सागर,18 दिसंबर(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। काग्रेस हमेशा से ओबीसी विरोधी रही है। 17 दिसम्बर को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पंचायत में ओबीसी आरक्षण पर कांग्रेस ने रोक लगवाई है। काग्रेस की मानसिकता ही पिछड़े वर्गों का विरोध करने की रही है।सर्वोच्च न्यायालय में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा द्वारा मध्यप्रदेश सरकार के पंचायतों में दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण के निर्णय का विरोध किया गया।
श्री विवेक तन्खा ने अपने राजनैतिक एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए और भाजपा द्वारा मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़े वर्ग के लाभार्थियों को उनका उचित अनुपात में लाभ मिल सके इस हेतु लागू अध्यादेश वर्ष-2021 की धारा 9-अ को लागू किए जाने का तीव्र विरोध किया और इसे संविधान के अनुच्छेद 243 (सी) एवं (डी) का उल्लंघन बताते हुए इस संशोधन को निरस्त करने की मांग की।
जहां एक ओर कांग्रेस यह बतलाने की पुरजोर कोशिश करती रही है कि, वे ओबीसी के पक्षधर हैं। वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार के द्वारा बहुसंख्यक ओबीसी वर्ग को उचित अधिकार और लाभ पहुंचाने के संवैधानिक एवं विधिक प्रावधानों का लगातार विरोध माननीय उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय में कर रही है। जो उनके दोहरे मापदंड का परिचायक है और इससे यह स्पष्ट होता है कि वास्तव में कांग्रेस की मानसिकता ओबीसी विरोध की है।
इसी तरह से पूर्व में भी शासकीय नौकरियों में ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा दिया गया था, उसका भी कांग्रेस ने विरोध किया था तथा हाईकोर्ट में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने ठीक से पक्ष नहीं रखा इस कारण से शासकीय नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण में हाईकोर्ट ने रोक लगाई थी। इसके पश्चात मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने मजबूती से हाईकोर्ट में अपना पक्ष रखा, उसी आधार पर तीन परीक्षाओं को छोड़कर शेष में 27 प्रतिशत आरक्षण शासकीय नौकरियों में दिया गया। मध्यप्रदेश सरकार ने संवैधानिक अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग गठित किया है। जो प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग के आर्थिक सामाजिक जनसंख्यात्मक विषयों पर अपना विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।
अभी सुपीम कोर्ट ने जो रोक लगाई है उसे लेकर ओबीसी के सभी संगठनों के साथ 19 दिसम्बर रविवार दोपहर 12 बजे भोपाल स्थित हमारे निवास पर एक बैठक आयोजित की जा रही है, जिसमें आगे की रणनीति पर चर्चा की जाएगी।
त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ओबीसी के आरक्षण पर अडंगा लगाए जाने की एकमात्र दोषी कांग्रेस है ,यह ताजा घटनाक्रम से सिद्ध हो चुका है। कांग्रेस ने जिसतरह साथ कुछ लोगों के माध्यम से याचिकाएं लगवा कर और अपनी पार्टी के ही नेताओं को वकील के रूप में खड़ा कर के ओबीसी आरक्षण स्थगित कराया है उससे कांग्रेस का ओबीसी वर्ग के खिलाफ काम करनेवाले वाला असली चेहरा बेनकाब हो गया है।
शिवराज सरकार ने बड़े ही पवित्र भाव साथ से ओबीसी वर्ग की पुरानी मांग को पूरा करते हुए 27 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया था। कांग्रेस ने इस आरक्षण के निर्णय को न्यायालयीन प्रक्रिया में उलझा कर पिछड़ा वर्ग के प्रति अपनी दुर्भावना को स्पष्ट कर दिया है।
मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ावर्ग की जनसंख्या 50 प्रतिशत से अधिक। ये सभी समाज में पिछड़े और गरीब लोग हैं। जिन्हें भाजपा सरकार ने संकल्पित होकर अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया है।
हमारी विकास, सामाजिक न्याय व समरस समाज बनाने की जो संकल्पना है कि हम सभी वर्गों का विकास चाहते हैं। इसमें अनुसूचित जाति ,अनुसूचित जनजाति या ओबीसी हो और आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ वर्ग हो सभी को संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत न्याय देकर आगे बढ़ाने का काम हमारी सरकार ने किया है यही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्रमोदी जी का सबका साथ, सबका विकास का नारा है।
ओबीसी समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए देश के प्रधानमंत्री आदरणीय नरेन्द्र मोदी जी की प्रतिबद्धता सारे देश के सामने स्पष्ट है। माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने इस दिशा में कई ऐतिहासिक कदम उठाए हैं। पिछले दिनों ओबीसी के कल्याण के लिए जो निर्णय लिए गए, उसके कारण से ओबीसी के समुदाय में एक विश्वास का भाव जागृत हुआ है। ओबीसी की केन्द्रीय सूची का दर्जा बढ़ा कर सूची को संवैधानिक दर्जा देने का काम आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की सरकार के द्वारा किया गया। इस ओबीसी की केन्द्रीय सूची में परिवर्तन करने के लिए संसद को शक्ति प्रदान की गई। संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (एनसीबीसी) को संवैधानिक दर्जा दिया।
अभी पिछले दिनों जो निर्णय हुआ, उसमें मेडिकल काॅलेजों, डेंटल काॅलेजों के अखिल भारतीय कोटे में ओ.बी.सी. के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया गया। इससे प्रत्येक वर्ष मेडिकल काॅलेजों में ओबीसी के छात्रों को लगभग चार हजार अतिरिक्त सीटें उपलब्ध होंगी।
संविधान में पिछडे़ वर्ग के आरक्षण की व्यवस्था तो संविधान के निर्माताओं ने की थी। कांग्रेस पार्टी वर्ष 1950 में शासन में आई थी, लेकिन पिछड़े वर्ग के लिए वर्ष 1950 में संविधान आने के बाद काका कालेलकर कमीशन बना। कांग्रेस ने 40 साल तक शासन किया, लेकिन काका कालेलकर कमीशन को न्याय नहीं दिया, पिछड़ों को न्याय नहीं दिया।
जनता पार्टी का शासन आया था, तब मंडल आयोग बना था। मंडल आयोग ने भी वर्ष 1980 में अपनी रिपोर्ट को फाइल किया था। उसके बाद भी कांग्रेस ने छह साल तक शासन चलाया, लेकिन पिछड़े वर्ग को आरक्षण कांग्रेस ने नहीं दिया।
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