भारत को कश्मीर पर दो टूक फैसला लेना होगा-जनरल बख्शी

भोपाल, 10 अप्रैल,(मध्यप्रदेश प्रेस क्लब)। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, जो लोग इस पर दावा करते हैं उन्हें खुली चुनौती है कि वे इसे लेने का प्रयास करके देख लें। भारत सरकार की सहनशील नीति के कारण ही आज तक कश्मीर अशांत है। सरकार को दो टूक फैसला लेना होगा। यदि हम सहते रहेंगे तो कश्मीर के नाम पर लोग हमारे सिर पर बैठने का प्रयास करते रहेंगे। अब समय आ गया है जब कश्मीर की समस्या हमेशा के लिए सुलझा ली जाए और देश में अमन चैन स्थापित किया जाए। सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल जीडी बख्शी ने आज पत्रकार वार्ता में ये बात कही। मध्यप्रदेश प्रेस क्लब के रजत जयंती समारोह के अवसर पर आयोजित पत्रकार वार्ता में आज दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक और विख्यात लेखक राजशेखर व्यास ,कंप्यूटर वैज्ञानिक चंद्रकांत राजू ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

जनरल जी डी बख्शी ने कहा कि भारत विरोधी ताकतें बरसों से देश को खंडित करने का प्रयास करती रहीं हैं। जाति और धर्म के नाम पर देश को विभाजित करके भारत की विकास यात्रा बाधित की गई है। अंग्रेजों ने पहली जातिगत जनगणना वर्ष 1872 में कराई थी। देश को आजाद कराने के लिए 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने देश में जातिवादी वैमनस्य के बीज बोए। आजादी के बाद संविधान के नाम पर कभी जमीनी सच्चाई बताकर जातियों की खाई खोदी जाती रही है। भारत को कमजोर बनाने वाली ताकतें यहां अपनी पकड़ नहीं खोना चाहतीं इसलिए वे तरह तरह के षड़यंत्र कभी आईएसआई कभी वैश्विक संस्थाओं के माध्यम से करती रहती हैं।

जनरल बख्शी ने कहा कि भारत के करदाताओं से एकत्रित धन से चलने वाले जवाहर लाल नेहरू विवि के हर छात्र पर आठ लाख रुपया हर साल खर्च होता है। इसके बावजूद वहां अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल जिंदा हैं जैसे नारे लगाने वाली मानसिकता पढ़ाई जाती है। ये अभिव्यक्ति की आजादी नहीं हैं। दुनिया के किसी भी देश में इस तरह के नारे लगाने की इजाजत नहीं है। इसके बावजूद भारत में ही मानवाधिकारों के नाम पर और अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर देश को कमजोर करने की कोशिशें चलती रहती हैं। भारत सरकार को इस अराजकता को रोकना होगा।

उन्होंने कहा कि भारत की आजादी की लड़ाई में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का योगदान अतुलनीय रहा है। इसके बावजूद पिछली सरकारों ने दिल्ली के प्रमुख स्थानों पर उनकी मूर्तियां नहीं लगाई । देश को बताया गया कि आजादी केवल गांधीजी के प्रयासों से आई जबकि ये सच्चाई नहीं है। आजाद हिंद फौज यदि ब्रिटिश हुकूमत को खुला चैलेंज नहीं देती तो अंग्रेज यहां से नहीं भागते। इसीलिए हम देश में पैन इंडिया मूवमेंट चला रहे हैं। हम देश से आव्हान करते हैं कि आजाद हिंद फौज के गठन के दिन इस बार हम दिल्ली चलो के नारे के साथ राम लीला मैदान में एकत्रित हों। सरकार से मांग करें कि वो जस्टिस मुखर्जी की रिपोर्ट लागू करे। उन्होंने कहा कि हमें भारत सरकार से बहुत सारी उम्मीदें हैं पर अब तक के कार्यकाल में सरकार ने इस दिशा में बहुत प्रयास नहीं किया है। बेशक सरकार के सामने देश को संवारने की काफी सारी चुनौतियां हैं पर देश को कारगर बनाने के लिए हमें कई मूलभूत फैसले लेने होंगे जिससे मौजूदा व्यवस्था को बदला जा सके।

दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक राजशेखर व्यास ने कहा कि देश को मानसिक गुलामी से मुक्ति के लिए मैंने स्वयं 29 ग्रंथ लिखे हैं ताकि देश की नई पीढ़ी इस विशाल देश का पथ सुनिश्चित कर सके। आजादी के बाद के बरसों में हमें गुलामी की भाषा ही सिखाई जाती रही है। पांच सौ साल मुगलों और दो सौ साल अंग्रेजों की गुलामी से पहले का गौरवशाली इतिहास हमें नहीं बताया गया है। विदेशों से पढ़कर आने वाले भारत के नेताओं का भारतीयता से परिचित न होना इसकी सबसे बड़ी वजह थी। उज्जैन के ही पद्मभूषण पंडित सूर्यनारायण व्यास ने इसीलिए 1928 से उज्जैन में अखिल भारतीय कालिदास समारोह मनाना शुरु किया था।भारत के नेतागण शेख्सपियर की बात तो करते थे लेकिन वे कालिदास को नहीं जानते थे। जबकि तुलनात्मक रूप से महाकवि कालिदास की रचनाएं ऊंचे दर्जे की रहीं हैं।

उन्होंने कहा कि भारत का दूरदर्शन आज भी देश से गहरा जुड़ाव रखता है। मीडिया के इस मंच की विराटता का अहसास आमतौर पर लोग नहीं लगा पाते हैं जबकि इसके विभिन्न चैनल समाज के हर तबके से सीधा संवाद करते हैं। उन्होंने कहा कि जो आकाशवाणी कभी घाटे का सौदा बना दी गई थी वो अब अपने पैरों पर खडी है। सरकारी मीडिया को निगम बनाने के बाद इस पर सरकार का भोंपू होने के आरोप तो नहीं लगते हैं लेकिन अभी इसकी लोकप्रियता बढ़ाने की बहुत सारी संभावनाएं बाकी हैं। ऊर्जावान लोगों को इससे जोड़कर इस माध्यम का पूरा उपयोग करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

कंप्यूटर वैज्ञानिक चंद्रकांत राजू ने कहा कि भारत में उपनिवेशीकरण की मानसिकता ने विश्वविद्यालयों को अपने चंगुल में फंसा रखा है। यहां पढ़ने वाले छात्र छात्राएं केवल नौकरी खोजते रहते हैं जबकि वे दुनिया के अन्य देशों में जाकर चमत्कृत करने वाले काम करते हैं। अनुसंधान और पेटेंट के मामले में भारत इसलिए पिछड़ा है कि यहां की पढ़ाई विद्यार्थियों को पिछलग्गू बना देती है। बच्चों को गणित समझ नहीं आती फिर भी इस विषय पर आम चर्चा नहीं होती है। उन्होंने कहा कि भारत की शिक्षा प्रणाली पर देश में खुला संवाद होना चाहिए। हमें वास्तविक शिक्षा की दिशा में बहुत प्रयास करने होंगे।

श्री राजू ने कहा कि देश को उपनिवेशीकरण की मानसिकता से मुक्ति दिलाने के लिए हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था में आमूल चूल बदलाव करने होंगे। कंप्यूटर जैसे विषय को बोधगम्य बनाने के लिए हमें अपनी पारंपरिक सोच पर अमल करना होगा। कंप्यूटर गणनाओं का सरल हल प्रस्तुत करता है। यदि हम गणनाओं की शैली नहीं बदलेंगे तो कंप्यूटर के चमत्कारों से वंचित रह जाएंगे। शिक्षा पर सार्वजनिक बहस होगी तो एक नए भारत का उदय होगा।

पत्रकार वार्ता का संचालन मध्यप्रदेश प्रेस क्लब के अध्यक्ष डाक्टर नवीन जोशी ने किया। आभार प्रदर्शन क्लब के महासचिव नितिन वर्मा ने किया। अथितियों का स्वागत वरिष्ठ पत्रकार आलोक सिंघई, प्रसन्ना शहाणे, ब्रजेश द्विवेदी,अरविंद पटेल, अनुवेद नगाइच ने किया। इस अवसर पर प्रेस क्लब के पदाधिकारियों के अलावा मीडिया के प्रतिनिधि गण भी उपस्थित थे।

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