सूरज रे जलते रहना


प्रिय युवा साथियो
दिगंबर जैन समाज की नई पीढ़ी के युवक युवतियों का परिचय सम्मेलन में स्वागत करते हुए हमें बहुत प्रसन्नता हो रही है। जो बच्चे हमारे देखते देखते दुनिया में आए वे आज विभिन्न क्षेत्रों में अपना परचम फहरा रहे हैं। हमें साल दर साल उनके लिए योग्य जीवनसाथी तलाशने का अवसर मिला है। अपने हिस्््से में आए इस पवित्र कार्य के लिए हम स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस करते हैं। जो बात कुछ समय से मन को बैचेन कर रही है वह ये कि आज के युवाओं में अहम और संवादहीनता की वजह से परिवार के प्रति श्रद्धा का भाव घट रहा है। उनमें परिवार की गाड़ी को पटरियों पर चलाने का धैर्य कम होता जा रहा है। उपभोक्तावाद ने माईक्रोफैमिली बनाने की जो मुहिम छेड़ रखी है उसकी वजह से परिवार टूट रहे हैं। कहा जाता है ….सा विद्या या विमुक्तये…यानि विद्या वो जो मुक्ति प्रदान करती हो। जाहिर है कि ज्ञान के प्रसार के बाद बंधनों से आजादी की ललक परवान चढ़ती ही है। आज युवतियां जाति,राष्ट्रवाद और पुरुषवाद के घेरे से आजादी की तरफ भाग रहीं हैं । वे पितृसत्ता की गुलामी से आजादी की ओर भी भाग रहीं हैं।उन्हें कानून से मिले अधिकार बहुत लुभा रहे हैं। इन सबके बीच वे अपना कर्तव्यबोध भूल चली हैं।युवा लड़के परिवार की जिम्मेदारियों से बचने का हुनर तलाश रहे हैं। इन सब विकृतियों का कारण वोट की राजनीति के लिए परिवारवादी चिंतन को बढ़ावा देना रहा है। हमारी सामाजिक गतिविधियां भी व्यक्तिवाद के इर्द गिर्द सिमटी रहीं हैं। लोगों ने सामाजिक गतिविधियों को किन्हीं परिवार या व्यक्ति की बपौती बताना शुरु कर दिया।संस्थाओं में किसी व्यक्ति के नाम का लेबल लगाकर भरपूर अनियमितताएं की जाती हैं। गड़बड़ियों को छुपाने के लिए धर्म या धर्म गुरुओं के नाम की आड़ ले ली जाती है। फर्जी बिल लगाकर सामाजिक गतिविधियों को इस तरह एहसान थोपते हुए अंजाम दिया जाता है मानों वे महान दानी और भामाशाह हों। ये सब गतिविधियां युवा मन बड़ी जल्दी पकड़ लेता है। इसके बाद अनैतिकता के विचार धीरे धीरे अपनी जगह बनाने लगते हैं। नई पीढ़ी बराबरी चाहती है सौंदर्य चाहती है, प्रेम चाहती है यहां तक तो ठीक है लेकिन वह इसके लिए जब गैर जिम्मेदार हो जाती है तो निंदनीय हो जाती है। समाज को सुंदर और न्यायप्रिय बनाने के लिए विद्रोह जरूरी है। समाज को ढर्रे से आजाद करना जरूरी है। इंसानियत तभी खूबसूरत बनेगी जब हम गलत बातों का प्रतिकार करेंगे। परिवार के दायरे को आगे बढ़ाकर जब राष्ट्र और विश्व के स्तर पर ले जाया जाता है तभी चिंतन की व्यापकता सार्थक होती है। हमें सोचना होगा कि हम व्यापक तो हों पर धरातल पर भी अपने पैर जमाए रख सकें । युवाओं का एक बड़ा वर्ग अधिकार की आड़ में सब कुछ मुफ्त हड़पने की नियत रखता है। सामाजिक नियंत्रण और दंड विधान की निष्क्रियता या अक्षमता वजह से इस पाखंड को कई बार प्रश्रय भी मिल जाता है। इसके बावजूद दूरगामी परिणाम विषदायी साबित होते हैं। युवाओं को समझना होगा कि वे अपने जीवनसाथी का आकलन पैकेज के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्तित्व की व्यापकता के आधार पर करें। जब वे आत्मनिर्भर सोच से निर्णय करेंगे तो फिर उन्हें हताशा नहीं होगी। जैन समाज को जागरूक माना जाता है। उसके ऊपर बड़ी जिम्मेदारी भी है। आईए हम प्रयास करें कि हमारे परिवार आदर्श बनें, हम समाज के उन घरों का अंधेरा दूर कर सकें जिनके घरों को दीपक भी मुश्किल से नसीब होता हो। जगत कल्याण के लिए हमें सूरज बनकर निरंतर जलते रहना होगा।
निवेदक
आभा जैन गोहिल,
त्रिशला महिला मंडल,9424966247

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