गरीब को सेठ बनाने की दिशा में बड़ा कदम रही नोटबंदी

भोपाल,12 जून(पीआईसी)। सत्ता के गलियारों में उद्योगपतियों को इंतजार करते देखने का दौर अब बीत चला है। मोदी सरकार ने नोटबंदी करके समानांतर अर्थव्यवस्था पर जो चोट की है उसके चलते अब उद्योगपतियों को सत्ताधीशों के दरवाजे हाजिरी देना जरूरी नहीं रहा है। नतीजा ये है कि आर्थिक विकास में लगे कार्पोरेट घटाने आसानी से अपना कारोबार बढ़ा रहे हैं। छोटे स्तर पर जिन समूहों ने नोटबंदी के बाद जीएसटी की व्यवस्था को समझ लिया था उन्होंने भी अपने कारोबार में सुधार किया है। नतीजतन देश अर्थव्यवस्था में तेजी आई है।

वित्तमंत्री अरुण जेटली का विश्वास है कि यदि आप देश के लिए पैसा बना रहे हैं तो आपको हमारे दरवाजे पर सिर झुकाने की जरूरत नहीं है। नियमों में बदलाव की इस नई परंपरा से शेयर बाजार तेजी की ओर अग्रसर हो रहा है। जीएसटी को लागू करने और आर्थिक सुधारों को लागू करने की दिशा में देश के औद्योगिक घराने सरकार के साथ इसलिए खड़े नजर आ रहे हैं क्योंकि इससे उनके संसाधनों की बर्बादी रुकी है। वित्तीय प्रबंधन के छिद्र बंद हुए हैं, जिससे मुनाफे की बर्बादी रुकी है।

चार साल पहले अर्थव्यवस्था कमजोर रुपए, छीजते विदेशी मुद्रा भंडार, राजकोषीय और चालू खाते के ऊंचे घाटे और दहाई में महंगाई से जद्दोजहद कर रही थी.इस बार2018 में वृहत अर्थव्यवस्था के संकेतकों में खासा सुधार आया है—क्रिसिल के एक विश्लेषण के मुताबिक, खुदरा कीमतों की महंगाई 2015-2018 में औसतन 4.7 फीसदी रही है, जबकि इससे पहले के पांच साल में यह औसतन 10.2 फीसदी रही थी; चालू खाते का घाटा बीते चार साल में घटकर आधा रह गया है और विदेशी मुद्रा भंडार में अच्छा-खासा इजाफा हुआ है. रुपए का अवमूल्यन पहले के पांच साल के 5.5 फीसदी के मुकाबले घटकर 1.7 फीसदी पर आ गया है.

जीएसटी और दिवालिया तथा शोधन अक्षमता संहिता (आइबीसी) जैसे सुधार कारोबार करने के उसूलों में आमूलचूल बदलाव लाने का भरोसा बंधा रहे हैं. आइबीसी ने असरदार ढंग से बता दिया है कि कर्ज लेकर उसे न चुकाने का बेलगाम और बेशर्म तरीका अब और काम नहीं आएगा.

सरकार ने कर अनुपालन को बढ़ाने और नोटबंदी के साथ आमदनी की घोषणा योजना के जरिए और ज्यादा लोगों को औपचारिक अर्थव्यवस्था के दायरे में लाने की एकजुट कोशिशें की हैं. जिससे प्रत्यक्ष करों की वसूली में तेज बढ़ोतरी हुई है, बावजूद इसके कि जीडीपी की ग्रोथ पिछले दो वित्तीय साल में धीमी पड़ी है. शुरुआती गड़बडिय़ों के बावजूद हिंदुस्तान के अप्रत्यक्ष कर आधार में जीएसटी के लागू होने के बाद 50 फीसदी से ज्यादा का इजाफा हुआ है.

कर और जीडीपी का अनुपात 2014 के वित्तीय साल के 5.7 फीसदी से बढ़कर 2018 के वित्तीय साल में 6 फीसदी पर पहुंच गया. प्रत्यक्ष कर संग्रह वित्तीय साल 2016 के 0.6 फीसदी से बढ़कर 2018 के वित्तीय साल में 1.9 फीसदी पर पहुंच गया.

हालांकि नोटबंदी के अंतिम नतीजों पर अभी फैसला होना बाकी है और कुछ अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि इससे जीडीपी की ग्रोथ में 1-2 फीसदी की सेंध लग सकती है, पर इसका असर प्रत्यक्ष कर (खासकर आयकर) के बढ़े हुए अनुपालन में साफ दिखाई देता है.

इसके बावजूद देखा जा रहा है कि नौकरियां 7.4 फीसदी की वृद्धि दर के साथ कदमताल करते हुए नहीं बढ़ी हैं और कारोबार करने में आसानी की फेहरिस्त में हिंदुस्तान की ऊंची छलांग के बाद भी निजी निवेश परवान नहीं चढ़ सके हैं.

सामान्य मॉनसून और बंपर फसल के बावजूद 2018 में ग्रामीण अर्थव्यवस्था मुश्किलों से घिरी रही. कृषि की असल जीडीपी ग्रोथ वित्तीय साल 2010-14 के 4.3 फीसदी से तकरीबन आधी घटकर 2015-18 के वित्तीय साल में 2.4 फीसदी पर आ गई. बड़ी तादाद में नौकरियां देने वाले निर्माण क्षेत्र को नोटबंदी और जीएसटी की मार सहनी पड़ी है.

ईंधन की बढ़ती कीमतों ने एक बार फिर अर्थव्यवस्था के सामने चुनौतियां खड़ी कर दीं हैं। इससे चालू खाते के घाटे पर सीधा असर पड़ेगा और यह महंगाई की आग में घी का काम कर सकती है. पेट्रोल-डीजल के दाम ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच रहे हैं और ऐसे में खुदरा तेल पर केंद्र और राज्य सरकारों के शुल्कों को कम करने की मांग तेज हो रही है.

अगले साल सरकार को चुनाव की चुनौती से जूझना है। इस बीच कई राज्यों के बीच भी चुनाव की तैयारियां शुरु हो चुकी हैं। जाहिर है कि सरकार को जीएसटी और नोटबंदी जैसे मुद्दों पर जनता के बीच सभी तथ्य सिलसिलेबार रखने होंगे उसे बताना होगा कि किस तरह नोटबंदी करके देश ने एक बड़ा लक्ष्य हासिल किया है तभी वो जनता की नाराजगी से बच पाएगी।

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