आज प्रदेश में बिजली सरप्लस है। सड़कों का जाल तैयार है। पेयजल की उपलब्धता बढ़ी है। सिंचाई का रकबा 6 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 33 हजार हेक्टेयर हो चुका है। इसके बावजूद भाजपा की शिवराज सिंह सरकार न तो औद्योगिक विस्तार कर सकी और न ही रोजगार के अवसर पैदा कर सकी। यही वजह है कि उसके खिलाफ असंतोष की आग भीतर ही भीतर सुलगती रही।

पिछले विधानसभा चुनावों में स्पष्ट मतविभाजन की वजह से भाजपा के वोट तो बढ़े लेकिन वोटों की बढ़त के साथ साथ कांग्रेस ने अधिक विधायक लेकर सत्ता छीन ली। भाजपा के नेता बार बार कहते हैं कि कांग्रेस की सरकार अल्पमत की है। इसकी वजह ये है कि 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक हैं जबकि भाजपा 108 विधायकों के साथ दूसरा बड़ा राजनीतिक दल है। बहुमत के लिए कांग्रेस को 116 विधायकों की जरूरत थी। उसने चार निर्दलीयों, 2 बसपा और एक सपा के विधायकों को साथ लेकर आरामदायक बहुमत जुटा लिया। दो भाजपा विधायकों शरद कोल और नारायण त्रिपाठी के आ जाने से उसकी स्थिति और मजबूत हो गई है। इस फेरबदल ने मुख्यमंत्री कमलनाथ का आत्मविश्वास बढ़ा दिया है।

अब कमलनाथ पुरानी कांग्रेस के अपने फार्मूले पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। रोज रोज अफसरों के तबादलों की सूचियां निकल रहीं हैं। तबादले करवाने, मनचाही पोस्टिंग करवाने और तबादले निरस्त करवाने वालों की भीड़ सत्ता के गलियारों में जुट गई है। विधायक विश्रामगृह की रंगीनियां लौट आईँ हैं। राज्य मंत्रालय के गलियारे कार्यकर्ताओं से पट गए हैं। इसका लक्ष्य अफसरों और कर्मचारियों की वह आरामतलब फौज है जिसे हर महीने सरकारी खजाने से 3200 करोड़ रुपए वेतन के रूप में मिलते हैं। सरकारी अमले का वेतन अधिक है और खर्च बहुत कम है। साथ में भ्रष्टाचार से जुटाया धन भी इफरात है। बैंकों में भी इसी वर्ग ने भारी रकम जमा कर रखी है। धन की हवस इस वर्ग के बीच इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि वे अपनी मनचाही पोस्टिंग के लिए दो करोड़ रुपए का चंदा भी आसानी से देने के लिए तैयार हैं। आईएएस,आईपीएस और आईएफएस जैसे प्रशासनिक संवर्ग की सेवाओं के लिए तो चंदे का आंकड़ा और भी ऊंचा है।

तबादले पोस्टिंग का ये कारोबार कांग्रेस के मंत्रियों, विधायकों और कार्यकर्ताओं के बीच फलफूल रहा है। कार्यकर्ताओं की फौज राजनैतिक चाहत से ऊपर उठकर ये काम पूरी जिम्मेदारी से कर रही है। सरकार के शीर्ष पदों पर बैठे नेताओं का प्रयास है कि इसमें कार्यकर्ताओं के बीच चंदे का बंटवारा भी व्यापक तरीके से करा दिया जाए। नतीजतन विधायकों के बीच मुख्यमंत्री कमलनाथ आज आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। वे अच्छी तरह जानते हैं कि सरकारी पदों पर कोई योग्य व्यक्ति बैठे या अयोग्य इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। प्रदेश की आय बढ़ाने का फायदा भी तब है जब विकास कार्यों के लिए अत्यधिक कर्ज लेना हो। अभी राज्य की जो आय है उससे तो सरकारी कामकाज के लिए पर्याप्त कर्ज मिलता ही रहेगा।

सरकार ने अफसरों का खजाना बढ़ाने के लिए हर विभाग में इंस्पेक्टर राज बढ़ा दिया है। दूध,मावा, पनीर आदि के सेंपल लिए जा रहे हैं। अभी अभी पौने तीन सौ सेंपल धड़ाधड़ लिए गए। खाद्य विभाग के पास न तो इन सैंपलों को समय सीमा में चैक करने की पर्याप्त सुविधा है और न ही सैपलों का परीक्षण करने के लिए बुलाई गई मशीन चालू हो पाई है। इसके बावजूद धड़ाधड सेंपल उठाए जा रहे हैं। जनता के बीच सरकार की ये सक्रियता जरूर चर्चा का केन्द्र बन गई है।जनता और दुग्ध कारोबारियों के बीच जो अविश्वास पनपने लगा है उससे सरकार की अन्य गतिविधियों और वादों की ओर से जनता का ध्यान हट गया है।

तबादलों की ये बयार जेल, स्वास्थ्य, शिक्षा, वन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन से लेकर तमाम विभागों में चल रही है।जो कांग्रेस कभी राजाओं,सामंतों को खलनायक बताकर जन आक्रोश की लहर पर सवार हुआ करती थी वो आज भ्रष्ट अफसरों, व्यापारियों, को निशाने पर ले रही है। कांग्रेस का ये चिरपरिचित फार्मूला जनता के बीच आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है और यही कमलनाथ की सरकार की फिलहाल नजर आ रहीं सफलताओं की कुंजी भी है।

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