मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने जनता से जुड़ी योजनाओं में कटौती करके बाजार में सूनापन ला दिया है। बजट की तैयारी में जुटे वित्तमंत्री तरुण भनोट भी कह रहे हैं कि केन्द्र की भाजपा सरकार ने फरवरी 2019 में जारी बजट अनुमान में मध्यप्रदेश को 63,750.81 करोड़ राशि आवंटित की थी। वर्ष 2020 के फरवरी माह के पुनरीक्षित अनुमान में यह राशि घटाकर 49,517.61 करोड़ कर दी गई। जोकि 14,233 करोड़ रुपए कम है।देश भर में कांग्रेस से जुड़े औद्योगिक घराने हों या व्यापारिक प्रतिष्ठान सभी बेरोजगारी के आंकड़े बढ़ाने का अभियान चलाए हुए हैं। वे ये जताने की कोशिश कर रहे हैं कि मोदी सरकार ने समानांतर अर्थव्यवस्था को खत्म करने का जो अभियान नोटबंदी से चलाया था वह असफल हो गया है। इसकी वजह से कंपनियां बंद हो रहीं हैं और रोजगार के साधन छिन गए हैं। राज्यों से मिलने वाली राशि का हिस्सा केन्द्र ने घटा दिया है जिससे राज्यों में वित्तीय संकट आ गया है। इस जैसी कई कहानियों से कमलनाथ सरकार अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही है। जनता को बरगलाने वाले उनके धूर्त पहरुए भी यही डमरू बजा रहे हैं। हकीकत इससे बिल्कुल विपरीत है।
हाल ही में पूर्व केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा राजधानी आए और उन्होंने केंद्रीय बजट में मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी कम किए जाने के आरोप का जवाब देते हुए कहा कि मुख्यमंत्री कमल नाथ का कटौती वाला बयान पूरी तरह राजनीतिक है।वास्तव में राज्य सरकार केंद्र की योजनाओं के पैसे का न तो उपयोग कर रही है, न ही उपयोगिता प्रमाणपत्र दे रही है. केंद्र की कोई भी योजना हो, उसका पैसा इसलिए उपलब्ध है क्योंकि केन्द्र ने उनके लिए स्पष्ट प्रावधान किए हैं,जबकि राज्य की सरकार योजनाओं का काम ही आगे नहीं बढ़ा रही है.”
जयंत सिन्हा ने कहा कि केंद्र सरकार हर कदम पर मध्यप्रदेश के लोगों के साथ खड़ी है और मौजूदा बजट में भी प्रदेश के किसानों के लिए, सिंचाई सुविधाओं के लिए, नेशनल हाइवे और एयरपोर्ट के विकास के लिए कई प्रावधान किए गए हैं।उन्होंने केंद्रीय बजट की प्रशंसा करते हुए कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने जो बजट प्रस्तुत किया , उसमें देश के, समाज के हर वर्ग को लाभ मिल रहा है, इसलिए यह जन-जन का बजट है. समाज के गरीब तबके को पक्का घर देने के बाद केंद्र सरकार ने अब हर नल में जल पहुंचाने की व्यवस्था की है, तो गृहिणियों को महंगाई से राहत देने, कुकिंग गैस उपलब्ध कराने और उनके खाते खोलने की व्यवस्था की गई है. उद्योगपतियों को कार्पोरेट टैक्स का फायदा है, तो मध्यम वर्ग को आयकर में राहत मिली है. युवाओं के लिए स्वरोजगार और स्किल डेवलपमेंट के प्रावधान हैं, तो इस बजट के माध्यम से निवेशकों की भी मदद की गई है.
सिन्हा ने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी ने देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य तय किया है और हम उसी तरफ बढ़ रहे हैं. केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट इसी लक्ष्य को हासिल करने का पॉलिसी रोडमैप है.”उन्होंने कहा कि बजट 2020-21 में उपभोग, निवेश और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन दिया गया है. इसका लाभ तो सभी को मिलेगा ही, यह अर्थव्यवस्था के विकास और विस्तार को भी गति देगा. सरकार ने अर्थव्यवस्था के विकास को गति देने के लिए बजट में जो प्रावधान किए हैं, उससे विकास दर तेजी से बढ़ेगी और जल्द ही उसके 7.5 प्रतिशत पर पहुंच जाने की आशा है. केंद्र सरकार ने राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने के सफल उपाय किए हैं।
दरअसल कांग्रेस की कमलनाथ सरकार पुरानी दो खातों वाली अर्थव्यवस्था को मजबूत बना रही है जिससे काला धन बनाया जाता रहा है। देश के सार्वजनिक बैंकों की 85 फीसदी से अधिक पूंजी चंद औद्योगिक घरानों के हाथों में थमाकर जो फर्जी विकास के प्रतिष्ठान खड़े किए गए थे उन पर एनपीए की राशि वसूली के अभियान और सरफेसी एक्ट के चलते तालेबंदी होने लगी है। इसके विपरीत रोजगार बढ़ाने के लिए जो राशि सीधे नव उद्यमियों को आबंटित की जा रही है उससे देश भारी पूंजीकरण हुआ है। कुप्रचार में भले ही बार बार बेरोजगारी की बात कही जा रही हो लेकिन हकीकत में जो राशि बाजार में पहुंची है उसने न केवल रोजगार के अवसर बढ़ाए हैं बल्कि उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता भी बढ़ाई है। बैंकों के खजाने भर गए हैं और वे सस्ती दरों पर कर्ज देने के लिए उद्यमियों के चक्कर काट रहे हैं। जाहिर है कि नए स्टार्टअप कारोबार बढ़ाने में सहयोगी साबित हो रहे हैं।
वित्त मंत्री तरुण भनोत का कहना है कि केन्द्रीय योजनाओं में राज्यों की हिस्सेदारी यूपीए सरकार के समय 25 प्रतिशत थी जिसे वर्तमान एनडीए सरकार ने बढ़ाकर 40 और कुछ योजनाओं में 50 प्रतिशत तक कर दिया था। इस प्रकार राज्य के अंशदान में 60 से 100 प्रतिशत तक की वृद्धि की गई है। ये सब कहते हुए वे केन्द्र पर ज्यादा पूंजी जुटाने का आरोप लगा रहे हैं। हकीकत ये है कि केन्द्र की योजनाओं का लाभ मध्यप्रदेश समेत देश के तमाम राज्यों को मिल रहा है। पूंजी के बढ़े उत्पादन का लाभ भी सीधे राज्यों को ही तो मिल रहा है।
पूंजी के बढ़ते संसाधनों के बावजूद उद्योगपति कहे जाने वाले कमलनाथ और रेत के कारोबारों में भागीदारी करने वाले वित्तमंत्री तरुण भनोत जनता को तरसाकर वित्तीय संकट का रोना रो रहे हैं। वे ये समझने भी तैयार नहीं हैं कि उनके घटिया वित्तीय प्रबंधन से प्रदेश की तो विकास दर प्रभावित हो ही रही है साथ में देश की विकास दर भी अपेक्षाकृत तौर पर गति नहीं पकड़ पा रही है। कल्याणकारी योजनाओं में सीधी कटौती करके कमलनाथ सरकार जो तीन हजार करोड़ रुपए बचाने का दावा कर रही है उससे अधिक राशि वह उन फर्जी योजनाओं पर खर्च कर चुकी है जिनसे भारी तादाद में काला धन बन रहा है। इस काले धन के निवेश से चंद औद्योगिक घरानों को बुलाकर कमलनाथ ये जताने का प्रयास कर रहे हैं कि देश का उद्योग जगत उनके इशारे पर चलता है। हालांकि ये उद्योग वे ही हैं जो भारी तादाद में रोजगार छीनने के लिए जाने जाते रहे हैं। आईटीसी ने जिस अगरबत्ती और बीड़ी उद्योग पर कब्जा जमाकर करोड़ों मजदूरों का रोजगार छीना है उसे रोजगार प्रदाता बताने की कोशिश से कमलनाथ की नीतियों की पोल सरे बाजार खुल रही है।
भारतीय जनता पार्टी के राज्यस्तरीय तमाम नेता पिछले पंद्रह सालों से कांग्रेस की उसी सरकारीकरण और चोर बाजार वाली अर्थव्यवस्था की पैरवी करते रहे हैं जिसकी वजह से भारतीय रुपए की साख नहीं बढ़ सकी थी। आज वे भारत सरकार की श्वेत इकानामी का रहस्य भी नहीं समझ पा रहे हैं। यही वजह है कि भाजपा के नेता कमलनाथ सरकार की नीतियों का खुला विरोध नहीं कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की वजह से भाजपा ने कई राज्यों की सत्ताएं गंवा दी हैं। जबकि हकीकत में उनकी नासमझी भरी पिछलग्गू नीतियों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था तेजी नहीं पकड़ सकी थी। पूर्व प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह जिस इंस्पेक्टर राज के कभी न लौटने की बात कहते थे उनकी ही पार्टी की कमलनाथ सरकार आज इंस्पेक्टर राज की सहायता से भारी तादाद में काला धन जुटा रही है। तबादलों और पोस्टिंग से मौजूदा सरकार ने जितना काला धन जुटाया है वही अपने आप में एक रिकार्ड है। इसके बावजूद ये काला धन स्थानीय उद्योग और रोजगार बढ़ाने में उपयोगी साबित नहीं हो पा रहा है। आज देश में जो वित्तीय टूल विकसित हो गए हैं उनकी वजह से काले कारोबारियों की धरपकड़ सरल हो गई है। ये बात जरूर है कि अमले की कमी की वजह से सभी पर कार्रवाई नहीं हो पा रही है लेकिन ये भी तय है कि आज नहीं तो कल वे जरूर धरे जाएंगे तब उन्हें कमलनाथ के छिंदवाड़ा माडल के छेद स्पष्ट नजर आने लगेंगे। जीएसटी और आयकर विभाग की क्षमता यदि नहीं बढ़ाई गई तो आर्थिक संकट का रोना रोते कांग्रेसी नेतागण देश को रूस जैसे पतन की राह पर ढकेलते रहेंगे।
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