दलितों को भड़काने वालों तक पहुंचे डंडे की मार

देश की सर्वोच्च अदालत यानि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि वो अनुसूचित जाति के हित संरक्षण के लिए बने कानून के खिलाफ नहीं है। इस कानून के दुरुपयोग के संबंध में उसने जो संशोधन सुझाए हैं सरकार को उन्हें अमल में लाना चाहिए। काशीनाथ महाजन की याचिका पर दिए गए फैसले के संबंध में अन्य याचिकाओं को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने खुली अदालत में सरकार के पक्ष को सुनने के लिए समय भी दिया है। जाहिर है इस संबंध में फैली भ्रांतियों का निराकरण समय रहते ठीक प्रकार से हो चुका है। वैसे भी अदालत के फैसले को समझे बगैर जो लोग निजी स्वार्थों के लिए दलितों को भड़काने का प्रयास कर रहे थे उनकी भी कलई खुल गई है। इस फैसले के संबंध में जो अपीलें बाद में की गईं ये प्रक्रिया पहले भी अपनाई जा सकती थी। इसके विपरीत हिंसा का रास्ता चुनकर देश के विभिन्न इलाकों में जो विद्वेष की आग भड़काई गई उससे साफ प्रतीत होता है कि आजादी के इतने सालों के बाद भी देश का जनमानस परिपक्व नहीं हो पाया है। लोग ये समझने तैयार नहीं कि ये जनभावनाओं को सर्वोपरि मानकर चलने वाला देश है। आजादी का जो अर्थ लोगों के जेहन में जगाया गया है उससे देश का बहुत बड़ा वर्ग अराजकता को ही आजादी मानने लगा है। सबसे चिंताजनक बात तो ये है कि देश पर लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी ही आजादी के नाम पर लोगों को बरगलाने का काम कर रही है।

कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने भड़काए गए दलितों की आग में घी डालने के लिए ट्वीट करके हिंसा करने वालों को अपना सलाम भेजा। फैसला सुप्रीम कोर्ट का था जबकि राहुल गांधी ने लिखा कि दलितों को भारतीय समाज के सबसे निचले पायदान पर रखना आरएसएस और बीजेपी के डीएनए में है।जो इस सोच को चुनौती देता है वे उसे हिंसा से दबाते हैं। सरकार से अधिकारों की रक्षा करने की मांग करना लोगों का संवैधानिक हक है। सरकार ने उन्हीं हितों की रक्षा करते हुए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है।अदालत के बाहर इस मामले का कोई औचित्य नहीं है। इसके बावजूद देश भर में दलित संगठनों को हिंसा के लिए उकसाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने यदि कोई राय व्यक्त की है तो वह कानून का रूप ले लेती है। जिसका पालन करवाना और करना सरकार और पुलिस का काम होता है। कानून के विरुद्ध लोगों को उकसाना निश्चित तौर पर आपराधिक कृत्य है। जाहिर है कि कानून का पालन करवाने के लिए पुलिस को वही करना चाहिए जो वह आम नागरिकों के साथ करती है। पुलिस का हवलदार यदि किसी आपराधिक तत्व के पिछवाड़े डंडा फटकारता है तो वह कानून के पालन करने का संदेश दे रहा होता है। राहुल गांधी बच्चे नहीं हैं। वे न इस देश के माईबाप हैं। उन्हें भी कानून का पालन उसी तरह करना होगा जैसे कि आम नागरिक करते हैं। सत्ता पर बैठने के फेर में यदि वे कानून को धता बताने की कोशिश करते हैं तो उन्हें राह पर लाना सरकार और पुलिस की जवाबदारी है। यदि कानून अपना काम नहीं करेगा तो फिर लोगों के बीच बढ़ती हिंसा की भावना को नियंत्रित कैसे किया जा सकेगा।

आज दुनिया के कई देश सरकारों की असफलता के कारण ही मटियामेट हो गए हैं। समय रहते यदि वहां की सरकारों ने वहां के ज्वलंत विषयों पर कठोर फैसले लिए होते तो आज वे राष्ट्र सफलता के शिखरों को छू रहे होते। भारत में आजादी के बाद जाति, संप्रदाय, भाषा और क्षेत्रवाद को लेकर जो फैसले कांग्रेस की सरकारों ने लिए उनसे ये देश बुरी तरह विभाजित हो गया है। आज यदि कोई उस खाई को भरने का प्रयास करता है तो अलगाववादी ताकतें उसका विरोध करने के लिए एकजुट हो जाती हैं। आज जब देश पूंजीवादी रास्ते पर बहुत आगे निकल चुका है तब जाति, संप्रदाय, भाषा और क्षेत्रों पर आधारित मध्ययुगीन भावनाएं काफी पीछे छूट गईँ हैं।किसी भी कारोबार में क्या जाति के नाम पर अक्षम या अनुपयोगी लोगों को जगह दी जा सकती है। यदि कोई सवर्ण है तो क्या उसे केवल इसलिए नौकरी दी जानी चाहिए कि वह किसी सत्ताधीश का रिश्तेदार है। जब देश में नतीजे लाने वाला तंत्र विकसित किया जा रहा है तो जाति के आधार पर किसी को वंचित करना संभव ही नहीं है। मुक्त बाजार व्यवस्था में तो ये गैर बराबरी का बर्ताव संभव ही नहीं है। सत्ता की चाहत में लोगों को भड़काने वाली ताकतों पर सख्ती से अंकुश लगाना सरकार का काम है। उसे ऐसा करते नजर भी आना चाहिए। इस संबंध में देश भर की पुलिस ने जिन लोगों को दंगा भड़काने के आरोप में दबोचा है उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाना जरूरी है, ताकि भविष्य में कानून हाथ में लेने वालों को कानून के पालन के रास्ते पर लाया जा सके।

अराजकता को रोकने के लिए ये कड़वी दवाई सरकार को सख्ती से पिलानी होगी। ये देश किसी राजनीतिक दल या परिवार की बपौती नहीं हैं। जो लोग क्षुद्र राजनीति के लिए समाज को खंडित करने का काम कर रहे हैं उन पर भी सख्त कार्रवाई करना होगी तभी देश के निचले स्तर तक कानून के राज का संदेश जा सकेगा।

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