खेती को उद्योग बनाने की दिशा में कई फैसले

खेती में निवेश की राह में रोड़े बने कानूनों की समीक्षा के बाद राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने प्रस्ताव कैबिनेट में प्रस्तुत किया।
खेती में निवेश की राह में रोड़े बने कानूनों की समीक्षा के बाद राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने प्रस्ताव कैबिनेट में प्रस्तुत किया।

भोपाल(पीआईसी)। मध्यप्रदेश सरकार ने खेती को उद्योग की तरह लाभकारी बनाने की दिशा में कई नियमों में फेरबदल किए हैं। हालांकि अभी खेती को उद्योग का दर्जा नहीं दिया जा रहा है पर इन बदलावों से खेती पर निवेश बढ़ाने में मदद मिलेगी। केबिनेट ने फैसला लिया है कि लगातार तीन साल किराए की जमीन पर लगातार खेती करने से मिलने वाला भू-स्वामी का अधिकार अब नहीं मिलेगा। इसके लिए भू-राजस्व संहिता के मौरूषी के अधिकार को विलोपित किया जाएगा। इस प्रावधान के चलते लोग अपनी जमीन किराए पर नहीं देते थे और ये खाली पड़ी रहती थी। इससे कृषि विकास दर के साथ उत्पादन भी प्रभावित होता था।

सरकार विधानसभा के मानसून सत्र में भू-राजस्व संहिता 1959 में व्यापक बदलाव का विधेयक लाएगी। शहरी क्षेत्रों में भूखंड को फ्री-होल्ड कराने के बाद भी भू-स्वामी का अधिकार नहीं मिल पाता था, वो समस्या भी अब दूर हो जाएगी। शहरी क्षेत्रों में भूमि प्रबंधन की व्यवस्था बनाई जाएगी। आबादी की जगह नक्शे में अब भू-स्वामी को दर्शाया जाएगा। इसके बाकायदा पत्र भी दिए जाएंगे। बैठक में इसके अलावा पेटलावद मोहर्रम जुलूस विवाद संबंधी न्यायिक जांच आयोग की रिपोर्ट को मंजूरी दी गई। यह रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी जाएगी। इसमें आरएसएस कार्यकर्ताओं को क्लीचचिट दी गई है।

कैबिनेट बैठक के बाद जनसंपर्क मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा और राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने बताया कि भू-राजस्व संहिता की 122 धाराओं में बदलाव किए गए हैं। संहिता को किसान के साथ जन उपयोगी बनाया गया है। राजस्व मंडल से राजस्व न्यायालयों के नियम बनाने की शक्ति वापस ले ली गई है। नामांतरण आदेश पारित होने के बाद जब तक इसकी नि:शुल्क प्रति संबंधित व्यक्ति को नहीं मिल जाएगी, तब तक प्रक्रिया को पूरा नहीं माना जाएगा। सीमांकन के लिए निजी एजेंसियों को लाइसेंस दिए जाएंगे।

सीमांकन में विवाद होने पर तहसीलदार सुनवाई करके आदेश देंगे। इसकी अपील अनुविभागीय अधिकारी के पास होगी और उसका फैसला अंतिम होगा। मामूली बातों पर अपील खारिज करने के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है। डायवर्सन के लिए अब व्यक्ति को भटकना नहीं पड़ेगा। मास्टर प्लान में जो लैंडयूज दिया गया है, वैसा ही भूमि का उपयोग करने पर तय शुल्क चुकाकर जो रसीद मिलेगी उसे ही प्रमाण मान लिया जाएगा।

बंदोबस्त की समस्याओं का निराकरण अब कलेक्टर स्वयं कर सकेंगे। अब तक ये 30 साल में एक बार होता था, यह व्यवस्था खत्म करके कलेक्टरों को अधिकार दिया गया है वे जहां जरूरी समझें तो बंदोबस्त करा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों के पटवारी हलके की तरह शहरी क्षेत्रों में सेक्टर और ब्लॉक की व्यवस्था होगी। सार्वजनिक उपयोग के लिए जमीन आरक्षित करने का अधिकार कलेक्टर को होगा।

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*