अंधों की आड़ में राजनीतिक पाखंड

देश में पूंजीवाद के दरवाजे खोलने वाली कांग्रेस कल्याणकारी राज्य का पाखंड छोड़ने तैयार नहीं है। भोपाल में अंधों की पिटाई के बाद भी कांग्रेस का इसी तरह का स्यापा सामने आया। वोट बैंक की राजनीति करते हुए कांग्रेसी आज भी देश को गुमराह करने की नीतियां जारी रखे हुए है। जबकि पीवी नरसिम्हाराव ने इसी कांग्रेस में रहते हुए भारत के नवनिर्माण में जो योगदान दिया है उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता। सबसे बड़ी बात तो ये कि उन्होंने कांग्रेस की तमाम बदमाशियों के बीच देश को पूंजीवाद के रास्ते पर ले जाने का करिश्मा कर दिखाया था। आजादी के बाद से नेहरू इंदिरा की कांग्रेस देश पर कल्याणकारी राज्य का पाखंड थोपती रही है। गरीबी हटाओ का नारा देने वाली इंदिरा गांधी ने तो गरीबी हटाओ के पाखंड तले गरीब बचाओ अभियान चला दिया। यानि लोग गरीब ही बने रहें ताकि हम गरीबी हटाओ की राजनीति करते रहें। कांग्रेस के शासनकाल में देश से गरीबी कभी नहीं हटी बल्कि करोड़पति घरानों के हाथों में देश की दौलत सिमटती गई। आज जब मोदी जेटली की जोड़ी देश को आर्थिक सुधारों की दौड़ में शामिल करने में जुटे हैं तब उन पर लांछन लगाए जा रहे हैं। इसके लिए कांग्रेसी डाक्टर मनमोहन सिंह तक का इस्तेमाल करने में नहीं चूक रहे। जबकि डाक्टर मनमोहन सिंह ने ही वित्तमंत्री रहते हुए भारत में पूंजीवाद का ड्राफ्ट तैयार किया था। अपने प्रधानमंत्रित्व काल में भी उन्होंने आर्थिक सुधारों पर अमल करने का प्रयास किया। इसके बावजूद बीस सालों की कसरत के बाद भी वे देश को पूंजीवाद के रास्ते पर नहीं चला सके। क्योंकि हर बार धूर्त कांग्रेसियों की गेंग उनके रास्ते में रोड़े खड़े कर देती थी। ये गेंग चुनाव हारने का भय दिखाती रहती थी। इस दोहरी मानसिकता की सजा भी कांग्रेस को भोगनी पड़ी। कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई।देश में समानांतर अर्थव्यवस्था के पैरवीकोर भाजपाई भी यही भूमिका निभा रहे हैं। कांग्रेसियों का मोदी को गाली देना स्वाभाविक है लेकिन भाजपाई जिस तरह से मोदी जेटली को कोस रहे हैं वह देखसुनकर उनकी मूर्खता पर हंसी आना स्वाभाविक है। नौकरी मांगने की जिद पर बैठे उकसाए गए अंधों ने जब अपनी जिद नहीं छोड़ी तो शिवराज सिंह चौहान की पुलिस ने उन्हें पकड़कर घर पहुंचा दिया। ये एक सकारात्मक कदम था। इसके बावजूद कांग्रेसियों और विचारशून्य पत्रकारों ने इसे अंधों की पिटाई और पुलिस बर्बरता बताकर सरकार को खूब लानतें भेजीं। ये आज भी मानने तैयार नहीं हैं कि पूंजीवाद का मतलब आर्थिक सुशासन होता है। इसमें समाज की उत्पादक शक्तियों के अलावा किसी को भी उत्पादन की प्रक्रिया में जगह नहीं दी जा सकती है। जिन नौकरियों के लिए सामान्य लोग और पढ़े लिखे सक्षम युवा बेरोजगार घूम रहे हैं उन नौकरियों पर अंधों को कैसे भर्ती किया जा सकता है। क्या ये खैरात बांटने वाले किसी रजवाड़े का शासन है। पूंजीवाद में अंधे हों या अनाथ बच्चे,मंदबुद्धि बालक बालिकाएं हों या बुजर्ग सभी के लिए व्यवस्थित केम्प में रखने की व्यवस्था दी गई है। अनाथालय,वृद्धाश्रम को बाकायदा बैलेंसशीट में स्थान उपलब्ध है।मंदबुद्धि बच्चों के पालन के लिए केम्प चलाने वालों को टैक्स में छूट का प्रावधान है। इसके लिए मनमानी नहीं बल्कि सुविचारित प्रक्रिया है। यदि कोई युवा अंधा है तो उसे नौकरी पर भेजने की क्या जरूरत है। क्या समाज इतना नाकारा है कि उनका पालन भी नहीं कर सकता है। उनके लिए बाकायदा गुजारे भत्ते की व्यवस्था करना समाज की जवाबदारी है। इसके बावजूद कांग्रेस के साथी और कुछ नादान पत्रकार अंधों को नौकरी दिए जाने की वकालत करते देखे जाते हैं। इनमें वही लोग प्रमुख हैं जिन्होंने किसी न किसी षड़यंत्र के तहत आर्थिक आजादी पाई है। समाज की उत्पादकता बढ़ाने के बजाए वे अधिकारों की बात करते हैं। बेशक अंधों, अनाथों, बुजुर्गों को जीवित रहने का अधिकार है। पर इसके लिए जरूरी नहीं कि वे जब नौकरी करेंगे तभी उन्हें जीने का हक मिलेगा। समाज को अब ये समझ लेना चाहिए कि नौकरी की खैरात बांटने का दौर अब बीत चला है। अनुत्पादक सरकारी नौकरियां बांटकर कांग्रेस की सरकारों ने देश का भट्टा बिठाल दिया। भाजपा की सरकारें भी इस कुशासन को नहीं बदल पा रहीं हैं। शिवराज सिंह सरकार ने यदि अंधों को धरने से उठाकर घर भेजा है तो ये सकारात्मक संदेश है।निःशक्तजनों के लिए सरकार की कई योजनाएं हैं वे उनका लाभ उठाएं और सुख के गीत गुनगुनाएं। किन्हीं षड़यंत्रकारियों के बहकावे में आकर अधिकारों की बहसबाजी न करें। यह संदेश आंखों से विहीन लोगों के साथ साथ दिमाग की आंखों से वंचित लोगों तक भी पहुंच गया होगा हम यही उम्मीद करते हैं।

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