देश की सांस्कृतिक पहचान बनेगा मध्यप्रदेशःडॉ.साधौ

संस्कृति मंत्री डाक्टर विजय लक्ष्मी साधौ को बधाई देने पहुंचे प्रहलाद सिंह टिपानिया जनकवि कबीर के भजन गायक हैं। प्रह्लाद जी पहले शिक्षक थे। वर्ष2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था।

संस्कृति मंत्री डाक्टर विजय लक्ष्मी साधौ से मिलने मंत्रालय पहुंचे प्रहलाद सिंह टिपानिया जनकवि कबीर के भजन गायक हैं। प्रह्लाद जी पहले शिक्षक थे। वर्ष2011 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था।

मध्यप्रदेश की साझी विरासत को संवारेगा संस्कृति विभाग
भोपाल,12 जनवरी(प्रेस सूचना केन्द्र)। देश का हृदय प्रदेश कई संस्कृतियों का संगम स्थल है। यहां देश दुनिया की कई विचारधाराएं सामाजिक समरसता स्थापित करती हैं। पिछली सरकार धार्मिक कट्टरता के आधार पर प्रदेश को चलाने का प्रयास करती रही। इसकी वजह से कुछ लोगों ने सरकारी व्यवस्था पर कब्जा जमा लिया था। नई सरकार सभी संस्कृतियों का सम्मान करती है, हम प्रदेश की पहचान भी इसी तरह कायम करेंगे। मैं स्वयं कबीरपंथी हूं,सरकार ने मुझे संस्कृति विभाग का जिम्मा दिया है। पहले भी संस्कृति मंत्री रहते हुए मैं बेहतरीन आयोजनों से प्रदेश का गौरव बढ़ा चुकी हूं। इस बार संस्कृति विभाग जन जन की अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा। ये विचार कमलनाथ सरकार की संस्कृति मंत्री डाक्टर विजय लक्ष्मी साधो ने कार्यभार संभालने के बाद विशेष मुलाकात में कही।

मध्यप्रदेश की संस्कृति, चिकित्सा शिक्षा और आयुष विभाग की मंत्री डाक्टर विजय लक्ष्मी साधौ ने कार्यभार संभालने के बाद विभाग की समीक्षा शुरु की है। संबंधित अधिकारियों से पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान किए गए सांस्कृतिक आयोजनों का ब्यौरा मांगा है। चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि अब तक जो जानकारियां सामने आई हैं उनके आधार पर कहा जा सकता है कि प्रदेश की संस्कृति को संवारने के नाम पर चंद लोगों ने पूरे बजट पर कब्जा कर रखा था। उन्हीं के परिजनों को आयोजनों से जुड़ी जवाबदारियां दी जाती रहीं हैं। हम किसी पंथ परंपरा को थोपे जाने के पक्षधर नहीं हैं। हमारी कोशिश होगी कि मध्यप्रदेश की साझी विरासत को उभारें ताकि देश दुनिया में प्रदेश की पहचान समृद्ध विरासत वाले प्रदेश के रूप में स्थापित हो।

डाक्टर विजय लक्ष्मी साधौ ने बताया कि पूर्ववर्ती दिग्विजय सिंह की जिस सरकार में उन्हें संस्कृति विभाग की जवाबदारी दी गई थी तब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों एक ही राज्य हुआ करते थे। तब हमने बस्तर की सांस्कृतिक विरासत को उभारने वाले कई आयोजन किए थे। खजुराहो उत्सव, नदी किनारे होने वाले महेश्वर उत्सव से प्रदेश का मान बढ़ाया था। हमारे दौर में सिंधी, उर्दू अकादमी फल फूल रहीं थीं। विभिन्न संस्कृतियों के बीच मेलजोल बढ़ाने के लिए हम श्रीलंका के कलाकारों को भी आमंत्रित करते थे। अभी सांची के बौद्ध विश्विद्यालय को जानने का अवसर मिला वहां चंद लोगों ने पूरी व्यवस्था को अपने हाथों में कैद कर रखा है। ऐसे माहौल में हमें विभाग को ज्यादा जनोन्मुखी बनाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गांधी की प्रेरणा से भोपाल में स्थापित भारत भवन का उद्देश्य कला और संस्कृति पर अनुसंधान करके भारत की संस्कृति को समृद्ध बनाना रहा है। उसमें कई अलग अलग विचारधाराओं का हस्तक्षेप भी होता था इसके बावजूद कई मानदंड स्थापित किए गए। आज उसका स्वरूप पूरी तरह बदल गया है। नई सरकार मध्यप्रदेश की साझी संस्कृतियों का जो गुलदस्ता प्रस्तुत करेगी उससे देश दुनिया में प्रदेश का मान बढ़ेगा।

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