-संजय गोविंद खोचे-
सम्भाजी राजे, शिवाजी महाराज के ज्येष्ठ पुत्र थे, संभाजी का जन्म 14 मई 1657 में हुआ था। माता का देहांत उनकी अल्प आयु में ही हो गया और फिर उनका पालन पोषण दादी जीजाबाई ने किया। 16 जनवरी सन 1681 ई. को सम्भाजी महाराज का विधिवत राज्याभिषेक हुआ और वो हिंदवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति बने। शम्भाजी बहुत बड़े विद्वान् और धर्मशास्त्रो के ज्ञाता थे, उन्होंने 14 वर्ष की उम्र में ही संस्कृत में कई ग्रन्थ लिख दिये थे।
विदेशी पुर्तगालियों को हमेशा उनकी औकात में रखने वाले सम्भाजी को धर्म परिवर्तन कर मुस्लिम बन गए हिन्दुओं का शुद्धिकरण कर उन्हें फिर से स्वधर्म में शामिल करने वाले, एक ऐसे राजा जिन्होंने एक स्वतंत्र विभाग की ही स्थापना इस उद्देश्य हेतु की थी।
छत्रपति सम्भाजी महाराज ने अपने जीवन में 140 युद्ध लड़े जिनमे एक में भी उनकी हार नही हुई, लेकिन आखिर में धोखे से उन्हें पकड़ कर मुग़लो द्वारा कैद कर लिया गया। औरँगजेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिये अनेको भयंकर अमानवीय यातनाए दी। उनकी जुबान काट ली गई और आँखे निकाल ली, लेकिन उन्होंने सनातन हिन्दू धर्म छोड़कर इस्लाम स्वीकार नही किया। क्रोधित औरंगजेब ने अपने सामने ही इंसानों की खाल उतारने में प्रवीण जल्लादों को बुलाया और सम्भाजी की नख से शिख तक खाल उतरवा दी। उस दृश्य को देखने वाले प्रत्यक्षदर्शी मुगल सरदारों के हवाले से इतिहासकारों ने लिखा है कि खाल उतर जाने के बाद औरंगजेब ने उन्हें आसान मौत देने का प्रस्ताव यह कहते हुए दिया कि वह इस हालत में इस्लाम कबूल कर लें तो उन्हें आसान मौत दे दी जाएगी, लेकिन सम्भाजी ने फिर एक बार उसे ठुकरा दिया।
इसके बाद उनके खाल उतरे शरीर को रोजाना सुबह नीबूरस में नमक और मिर्च मिलाकर नहलाया जाता था। सम्भाजी की पीड़ा को शब्द देने वाले एक इतिहासकार के अनुसार पहले दो दिन सम्भाजी तथा कलश स्नान के वक्त खूब चीखते थे, लेकिन तीसरे दिन से उन्होंने पीड़ा पर काबू पा लिया। औरंगजेब को जब यह जानकारी मिली तो वह आगबबूला हो गया और उसने एक हाथ कटवा दिया, फिर भी सम्भाजी ने उफ नहीं की तो उनका पैर काट दिया गया, आखिरकार करीब पन्द्रह दिन तक नीबूरस में मिले नमक मिर्च के स्नान के बाद सम्भाजी ने 11 मार्च 1689 को कैद में ही दम तोड़ दिया।
मराठा इतिहासकारों के अलावा यूरोपियन इतिहासकार डेनिस किनकैड़ ने भी अपने लेखन में इस प्रकरण की पुष्टि की है। इतनी भयंकर यातनाओं के बावजूद अपने धर्म पर टिके रहने और इस्लाम के बदले मृत्यु का वरण करने के कारण उन्हें धर्मवीर भी कहा गया है। औरंगजेब को लगता था कि छत्रपति संभाजी के समाप्त होने के पश्चात् हिन्दू साम्राज्य भी समाप्त हो जायेगा या जब सम्भाजी मुसलमान हो जायेगा तो सारा का सारा हिन्दू मुसलमान हो जायेगा, लेकिन वह नहीं जनता था कि वह वीर पिता का धर्म वीर पुत्र विधर्मी होना स्वीकार न कर मौत को गले लगाएगा। वह नहीं जानता था कि सम्भाजी किस मिट्टी के बना हुए हैं।
सम्भाजी मुगलों के लिए रक्त बीज साबित हुये, सम्भाजी की मौत ने मराठों को जागृत कर दिया और सारे मराठा एक साथ आकर लड़ने लगे। यहीं से शुरू हुआ एक नया संघर्ष जिसमें इस जघन्य हत्याकांड का प्रतिशोध लेने के लिए हर मराठा सेनानी बन गया और अंत में मुग़ल साम्राज्य कि नींव हिल ही गयी और हिन्दुओं के एक शक्तिशाली साम्राज्य का उदय हुआ।
औरंगजेब दक्षिण क्षेत्र में मराठा हिंदवी स्वराज्य को खत्म करने आया था, लेकिन शिवाजी महाराज और शम्भाजी महाराज की रणनीति और बलिदान के कारण उसका ये सपना मिट्टी में मिल गया और उसको दक्षिण के क्षेत्र में ही दफन होना पड़ा।
आज का इतिहास सच में सिर्फ महाराष्ट्र में रहने वाले मराठो के बीच में ही सिमित रह गया, ऐसा मुझे इअलिये कहना पड़ा की मराठो को छोड़ कर बाकी लोगो ये भी नहीं मालूम की धर्मवीर छत्रपति संभाजी राजे कौन थे।
(धर्मवीर छत्रपति संभाजी राजे भोसले) या शम्भाजी (1657-1689) मराठा सम्राट और छत्रपति शिवाजी के उत्तराधिकारी। उस समय मराठाओं के सबसे प्रबल शत्रु मुगल बादशाह औरंगजेब बीजापुर और गोलकुण्डा का शासन हिन्दुस्तान से समाप्त करने में उनकी प्रमुख भूमिका रही।
सम्भाजी अपनी शौर्यता के लिये काफी प्रसिद्ध थे। सम्भाजी ने अपने कम समय के शासन काल मे 140 युद्ध किये और इसमे एक प्रमुख बात ये थी कि उनकी सेना एक भी युद्ध मे पराभूत नहीं हुई। इस तरह का पराक्रम करने वाले वह शायद एकमात्र योद्धा होंगे। उनके पराक्रम की वजह से परेशान हो कर दिल्ली के बादशाह औरंगजेब ने कसम खायी थी के जब तक छत्रपती संभाजी पकडे नहीं जायेंगे, वो अपना किमोंश सर पर नहीं चढ़ाएगा।
इनको मुसलमान बनाने के लिए औरंगजेब ने कई कोशिशें की। किन्तु धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज और कवि कलश ने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया। औरंगजेब ने दोनों की जुबान कटवा दी, आँखें निकाल दी किन्तु शेर छत्रपति शिवाजी महाराज के इस सुपुत्र ने अंत तक धर्म का साथ नहीं छोड़ा। उस समय 11 मार्च 1689 को हिन्दू नववर्ष का दिन था जब औरंगजेब ने दोनों के शरीर के टुकडे कर के हत्या कर दी। किन्तु ऐसा कहते है की हत्या पूर्व औरंगजेब ने छत्रपति संभाजी महाराज से कहा के मेरे 4 पुत्रों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता तो सारा हिन्दुस्थान कब का मुग़ल सल्तनत में समाया होता। जब छत्रपति संभाजी महाराज के टुकडे तुलापुर की नदी में फेंकें गए तो उस किनारे रहने वाले लोगों ने वो इकठ्ठा कर के सिला के जोड़ दिए (इन लोगों को आज ” शिवले ” इस नाम से जाना जाता है) जिस के उपरांत उनका विधिपूर्वक अंत्यसंस्कार किया। औरंगजेब ने सोचा था की मराठी साम्राज्य छत्रपति संभाजी महाराज के मृत्यु पश्चात ख़त्म हो जाएगा। छत्रपति संभाजी महाराज के हत्या की वजह से सारे मराठा एक साथ आकर लड़ने लगे। अत: औरंगजेब को दक्खन में ही प्राणत्याग करना पड़ा। उसका दक्खन जीतने का सपना इसी भूमि में दफन हो देश धरम पर मिटने वाला।
शेर शिवा का छावा था ।।
महापराक्रमी परम प्रतापी। एक ही शंभू राजा था ।।
तेज:पुंज तेजस्वी आँखें। निकलगयीं पर झुकी नहीं ।।
दृष्टि गयी पर राष्ट्रोन्नति का। दिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं ।।
दोनो पैर कटे शंभू के। ध्येय मार्ग से हटा नहीं ।।
हाथ कटे तो क्या हुआ?। सत्कर्म कभी छुटा नहीं ।।
जिव्हा कटी, खून
शिवाजी का बेटा था वह। गलत राह पर चला नहीं ।।
वर्ष तीन सौ बीत गये अब। शंभू के बलिदान को ।।
कौन जीता, कौन हारा। पूछ लो संसार को ।।
कोटि कोटि कंठो में तेरा। आज जयजयकार है ।।
अमर शंभू तू अमर हो गया। तेरी जयजयकार है ।।
मातृभूमि के चरण कमलपर। जीवन पुष्प चढाया था ।।
है दुजा दुनिया में कोई। जैसा शंभू राजा था।।
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