गोपाल लीला की स्वीकार्यता

पंडित गोपाल भार्गव की लीलाओं का जादू पिछले पैंतीस सालों से रहली गढ़ाकोटा क्षेत्र की जनता के सिर चढ़कर बोलता रहा है। जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें हुआ करतीं थीं तब भी इलाके के लोग अपने गोपाल को विधानसभा भेजते थे। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इस तिलिस्म को तोड़ने के लिए अपने अठारह मंत्रियों की भीड़ गढ़ाकोटा ले जाकर सम्मेलन किया था। उनका मानना था कि जनता के बीच वे गोपाल भार्गव की लोकप्रियता को कुचल देंगे। प्रदर्शन करते गोपाल भार्गव को पुलिस ने गिरफ्तार करके जनता को डराने की कोशिश भी की,लेकिन इसके बावजूद गोपाल भार्गव चुनाव जीते। विधानसभा में उन्होंने बीड़ी मजदूरों की बेबसी और उन्हें बीमे का लाभ दिलाने की आवाज उठाई जिसे दिग्विजय सिंह सरकार ने स्वीकार किया। तबसे गोपाल भार्गव और दिग्विजय सिंह के बीच सदाशयता के संबंध विकसित हुए जो आज तक बरकरार हैं।भाजपा की ओर से राजनाथ सिंह ने एक बार फिर उन्हें नेता प्रतिपक्ष घोषित करके संवाद का ऐसा पुख्ता पुल तैयार कर दिया है जो प्रदेश के विकास के लिए सोने में सुहागा साबित होने जा रहा है।उनके नेता प्रतिपक्ष के रूप में भाजपा सकारात्मक प्रतिरोध का नया अध्याय लिखने जा रही है।गोपाल भार्गव को ये जवाबदारी तब मिली है जब वे राजनैतिक परिपक्वता के शिखर पर पहुंच गए हैं।लंबे समय से सरकार में कैबिनेट मंत्री रहते हुए उन्होंने राजनीति को करीब से देखा समझा है।सत्ता पक्ष के कई वरिष्ठ मंत्री भी जब भाजपा के सत्ता से बाहर जाते समय उनका बंगला खाली होने का इंतजार कर रहे थे तब भार्गव ने ये कहते हुए टाल दिया कि अभी इंतजार करिए।जाहिर था कि वे पार्टी और कांग्रेस दोनों के ही नेताओं को आश्वस्त कर चुके थे कि अब उनकी बारी है। उमा भारती की सरकार में भी गोपाल भार्गव की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण रही है। जब स्वर्गीय प्रमोद महाजन ने सारे विरोध को दरकिनार करते हुए शिवराज जी को मध्यप्रदेश की सत्ता की बागडोर पकड़ा दी थी तब गोपाल भार्गव या कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गज नेता यदि विद्रोह को हवा देते तो शिवराज को सत्तासीन नहीं किया जा सकता था। पार्टी के प्रति अनुशासन का वो शीर्ष दौर था जब सभी ने शिवराज जी को नेता के रूप में स्वीकार किया और चौदह सालों तक बखूबी साथ दिया। शिवराज जी को मुख्यमंत्री बनाए रखने वाली उद्योगपतियों,अफसरों और ठेकेदारों की जिस लाबी ने भाजपा के बधियाकरण की मुहिम चलाई उसी ने इस बार नखदंत विहीन भाजपा को सत्ता से बाहर खड़ा करवा दिया। शिवराज जी के कार्यकाल में जमीन से कटे दूसरी पंक्ति के जिन नेताओं को सत्ता के करीब ला खड़ा किया गया वे समय आने पर असरहीन साबित हुए।कई के तो चुनाव सामने देखकर हाथ पैर फूल गए थे। उनमें से कई ऐसे भी थे जो चुनाव के वक्त शिवराज का साथ छोड़कर दूर खड़े थे। पार्टी संगठन का ढांचा इस कदर तोड़ दिया गया था कि संगठन की आवाज बेअसर साबित हुई और मैदान में खड़े विद्रोही भाजपा की हार की बड़ी वजह बने।अब ऐसे वक्त गोपाल भार्गव को सदन में पार्टी का नेतृत्व करने का अवसर मिला है। हार से हताश भाजपा के विधायकों को अब भी भरोसा नहीं हो रहा कि वे सत्ता से बाहर किए जा चुके हैं,वो भी उस कांग्रेस के हाथों जो मैदान से नदारद थी। नेता प्रतिपक्ष की दौड़ में शिवराज सिंह चौहान की ओर से पूर्व मंत्री राजेन्द्र शुक्ल का नाम उठाया गया था। तर्क दिए जा रहे थे कि विंध्य क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन अच्छा रहा है इसलिए उन्हें नेता प्रतिपक्ष के रूप में अवसर दिया जाना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की पसंद के रूप में पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा का नाम भी लिया जा रहा था। सवर्ण समाज के नाम पर उन्हें नेता प्रतिपक्ष के रूप में प्रचारित भी किया गया। उनके विरोध में कहा गया कि वे बमुश्किल चुनाव जीते हैं जबकि जनसंपर्क महकमा उनके पास था। पार्टी के भीतर संगठन के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता भी नरोत्तम के खिलाफ थे। उन्होंने प्रदेश प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे और राजनाथ सिंह तक अपनी नापसंदगी की बात पहुंचाई। अमित शाह का कथित करीबी होने के कारण कोई खुलकर नहीं बोल रहा था। इसलिए जवाबदारी राजनाथ जी को सौंप दी गई। राजनाथ सिंह ने रायशुमारी के आधार पर अमित शाह के सामने गोपाल भार्गव का नाम रखा जिसे उन्होंने तत्काल अपनी मंजूरी दे दी। इसके साथ ही मध्य प्रदेश में रहली विधानसभा क्षेत्र से आठवीं बार विधायक बने पंडित गोपाल भार्गव विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिए गए। सोमवार को भारतीय जनता पार्टी के विधायक दल की बैठक में भार्गव को नेता चुना गया। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गोपाल भार्गव को विधायक दल का नेता चुने जाने का प्रस्ताव रखा, जिसका पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने समर्थन किया। इसके बाद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भार्गव को निर्विरोध रूप से भाजपा विधायक दल का नेता निर्वाचित किए जाने का एलान किया। जाहिर है कि गोपाल भार्गव आज की भाजपा के सर्वमान्य नेता के रूप में सामने आए हैं। शिवराज गुट के पतन के बाद भाजपा हाईकमान राज्य भाजपा को ऩए सिरे से संगठित होते देखना चाहता है। गोपाल भार्गव इस काम में निपुण हैं। विधानसभा में भाजपा अपने 109 विधायकों के साथ मजबूत स्थिति में है। जाहिर है कि बरसों बाद प्रदेश को एक मजबूत विपक्ष मिला है। गोपाल भार्गव कभी पाखंडी राजनीति के पक्षधर नहीं रहे हैं। जाहिर है कि उनके नेतृत्व वाला विधायक दल भी सकारात्मक और ठोस राजनीति का पैरवीकोर रहेगा। ऐसा पहली बार ही होगा जब इतना सशक्त और सकारात्मक विपक्ष प्रदेश को मिला है जो राज्य में नई राजनीति की इबारत लिखेगा।

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