
वनमंत्री विजय शाह ने बताया 20 से 26 दिसंबर तक भोपाल के लाल परेड ग्राऊंड में लगेगा 9 वां अंतर्राष्ट्रीय हर्बल मेला
भोपाल,18 दिसंबर(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। वनों से प्राप्त जड़ी बूटियां वनवासियों की समृद्धि का साधन बन रही हैं और विदेशी मुद्रा कमाने का साधन भी बन गईं हैं। मध्यप्रदेश सरकार के वन विभाग की रणनीति की कामयाबी की ये कहानी वर्ष 2011 से आयोजित हो रहे अंतर्राष्ट्रीय हर्बल मेलों की वजह से लिखी जा सकी है। लगातार नौवें वर्ष आयोजित किए जा रहे इस वन मेले की सफलता से उत्साहित राज्य के वन विभाग ने इस बार 20 से 26 दिसंबर तक लगातार सात दिनों तक इस मेले की मेजबानी करने की तैयारी की है। वनमंत्री कुंवर विजय शाह ने आज भोपाल में आयोजित पत्रकार वार्ता में बताया कि वनवासियों की समृद्धि के लिए इस बार भी वनसंपदा के विक्रेताओं और खरीददारों को आपस में जोड़कर राज्य सरकार वनौषधियों की मंडी को सफल बनाएगी।
कुंवर विजय शाह ने पत्रकारों के सवालों के जवाब में बताया कि लगातार आयोजित होने वाले वनमेलों से वन संपदा अब वैश्विक बाजारों में पहचान बनाने लगी हैं। महुए के च्वनप्राश की लोकप्रियता इतनी तेजी से बढ़ रही है कि वन समितियों ने अब महुआ इकट्ठा कराकर उसकी मिठाई, अचार और च्वनप्राश जैसे उत्पादों की मार्केटिंग शुरु कर दी है। लघुवनोपज संघ को लंदन से अठारह क्विंटल महुआ उपलब्ध कराने का आर्डर मिला है। इस तरह कई अन्य वनौषधियां भी विदेशी मुद्रा कमाने का साधन बन रहीं हैं।

श्री शाह ने बताया कि इस सात दिवसीय आयोजन के लिए भारत के बारह राज्यों के साथ भूटान, नेपाल और इंडोनेशिया की सरकारों ने भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित की है। मेले में चौबीस दिसंबर को बायर सेलर मीट का आयोजन किया जाएगा जिससे स्थानीय वनसंपदा के विक्रेताओं के लिए वैश्विक बाजार के खरीदार भी उपलब्ध हो सकेंगे। कई सरकारी और गैर सरकारी प्रतिष्ठान भी मेले में अपने उत्पादों के स्टाल लगा रहे हैं। पिछले साल इस मेले में लगभग सवा लाख लोग पहुंचे थे इस बार सात दिनों के मेले में इससे भी ज्यादा तादाद में दर्शक और खरीददार पहुंचेंगे।
उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश की वनौषधियों में लोगों की रुचि को देखते हुए वन विभाग ने कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया है.मेले में प्रसिद्ध गायक विनोद राठौर, हास्य कलाकार सुनील पाल, कबीर कैफे, आदिवासी लोक नृत्य जैसे कई कार्यक्रमों का आयोजन होगा।
इस मेले की थीम हर बार की तरह लघुवनोपज से आत्मनिर्भरता रहेगी। पिछले साल बड़ी कंपनियों ने ग्रामीण वनोपज समितियों से 14 करोड़ रुपए के अनुबंध किए थे। इस बार हमें लगभग बीस करोड़ रुपए से अधिक के अनुबंध होने का अनुमान है। हमारा प्रयास है कि विक्रेताओं को सीधे खरीददार उपलब्ध हों और वे दलालों के चंगुल में न फंसें। ये सारे प्रयास मप्र लघुवनोपज संघ और वन विभाग के सहयोग से सफल हो पाए हैं।
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