लोकनिर्माण विभाग में कमाऊ परियोजनाओं पर वर्चस्व जमाने की मुहिम
वक्त है बदलाव का नारा देकर कांग्रेस ने प्रदेश की सत्ता की चाभी मांगी थी। जनता ने इस वादे पर गौर किया कांग्रेस की झोली में चार फीसदी वोट अधिक डाल दिए। समीकरण कुछ ऐसे बने कि सत्तर हजार वोट कम पाकर भी कांग्रेस कुर्सी पर काबिज हो गई। जनता को अपेक्षा है कि कमलनाथ कांग्रेस जनहित में कुछ बदलाव करेगी। सरकार ने कुछ बड़े कदम उठाए भी हैं लेकिन सत्ता की आड़ में कई ठग भी सत्तासीन हो चले हैं। लोक निर्माण विभाग में बड़े बजट वाले प्रोजेक्ट हड़पने की मुहिम शुरु हो गई है। कई प्रोजेक्ट तो सजायाफ्ता अफसरों के हवाले कर दिए गए हैं। ठेठ राजधानी में सड़क निर्माण की एक परियोजना ऐसे अफसर के हवाले कर दी गई है जिसे भ्रष्टाचार में दोषी पाकर दंडित किया जा चुका है। एक अन्य प्रकरण में सजा मंजूर हो चुकी है। जबकि एक अन्य प्रकरण पर लोकायुक्त की जांच लंबित है और जल्दी ही एफआईआर दर्ज होने वाली है।
राजधानी का विकास मंडीदीप से बैरागढ़ होते हुए सीहोर तक लंबी लंबी सड़कों के बीच हुआ है। पहली बार एक ऐसी सड़क बनाई जा रही है जो सीहोर से मंडीदीप को जोड़ने वाली होगी। भोपाल को काटने वाली ये पहली सड़क है। कलियासोत डैम से बर्रई के बीच बनने वाली इस 12 किलोमीटर सड़क की लागत 45 करोड़ रुपए अनुमानित की गई है। इस सड़क का सुझाव पूर्व मुख्य सचिव आर परशुराम ने दिया था। उनका कहना था कि मंडीदीप औद्योगिक क्षेत्र को इंदौर मार्ग से जोड़ने का प्रयास कुछ इस तरह किया जाए ताकि भोपाल से गुजरने वाले ट्रेफिक को वक्त भी कम लगे और यातायात की बाधाएं भी न आएं। लोक निर्माण विभाग के पूर्व ईएनसी अखिलेश अग्रवाल ने इसके लिए बाकायदा विभागीय अफसरों से सैटेलाईट सर्वे करवाया और तब ऐसा मार्ग खोजा गया जिसकी लागत बहुत कम हो। कलियासोत नहर के दायीं ओर बनने वाली इस सड़क की लागत इसलिए कम आ रही है क्योंकि इसमें मुआवजे की राशि का भुगतान अधिक नहीं किया जाना है। अतिक्रमण हटाने के प्रकरण भी कम हैं। इसके साथ साथ जिन तेरह चौराहों से होकर ये सड़क गुजरनी है उनसे शहर के बड़े हिस्से को सीधी कनेक्टिविटी मिलना संभव है। चूनाभट्टी से बनने वाला ये एक्सप्रेस हाईवे बहुत कम वक्त में सीधा बाईपास से जोड़ देगा। यही नहीं मंडीदीप से सीहोर जाने के मौजूदा मार्ग की तुलना में इस सड़क से लगभग बारह किलोमीटर की कमी भी आएगी।
लोक निर्माण विभाग ने चार वर्षों के लंबे अध्ययन और नक्शे आदि बनाने के बाद अक्टूबर 2018 में ये प्रोजेक्ट शुरु किया है। इस प्रोजेक्ट को साकार करने वाले जेल 2 सबडिवीजन के अनुविभागीय अधिकारी अमलराज जैन को ये जवाबदारी दी गई थी। इंजीनियरों के भी इंजीनियर कहे जाने वाले मुख्य अभियंता अखिलेश अग्रवाल इस परियोजना पर अपनी पैनी नजर रखे हुए थे। इसलिए परियोजना का काम तेजी से पूरा किया जा रहा था। कमलनाथ सरकार के आते ही कई लोग ईएनसी पर कमाऊ प्रोजेक्ट देने का दबाव बनाने लगे। राहुल ब्रिगेड के प्रभारी रहे युवा केबिनेट मंत्री ने चूनाभट्टी से बर्रई के बीच बनने वाले एक्सप्रेस हाईवे का काम अपने रिश्तेदार विजय सिंह पटेल को देने का दबाव बनाया। अखिलेश अग्रवाल ने साफ इंकार कर दिया। नतीजन अगले दिन विभागीय मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने मामले में हस्तक्षेप किया और विभागाध्यक्ष से राहुल ब्रिगेड के संबंधित मंत्री का निर्देश मानने को कह दिया। आनन फानन में आदेश निकाला गया और विजय सिंह पटेल को ये परियोजना थमा दी गई। जब श्री विजय सिंह जतारा में सहायक यंत्री थे तब उन्होंने सड़क पर इतना कम डामरीकरण कराया था कि पहली बरसात में ही सड़क बह गई। जांचकर्ताओं ने इसके लिए श्री विजय सिंह को दोषी पाया और विभाग ने उनकी चार वेतनवृद्धि संचयी प्रभाव से रोकने की शास्ति अधिरोपित कर दी। विभागाध्यक्ष अखिलेश अग्रवाल ये जानते थे,लोकायुक्त के प्रकरण की भी उन्हें जानकारी थी लेकिन सरकार का निर्देश मानकर उन्होंने इस परियोजना को भ्रष्ट अफसर के हवाले कर दिया।हालांकि इसके बावजूद निर्माण भवन में सात वर्ष नौ माह की मैराथन जवाबदारी संभालने वाले अखिलेश अग्रवाल को भी विभाग से चलता कर दिया गया। वे निहायत ईमानदार अफसर माने जाते हैं पर सरकार में आ धमके कुछ गिरोहबाजों के लिए वे उपयोगी नहीं थे।
मौजूदा मुख्य अभियंता श्री आर के मेहरा और विभागीय मंत्री सज्जन सिंह वर्मा के विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी संजय खांडे भी इस परियोजना की हकीकत से वाकिफ हैं। वे कहते भी हैं कि इस प्रोजेक्ट को साकार करना भोपाल के लिए विशेष तौर पर उपयोगी है। वे ये भी कहते हैं कि लोक निर्माण विभाग के नियमों और परंपराओं के अनुसार किसी भी प्रोजेक्ट को शुरु करने वाले अफसर को ही उसे पूरा करने की जवाबदारी दी जाती रही है।क्योंकि इससे परियोजना की बारीकियां आसानी से हल हो जाती हैं। कोई गंभीर शिकायत सामने आने पर ही परियोजना का प्रभारी बदला जाता है। इसके बावजूद सरकार का हुक्म बजाना अफसरों की मजबूरी है।
मुख्यमंत्री कमलनाथ आमतौर पर सरकारी कामकाज में अधिक दखल देने के पक्ष में नहीं रहते हैं। उनके करीबी बताते हैं कि वे अफसरों पर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए भी बेजा दबाव डालने के पक्षधर नहीं हैं। इसके बावजूद कांग्रेस में जिस तरह से कई नेताओं की लाबियां सक्रिय हैं उससे शासन प्रशासन पर तय शुदा राजनीतिक दबाव की तुलना में कई गुना तनाव थोपा जा रहा है। राजधानी की शान कही जाने वाली इस परियोजना में मौजूदा बदलाव आने के बाद शुरु हो चुका काम ठप पड़ गया है। निश्चित तौर पर यदि सरकार ने परियोजना की सुध नहीं ली तो इसका समय सीमा में पूरा होना भी असंभव है और लागत कितने गुना बढ़ेगी ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
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