भोपाल ( पीआईसीएमपीडॉटकॉम )। खाद्य विभाग के इंस्पेक्टरों को नापतौल विभाग में अतिरिक्त प्रभार देने वाली प्रमुख सचिव नीलम शमी राव के तुगलकी आदेश को गलत मानते हुए हाईकोर्ट ने फिलहाल स्थगित कर दिया है। गैरकानूनी आदेश पर अदालती रोक से बौखलाई श्रीमती राव ने अब खाद्य विभाग के कमिश्नर और कलेक्टरों पर अपने आदेश का पालन करने का दबाव बनाना शुरु कर दिया है। इस आदेश पर विभागीय मंत्री ने तो कोई गुरेज नहीं किया पर इसके विरोध में नापतौल विभाग के अफसरों ने जरूर मोर्चा खोल दिया है। इस मामले से शिवराज सिंह चौहान सरकार के कथित सुशासन की असलियत भी उजागर हो गई है।
राज्यों के नापतौल विभाग भारत सरकार के विधिक माप विज्ञान,खाद्य एवं उपभोक्ता मामले के निदेशक से प्रत्यायोजित अधिकारों के माध्यम से काम करते हैं। भारत सरकार की अधिसूचना क्रमांक 576(अ) दिनांक 18.07.2012 से राज्यों को अंतर्राज्यीय व्यापार एवं वाणिज्य के संबंध में ये शक्तियां प्रदान की गईं हैं। ये अधिकार किसी अन्य को हस्तांतरित नहीं किये जा सकते हैं। इसके बावजूद 1992 बैच की आईएएस और इलेक्ट्रानिक्स में बीई करके प्रशासक बनी राज्य की प्रमुख सचिव इन कानूनों को धता बताने की सनक पाल बैठी हैं। वे इस संबंध में भारत सरकार से अधिकार विकेन्द्रीकृत करने का अनुरोध प्रक्रियागत रूप से कर सकतीं थीं लेकिन बिना कानूनी फेरबदल केवल धौंस डपट के सहारे वे फूड इंस्पेक्टरों को नापतौल इंस्पेक्टर बनाने में जुटी हुई हैं।
उनके हाई प्रोफाईल व्यवहार की वजह कथित तौर पर उनकी आईएएस और आईपीएस सदस्यों वाली पारिवारिक पृष्ठभूमि बताई जा रही है। इस संबंध में जब उनसे पूछा गया कि पांच फूड इंस्पेक्टरों को नापतौल विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिए जाने से विभाग की कार्यप्रणाली में क्या सुधार हुए तो उनका कहना था कि इतनी जल्दी आकलन करना संभव नहीं है। वे ऐसा क्यों चाहती हैं पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि शासन का फैसला है सबको मानना ही पड़ेगा। हालांकि इस संबंध में हाईकोर्ट के स्थगन पर वे अपने आदेश को सर्वोपरि ही बताती रहीं।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट की जबलपुर खंडपीठ की न्यायाधीश सुश्री वंदना कसरेकर ने याचिका क्रमांक ड्बल्यू पी 5545 दिनांक 15.03.2018 का निपटारा करते हुए फिलहाल इस गैरकानूनी आदेश पर स्थगन दे दिया है। इस स्थगन से बौखलाई प्रमुख सचिव महोदया ने मैराथन बैठकों के माध्यम से मंत्रालय और नापतौल विभाग के अफसरों को घंटों फटकारना शुरु कर दिया है। नियमों और कानूनों को रौंदने वाले इस मामले पर फिलहाल मध्यप्रदेश की सरकार और शासन के आला अफसर सभी चुप्पी साधे हुए हैं।
मध्यप्रदेश विधिक माप विज्ञान अधिकारी एवं कर्मचारी संघ के महासचिव उमाशंकर तिवारी ने शासन को भेजे अपने प्रतिवेदन में कहा है कि खाद्य विभाग के पांच सहायक खाद्य आपूर्ति अधिकारियों को आदेश क्रमांक एफ 13-1। 2018। 29-2दिनांक 19.02.2018 के माध्यम से नापतौल विभाग में अतिरिक्त प्रभार देना गैरकानूनी और अव्यावहारिक है इसलिए इस आदेश को वापस लिया जाए। उनका कहना है कि विधिक माप विज्ञान अधिनियम 2009 की धारा 14(1) में राज्य सरकार को अधिसूचना के माध्यम से विधिक माप विज्ञान नियंत्रक , अपर नियंत्रक, उप नियंत्रक, सहायक नियंत्रक निरीक्षक आदि को नियुक्त करने का तो अधिकार है पर अतिरिक्त प्रभार देने की अनुमति नहीं है।
विधिक माप विज्ञान नियम 2011 के नियम 28(3) से विधिक माप विज्ञान अधिकारी के पद पर नियुक्त व्यक्ति को पदस्थापना से पहले भारतीय विधिक माप विज्ञान संस्थान रांची से आधारभूत प्रशिक्षण पाठ्यक्रम पूरा करना अनिवार्य होता है। हालांकि इस संबंध में पहले भी भारत सरकार के उपभोक्ता मामले का मंत्रालय पत्र के माध्यम से कह चुका है कि खाद्य निरीक्षकों को विधिक माप विज्ञान निरीक्षक के पद पर नियुक्त करने की कोई गुंजाईश नहीं है।
सबसे हास्यास्पद बात तो ये है कि खाद्य विभाग में कनिष्ठ आपूर्ति अधिकारी के चार सौ पद स्वीकृत हैं जिनमें से 188 पद खाली पड़े हैं। सहायक आपूर्ति अधिकारियों के 146 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 31 पद खाली हैं। इसके बावजूद शासन ने फूड इंस्पेक्टरों को नापतौल विभाग का अतिरिक्त प्रभार देने की जिद ठान ली है। नापतौल विभाग में भी 34 पद खाली पड़े हैं जिन्हें भरने में शासन की कोई रुचि नहीं है लेकिन वह उन जिलों में फूड इंस्पेक्टरों को अतिरिक्त प्रभार दे रही है जहां पहले से नापतौल निरीक्षक पदस्थ हैं। जबकि उन स्थानों पर भी खाद्य विभाग अपना काम पूरा नहीं कर पा रहा है।
नापतौल विभाग को चवन्नी छाप डिपार्टमेंट बोलने वाली प्रमुख सचिव नीलम शमी राव ने अपने आदेश से होशंगाबाद, बैतूल, मुरैना, गुना और उज्जैन में नापतौल निरीक्षकों का अतिरिक्त प्रभार छीनकर फूड इंस्पेक्टरों को देने का फरमान सुनाया था जिसे हाईकोर्ट ने रोक दिया है। उन्होंने संबंधित कलेक्टरों पर दबाव बनाकर फूड इंस्पेक्टरों को काम करने की छूट दिलाने का दबाव बनाया था। इसके जवाब में उमाशंकर तिवारी का कहना है कि जब इन फूड इंस्पेक्टरों का वेतन खाद्य विभाग से मिली उनकी पदस्थापना स्थल से निकलना है और वे नापतौल विभाग के अधीन हैं ही नहीं तो विभाग उनसे कैसे काम ले सकता है। उनका कहना है कि नापतौल विभाग न तो फूड इंस्पेक्टरों के कामकाज का आकलन करेगा और न ही वे प्रवर्तन संबंधी प्रकरणो में अभियोजन कार्रवाई कर सकते हैं। ऐसे में उन्हें प्रभार दिए जाने का क्या औचित्य है। ये प्रकरण छोटी अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक विचाराधीन रहते हैं जिसमें शासन भी एक पक्ष रहता है। शासन को यदि नापतौल विभाग का कामकाज सुधारने की इतनी ही चिंता है तो वह यहां खाली पड़े पदों को भरने की पहल क्यों नहीं करता है।
नापतौल विभाग राज्य शासन से प्राप्त लगभग बीस करोड़ के बजट के एवज में लगभग पंद्रह करोड़ रुपए की आय भी देता है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में वह फरवरी महीने तक लगभग साढ़े चौदह करोड़ की कमाई कर चुका था। पूरे प्रदेश में नापतौल विभाग के पास स्वयं के बनाए भवन हैं।वह राज्य सरकार के निर्देशों पर अपना कामकाज बखूबी कर रहा है। ऐसे में यदि अधिकारियों की कमी पूरी की जाती तो सरकार की आय भी बढ़ती और उपभोक्ताओं को ठगी धोखाघड़ी से भी बचाया जा सकता था।
राज्य सरकार एक ओर तो प्रांत को –इज आफ डूइंग बिजिनेस — वाला राज्य बताकर उद्योगपतियों को कारोबार फैलाने का निमंत्रण दे रही है वहीं उसके आला अफसर कलेक्टरों के माध्यम से इंस्पेक्टर राज को फिर जीवित करके सरकार की मंशा को मटियामेट करने में जुटे हैं। नापतौल विभाग उपकरणों के पुनःसत्यापन, राजीनामा, पंजीयन, जैसे सामाजिक सुरक्षा के कामकाज की जवाबदारी संभालता है लेकिन गैरकानूनी और गैर जिम्मेदार व्यवस्था को बढ़ावा देकर सुशासन में पलीता लगाने वाले आला अफसरों को किसकी शह है ये तो विस्तृत खोजबीन के बाद ही पता लगाया जा सकता है।
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