भोपाल, 07 मार्च(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। मध्यप्रदेश के लोकायुक्त जस्टिस एन.के.गुप्ता के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाकर खुद को ईमानदार दिखाने का जतन करने वाले आईपीएस कैलाश मकवाना की सीआर फिर खटाई में पड़ गई है। उन्हें लोकायुक्त संगठन से विदा करने वाली जांच रिपोर्ट की वजह से विभाग और शासन दोनों ने गोपनीय चरित्रावली के सुधार पर चुप्पी साध ली है। ऐसे में मकवाना की बिगड़ी सीआर सुधरना तो दूर बल्कि उनकी समूची प्रशासनिक दक्षता पर सवालिया निशान लग गए हैं। मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव ने भले ही भोले भंडारी बनकर मकवाना की सीआर अपग्रेड कर दी थी लेकिन बताते हैं कि जांच रिपोर्ट की असलियत सामने आने के बाद उन्होंने भी इससे किनारा कर लिया है और अब तक उसका आदेश जारी नहीं हो पाया है। मकवाना की बात को सही मानकर जिन लोगों ने उनकी सीआर सही होने की खबर छापना शुरु कर दी थी वे अब अपना समाचार असत्य हो जाने से परेशान हैं।
मकवाना को जब शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने लोकायुक्त संगठन भेजा था तब कतिपय भ्रष्ट अफसरों के हरकारों ने ढोल पीटा था कि अब लोकायुक्त संगठन में बेईमानों को बचाना संभव नहीं होगा। उन्होंने चंद प्रकरणों का हवाला देकर जताने की कोशिश की थी कि मकवाना ईमानदार अधिकारी हैं इसलिए अब तक उन्हें फील्ड से दूर रखा जाता रहा है। पहली बार उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जा रही है। मकवाना ने भी संगठन में जाते ही ताबड़तोड़ ढंग से आधे दर्जन अफसरों के विरुद्ध दर्ज प्रकरण बंद कर दिए और उन्हें दोषमुक्त करार दे दिया। इसके लिए उन्होंने न तो लोकायुक्त एनके गुप्ता से कोई राय मशविरा किया और न ही उनकी विधिवत अनुमति प्राप्त की।जबकि इस प्रक्रिया में कई विधिवेत्ता और जांच अधिकारी शामिल होते हैं जिनकी रायशुमारी और कानूनी सलाह के बाद ही किसी को दोषमुक्त करार दिया जाता है।
लोकायुक्त संगठन के सूत्र बताते हैं कि जब मकवाना ने संगठन के कानून वेत्ताओं को खलनायक बताते हुए खुद को राबिनहुड की तरह पेश करना शुरु कर दिया तो वहां पदस्थ कई जजों के कान खड़े हो गए। उन्होंने इसकी शिकायत लोकायुक्त जस्टिस एन.के.गुप्ता से की।इस पर संगठन की ओर से एक जांच समिति नियुक्त की गई जिसने पाया कि मकवाना ने अपने अधिकारों से इतर जाकर इन प्रकरणों में खात्मा लगाया है। भ्रष्टाचार के तथ्यों को तोड़ मरोड़कर उन्होंने आरोपियों को बरी कर दिया। जब जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट तैयार की तो इसका अवलोकन कानून वेत्ताओं से करवाया गया। इसके बाद पुर्नावलोकन भी कराया गया। जब सभी ने पाया कि भ्रष्ट अधिकारियों को गैरकानूनी ढंग से बरी किया गया है तो ये जांच रिपोर्ट लोकायुक्त जस्टिस एन.के.गुप्ता के पास पहुंची। यहां से इसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संज्ञान में लाया गया। तब जाकर मात्र छह महीनों के भीतर मकवाना को विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त संगठन से बाहर कर दिया गया। जिन प्रकरणों में मकवाना ने खात्मा लगवाया था उनके विरुद्ध दुबारा प्राथमिकी दर्ज करके जांच शुरु की गई।
आईपीएस कैलाश मकवाना इससे बहुत क्षुब्ध हुए और उन्होंने विक्टिम कार्ड खेलना शुरु कर दिया। सार्वजनिक ट्वीट और परिजनों के ट्वीट के साथ उन्होंने अपने कई समर्थकों के सहारे मीडिया में हल्ला मचाना शुरु कर दिया ताकि उनके खिलाफ जांच रिपोर्ट के तथ्यों को अत्याचार करार दिया जा सके। कुछ सूत्रों का कहना है कि मकवाना ने विशेष पुलिस स्थापना में अपनी पोस्टिंग केवल इसलिए कराई थी ताकि वह शिवराज सरकार में आका बने बैठे कतिपय वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ दर्ज प्रकरणों में खात्मा लगाकर उन्हें बचा सकें और पुरस्कार के रूप में खुद को पुलिस महानिदेशक के रूप में पदस्थ करवा सकें। वरिष्ठता क्रम में वे आगे जरूर हैं लेकिन उनकी गोपनीय चरित्रावली की वजह से वे दौड़ से बाहर हो रहे थे।
उनके विक्टिम कार्ड का असर इतना तो जरूर पड़ा कि बाद में आई कमलनाथ सरकार ने उन्हें अपने लिए उपयोगी समझा और उन्हें फिर एक बार मैदानी नियुक्ति दे दी गई। इस बार कमलनाथ सरकार को भी चार महीनों में समझ में आ गया कि मकवाना की तोड़ फोड़ और व्यक्तिगत लाभ उठाने की प्रवृत्ति उसके लिए खतरनाक साबित हो रही है। इसे देखते हुए उन्हें एक बार फिर विभागीय कामकाज संभालने के लिए पुलिस हाऊसिंग कार्पोरेशन भेज दिया गया।
पुलिस हाऊसिंग कार्पोरेशन में संविदा नियुक्त वाली एक इंजीनियर हेमा मीणा के पास जब करोड़ों रुपयों की जायदाद बरामद हुई तब एक बार फिर मकवाना सवालों के घेरे में आ गए. आईपीएस उपेन्द्र जैन के साथ उन पर भ्रष्टाचार के छींटे उड़े क्योंकि उनके अधीनस्थ कर्मचारी इतने लंबे समय तक भ्रष्टाचार करती रही और विभाग के प्रमुखों को कानों कान खबर भी न हो ऐसा तो संभव नहीं हो सकता था।
आईपीएस अधिकारी कैलाश मकवाना के औंधे मुंह गिर पड़ने से पुलिस विभाग के कई अफसरों ने राहत की सांस ली है। पुलिस महानिदेशक पद के लिए दौड़ में शामिल इस विकेट के गिर जाने से शैलेष सिंह, अरविंद कुमार, सुधीर कुमार शाही जैसे कई अफसरों को अब अपनी राह आसान दिखने लगी है। केन्द्र सरकार ने ऐसी नियुक्तियों को लेकर एक साफ व्यवस्था बना रखी है कि जो आईएएस या आईपीएस अधिकारी लगातार दस सालों तक फील्ड में काम नहीं कर पाएं वे विभाग प्रमुख पद के लिए अयोग्य समझे जाते हैं। इस मापदंड पर मकवाना फिसड्डी साबित हो रहे हैं क्योंकि उन्हें अब तक किसी भी सरकार ने या अफसरों ने दस सालों तक फील्ड में सेवा करने का अवसर नहीं दिया है।
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