चार पीढ़ियों के त्याग की श्रद्धांजलि हैं मोदी

– भरतचन्द्र नायक…
भारत में लोकतंत्र ने अंगड़ाई ली है। लोकतंत्र परिपक्वता की ओर बढ़ता नजर आया और परंपराएं ध्वस्त हुई क्योंकि जनता ने सियासी खोखलापन नापसंद कर दिया। पात्रता के अवसरवाद से मुक्ति के बाद सबका साथ-सबका सशक्तिकरण लोकबोध बनता देखा गया। अमित शाह और नरेन्द्र मोदी की इस बात को लेकर आलोचना हुई कि उत्तर प्रदेश में एक भी अल्पसंख्यक को प्रत्याशी नहीं बनाया। लेकिन मतदान करने में अल्पसंख्यक आगे रहे और कमल की नुमाइंदगी पसंद की। यहां तक कि मुस्लिम महिलाओं ने कमल के समर्थन में तमाम फतबों और दबावों को दरकिनार करके गतिशील भारत की दिशा निर्धारित कर दी। देश-विदेश के राजनैतिक विश्लेषक इस बात पर हैरान-परेशान है कि विमुद्रीकरण ने 86 प्रतिशत बड़ी मुद्रा को चलन से बाहर कर बैंकों के सामने लंबी लाईनों में जनता को खड़ा कर दिया। फिर भी जनता ने नोटबंदी के कारण क्लेशित होने के बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के समर्थन में मतदान केन्द्रों पर भी कतारों को लंबा कर दिया। कारण स्पष्ट समझ में आया कि सात दशकों तक राजनीति के दिखाऊ मधुर तेवरों में हकीकत कम फसाना अधिक रहा है। नरेन्द्र मोदी ने देश की काली अर्थव्यवस्था में नस्तर लगाया और इसके पहले ताकीद कर दी कि नस्तर से तकलीफ होगी। लेकिन बनने वाले नासूर से आप और अगली पीढ़ी सुरक्षित हो जायेगी। नतीजा सामने आया उत्तर प्रदेश देश के सबसे बड़े सूबे में कमल खिला और ऐसा विशाल जनमत लगभग पौने चार दशक बाद जनता ने परोसा। सत्ता नस्तर लगाने वालों के हाथों में सौंपकर निश्चिन्त हो गयी। पग-पग पर विरोधाभास ने नरेन्द्र मोदी का प्रेतछाया के समान पीछा किया है और नहीं कहा जा सकता है कि यह सिलसिला कहां से कब तक चलेगा? लेकिन जैसा कि वरिष्ठ नेता वैंकेया नायडू ने कहा कि मोदी देश को दैवीय वरदान (गॉड गिफ्ट) है। विरोधाभास वास्तव में उनके लिए पारस स्पर्श देता आ रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मोदी को मौत के सौदागर के रूप में संबोधित क्या किया, गुजरात की जनता मोदी पर कुर्बान हो गयी और गुजरात में कांग्रेस का अवसान हो गया। सर्जिकल स्ट्राईक को राहुल बाबा ने सैनिकों के खून की दलाली कहकर जनता का मूड बिगाड़ दिया। पांच में से 4 राज्यों में जीत का सेहरा जनता ने मोदी के सिर बांध दिया।
बाबरी मजिस्द विवाद के पक्षकार मोहम्मद अंसारी की गणना अल्पसंख्यकों के कट्टर पेरोकार के रूप में हुई है। लेकिन अंसारी मोदी पर ऐसे लटटू हो गये कि उन्होनें अल्पसंख्यकों का आव्हान किया और कहा कि आजादी के बाद पहला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हुआ जो न तो राग द्वेष रखता और न ही लोक लुभावन नारे परोसकर जनता को छलता है। उसके लिए समूची कौम एक परिवार और नजर एक है। अल्पसंख्यकों के साथ वेमुरोब्बत बात वहीं कर सकता है जो निष्कपट है। हाल का एक वाकया भी गंभीर विमर्श की अपेक्षा करता है। आतंकवाद के विस्तार में सिमी के सपोलों ने सिर उठाया। मध्यप्रदेश में 6 सपोले पुलिस के हत्थे चढ़ गये। उत्तर प्रदेश में हरकत कर पाते इसके पहले ही हुई मुठभेड़ में सैफुल्ला हला हो गया। सेकुलर ब्रिगेड चुप कैसे रहता? उसे वोटों की सियासत का मनचाहा मौका मिल गया। मुठभेड़ पर सवाल दाग दिये गये। लेकिन आतंकवादी सरगना सैफुल्ला के वालिद जनाब सरताज ने सैफुल्ला की लाश लेने और दफन करने से इंकार करते हुए कहा कि जो वतन का नहीं हुआ वह मेरा लड़का कैसे हो सकता है। सेकुलर ब्रिगेड की सियासत की सरताज ने न केवल पोल खोल दी, बल्कि नरेन्द्र मोदी द्वारा की गयी सर्जिकल स्ट्राईक के औचित्य में चार चांद लगा दिये। कांग्रेस के वे सभी नेता चुप हतप्रभ रह गये जो ऐसे मौकों को सियासत के लिए भुनाने की ताक में रहते है। उन्होनें मुंबई आतंकी घटना, बटाला हाउस एनकाउंटर पर सवाल खड़े ही नहीं किये, बल्कि मुठभेड़ में शहीद हुए रक्षाकर्मियों की शहादत का अपमान भी किया। लगातार अल्पसंख्यकों को भ्रमित करके अल्पसंख्यकों के विश्वास को सेकुलर ब्रिगेड ने डिगा दिया। अब तक सेकुलरवादियों की अल्पसंख्यकों के भावनात्मक शोषण करने की फितरतों ने सेकुलरवाद के छद्म से अल्पसंख्यक ने तौबा कर ली। इसी का दुष्परिणाम कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को उत्तर प्रदेश के चुनाव में भोगना पड़ा। अल्पसंख्यकों के साथ दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों ने भी नरेन्द्र मोदी की आर्थिक, सामाजिक नीतियों के समर्थन में एकमुश्त मतदान करने की ठान लिया। लोकसभा चुनाव 2014 में नरेन्द्र मोदी के समर्थन में भारतीय जनता पार्टी को जो समर्थन मिला था, ढ़ाई वर्ष बाद भी उसका बरकरार रहना भारतीय लोकतंत्र में विश्वसनीयता का एक अभूतपूर्व कीर्तिमान है। एंटी इन्कमबेंसी की प्रत्याशा में जो ताल ठोक रहे थे वे धराशायी हो गये। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में तीन चौथाई से अधिक बहुमत ने देश और दुनिया को चमत्कृत किया है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि ऐसा तीन चौथाई बहुमत विधानसभा, लोकसभा चुनाव में पीढ़ी को एक बार ही मयस्सर होता है। 1952 के चुनावों में पं. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में यह जीत नसीब हुई। बाद में गरीबी हटाओं देश को बचाओं जैसे आकर्षक नारे देकर इंदिरा जी को भी जनता ने मौका दिया। उनके अवसान के बाद 1984 में इंदिरा जी की दुःखद मौत के बाद जनता ने सहानुभूति वोट के रूप में राजीव गांधी को भी इस स्तर पर पहुंचाया। लेकिन 37 वर्ष बाद नरेन्द्र मोदी ने जैसा कहा कि देश की जनता की खिदमत में उनका 56 इंच का सीना चट्टान की तरह आगे रहेगा। उन्होनें 16वीं लोकसभा के चुनाव और उत्तर प्रदेश की 16वीं विधानसभा के चुनाव में अप्रत्याशित जीत हासिल कर साबित कर दिया कि वे सेवादारों की सैना में यदि सेनापति है तो बेरेक में रहकर हुक्म चलाना नहीं जानते, सीना मोर्चा पर हमेशा आगे रहता है। ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’, न चैन से बैठूंगा और न दूसरों को बैठने दूंगा। छाती ठोककर प्रमाणित कर दिखाया है। नरेन्द्र मोदी का कद पं. नेहरू, इंदिरा गांधी से आगे नहीं तो, पीछे भी नहीं है। यह अतिश्योक्ति नहीं। सात समन्दर पार विश्व संचार माध्यम जो अब तक नरेन्द्र मोदी के खिलाफ विष वमन करने में अग्रणी थे, वे ही फरमा रहे है कि नरेन्द्र मोदी की भारत की जनता ऐसी मुरीद है कि 2019 में 17वीं लोकसभा चुनाव में कमल खिलाने को आतुर है। आहट सोलहवीं विधानसभा (उ.प्र.) चुनावों से कर्णगोचर हो चुकी है। समाजशास्त्रियों, राजनैतिक विश्लेषकों और वरिष्ठ सियासतदारों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी ने समाज के बिखराव के जो कारक अभी तक राजनेताओं ने ईजाद किये थे, उन्हें झुठला दिया है। उनकी नीतियों से पात्रता क्रम मिट चुका है। उन्होनें सबका साथ-सबका सशक्तिकरण मूलमंत्र साबित किया है। चाहे जन-धन योजना हो, मुद्रा बैंक योजना हो, उज्जवला योजना और 79 प्रकार की जो भी जन हितकारी योजनाएं है, उनमें एक ही सांचा है। भारत का नागरिक, शोषित, पीडि़त, वंचित, गरीब, अबाल, वृद्ध नर-नारी, किसान, मजदूर, युवा, महिला सब एक समान न्याय और समानता के अधिकार के हकदार है। पूर्ववर्ती कांग्रेस की यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने योजना भवन दिल्ली में बैठकर यह कहकर कि देश की संपदा पर पहला अधिकार अल्पसंख्यकों का है, अलगाव के बीज बो दिये थे। लेकिन नरेन्द्र मोदी ने लाग-लपेट बिना कहा कि देश की संपदा पर पहला अधिकार सवा अरब जनता का है, लेकिन प्राथमिकता में गरीब सर्वोच्च है। इसी का नतीजा है कि भारतीय जनसंघ के संस्थापक पं. दीनदयाल उपाध्याय के जन्मशताब्दी समारोह के वर्ष को नरेन्द्र मोदी ने देश के वंचितों, गरीबों को समर्पित कर गरीब कल्याण वर्ष के अनुरूप कार्यक्रम का संचालन किया है। नरेन्द्र मोदी को गरीबों में मसीहा की निगाह से देखे जाने के पीछे एक वजह यह है कि मोदी ने कहा है कि गरीब को राहत, डोल की जरूरत नहीं है। उसे ऐसे अवसर और परिस्थिति चाहिए जिसमें गरीब अपना बोझ उठा सके। इसका नतीजा यह होगा कि देश के मध्यम वर्ग के सिर का बोझ कम होगा। देश के संचालन में किफायत होगी और कराधान उदार मॉडल में पहुंच जायेगा। वास्तव में नरेन्द्र मोदी ने सामाजिक न्याय और सेकुलरवाद को ऐसा परिभाषित कर दिखाया है कि समाजवाद, वामपंथ और अन्य सभी वाद भूलुंठित हो चुके है। उत्तर प्रदेश में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आशातीत विजय के एकाधिक कारण है जो अन्य दलों के लिए सबक बन सकते है। विजय के रूप में उत्तर प्रदेश की परिघटना में केन्द्र सरकार और भाजपा संगठन का मेलजोल का अपूर्व संगम रहा है। मोदी ने जहां राष्ट्रहित में संकुचित स्वार्थ को बलि चढ़ाने का साहस दिखाया और नोटबंदी करके अमीरांे और गरीबों को एक कतार में खड़ा करते हुए कहा कि आने वाले कल के लिए आज कुर्बान करना होगा। जनता ने तकलीफ भोगी लेकिन गरीब समझ गये कि देश के माफिया, भ्रष्टाचारी सब नोटबंदी के निशाने पर आ चुके है। विपक्ष ने जनता को बहकाने, विरोध करने के लिए उकसाया लेकिन जनता ने राष्ट्रीय हित में मोदी का साथ दिया। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन में केन्द्रीय कार्यालय से मतदान केन्द्र तक ऐसा संगठनात्मक ताना-बाना बुन डाला और पार्टी की सदस्य संख्या 12 करोड़ पहुंचाकर भारतीय जनता पार्टी को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी में गणना करा दी। देश में ऐसी परिस्थति बनी कि जनता ने महसूस किया कि यदि हम अपना और आने वाली पीढ़ी का भविष्य चाहते है तो राष्ट्रवाद की परिभाषा गढ़ें। राष्ट्रवाद के नाम पर नाक-भौंह सिकोड़ने वालों से देश को अधिक जोखिम है, जितना बाहर से नहीं। देश में सामाजिक, आर्थिक सुधार का जो सिलसिला आरंभ हुआ है, उससे दुनिया में भारत की साख में चार चांद लग गये है। श्री नरेन्द्र मोदी अंतर्राष्ट्रीय फलक पर नेता के रूप में स्थापित हो चुके है। विश्व शक्तियां भारत की ओर टकटकी लगाये है। 2014 के लोकसभा चुनाव में कमल की विजय के 32 माह बाद यदि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी का परचम शान से फहराया गया है तो मानना पड़ेगा कि नरेन्द्र मोदी युग का प्रादुर्भाव हो गया है। यह युग आरंभ तो हो गया है इसका सुदीर्घ भविष्य भी है। सुनहरा भविष्य भाजपा के लिए ही नहीं सवा अरब जनता के कल्याण के लिए समर्पित। नरेन्द्र मोदी ने सादा जीवन-उच्च विचार का जो सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक दर्शन गढ़ा हे, वास्तव में यह भारतीय जनसंघ और पार्टी के उन महामना नेताओं, जिनकी चार पीढ़ी खप गयी है, के प्रति सच्ची भावांजलि है।

Print Friendly, PDF & Email

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*