जीएसटी को सहकारी संघवाद बता रही भाजपा

भोपाल(पीआईसीएमपीडॉटकॉम) जीएसटी लागू होने के बाद अनुमान लगाया जा रहा है कि इससे सबसे अधिक क्षति भारतीय जनता पार्टी को होगी। उसके समर्थकों में सबसे ज्यादा व्यापारी वर्ग शामिल है और जीएसटी लागू होने से सबसे ज्यादा क्षति उन्हें ही पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है। भाजपा ने इन हालात को समझते हुए जीएसटी के समर्थन में नारा देना शुरु कर दिया है कि भाजपा जिस सांस्कृतिक संघवाद की आवाज उठाती रही है वो अब सहकारी संघवाद की भावना के साथ देश को आर्थिक समृद्धि भी प्रदान करेगी। व्यापारी वर्ग अपनी पार्टी के इस फैसले से कदमताल करने चल पड़ा है। उसे भरोसा दिलाया जा रहा है कि खातों की इस फेरबदल में यदि व्यापारियों को वास्तविक क्षति पहुंचेगी तो सरकारी तंत्र उन्हें आवश्यक छूटें भी प्रदान करेगा।

अभी तो ये उम्मीद की जा रही है कि जीएसटी परिषद जल्दी ही मौजूदा व्यवस्था की अपूर्णताओं को दूर करेगी। इन कमियों में कर दरों की बहुलता, विभिन्न रियायतें और प्रक्रियात्मक जटिलता शामिल हैं। इसके लिए काफी हद तक कर नौकरशाही जवाबदेह है जो राज्य और केंद्र दोनों जगहों पर नियंत्रण को नकार रही है। लेकिन जीएसटी के लागू होने को केवल आर्थिक नीति सुधार के रूप में देखना नरेंद्र मोदी सरकार की उपलब्धि को कमतर आंकने जैसा है। इसमें छुपा राजनीतिक संदेश भी उतना ही अहम है। जीएसटी पर बनाई गई आम राजनीतिक सहमति भी काफी कुछ कहती है। भाजपा की राजनीति के लिए भी जीएसटी उतना ही अहम है जितना कि देश की अर्थव्यवस्था के लिए।देखा जाए तो भाजपा इससे तीन महत्वपूर्ण संदेश भी दे रही है।

पहला, जीएसटी की शुरुआत का इस्तेमाल सत्ताधारी दल बेहद सावधानी से अपनी सहकारी संघवाद की राजनीति के प्रचार के रूप में कर रहा है। वह ऐसा करके देश को याद दिला रहा है कि उनके लिए सहकारी संघवाद आस्था का विषय है और नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था उस विचार की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। यह बात अहम है क्योंकि सत्ता में आने के पहले मोदी समेत भाजपा के सभी नेता कहते रहे हैं कि सत्ता में आने के बाद वे सहकारी संघवाद की नीति को आगे बढाएंगे।

बीते तीन सालों में कई बार भाजपा सरकार नीतिगत सुधारों में इस सिद्धांत का पालन करने में नाकाम रही है।उम्मीद की गई थी कि नीति आयोग राज्यों की मदद से देश भर में नीतिगत सुधारों को इसी विचार के अधीन आगे ले जाएगा परंतु ऐसा हुआ नहीं। भूमि अधिग्रहण विधेयक में संशोधन करने में विफल रहने के बाद मोदी सरकार ने संकेत दिया था कि वह राज्यों में ऐसे ही सुधार लाएगी। इसी प्रकार श्रम कानूनों की जटिलताओं मे राहत देने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित किया गया कि वे अपने यहां के श्रम कानूनों में बदलाव करें। हालांकि बाद में इस बात पर समुचित ध्यान नहीं दिया गया कि राज्यों ने इस दिशा में क्या कदम उठाए? राज्यों की ओर से कृषि उपज विपणन और अचल संपत्ति संबंधी सुधारों के क्रियान्वयन में भी ऐसी ही ढिलाई बरती गई। जबकि केंद्र ने इन कानूनों में उचित बदलाव कर दिए थे।

अब लगता है कि जीएसटी का लागू होना शायद पहला बड़ा सुधार है जहां केंद्र सरकार ने सभी राज्यों को साथ लेकर कदम उठाया है। निश्चित तौर पर सहकारी संघवाद का प्रदर्शन करते हुए राज्यों को इस बात के लिए आश्वस्त किया गया कि उनके किसी भी राजस्व नुकसान की भरपाई की जाएगी। इसी प्रकार राज्य सरकारों की बात भी सुनी गई। जीएसटी परिषद की अब तक हुई 18 बैठकों में सभी फैसले बिना किसी मतदान के सबकी सहमति से लिए गए।

यही कारण है कि संसद के केंद्रीय कक्ष में जब जीएसटी की शुरुआत की गई तो तमाम राज्यों और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता वहां मौजूद थे। केंद्र सरकार ने जीएसटी को बाकायदा सहकारी संघवाद के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित करने मे कामयाबी पाई। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा कि तमाम राजनीतिक दलों और सरकारों तथा केंद्र के बीच सहयोग से ही जीएसटी का स्वप्न हकीकत में बदल सका।

दूसरा बड़ा संदेश यह है कि अब जीएसटी की शुरुआत को सरकार की कालेधन से लड़ाई के अंग के रूप में पेश किया जा रहा है। यह सच है कि जीएसटी बड़े पैमाने पर लेनदेन को कर दायरे में लाएगा जो अन्यथा इससे बाहर रहते। सरकार ने चुनाव में भी कालेधन से निपटने का वादा किया था। भाजपा चुनाव के दौरान ही काले धन के खिलाफ लड़ने का वादा करती रही है। अब उसका जीएसटी लागू करने का फैसला काले धन के खिलाफ नोटबंदी से ज्यादा कारगर कदम साबित होने जा रहा है।

मौजूदा सरकार का कारोबारियों और दुकानदारों से करीबी जुड़ाव है। पार्टी ने एक ऐसा कदम उठाया है जो इस समूह को ही सबसे अधिक प्रभावित करने वाला है। यह उसका राजनीतिक वर्ग है और जीएसटी का सीधा संबंध इसी वर्ग से है। भाजपा नेता भी यह स्वीकार करने में नहीं हिचकते कि कारोबारी जगत के नाराज साथियों को जीएसटी अनुशासित करेगा। इससे यह संकेत मिलता है कि भाजपा ने कारोबारी वर्ग के साथ रिश्ते को नए रूप में ढाला है। जीएसटी का लागू होना इस बदलाव की पुष्टि करता है। भाजपा के नेता कह रहे हैं कि जीएसटी से फर्जी खाते रखने का चलन तो समाप्त होगा लेकिन व्यापारियों की साख में जबर्दस्त इजाफा होगा।

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