कमलनाथ सरकार को सबसे बड़ा खतरा महसूस हो रहे कैलाश विजयवर्गीय को जल्दी ही धारा 144 का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया जा सकता है। उनके साथ इंदौर कमिश्नर के आवास के बाहर धरना देने वाले इंदौर से बीजेपी सांसद शंकर लालवानी, बीजेपी विधायक रमेश मेंदोला, महेंद्र हार्डिया और जिला अध्यक्ष गोपीकृष्ण नेमा के खिलाफ भी धारा 144 उल्लंघन करने की FIR दर्ज की गई है। इस दौरान कैलाश विजयवर्गीय ने बयान दिया था कि हम कमिश्नर से मिलने आए हैं इसके बाद भी अधिकारियों ने प्रोटोकाल का पालन नहीं किया और हमें सूचना नहीं दी कि कमिश्नर शहर में नहीं हैं। उन्होंने कहा कि हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। साथ में उन्होंने पुछल्ला लगा दिया कि आज शहर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नेतागण मौजूद हैं नहीं तो मैं शहर में आग लगा देता। कैलाश के इस बयान से सत्तारूढ़ कांग्रेस बौखला गई। कैबिनेट की बैठक में विकास योजनाओं को छोड़कर चर्चा का सबसे बड़ा मुद्दा कैलाश विजयवर्गीय का ये बयान ही बन गया। सज्जन सिंह वर्मा, जीतू पटवारी और स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने प्रेसवार्ता में ही कैलाश के बयान को निशाना बना दिया। सज्जन सिंह वर्मा बोले कि कैलाश विजयवर्गीय जैसी भाषा बोल रहे हैं वह इंदौर के लोग पसंद नहीं करते। इंदौर विकास प्रेमियों का शहर है और वहां इस तरह की भाषा नहीं चल सकती। दरअसल कैलाश विजयवर्गीय को कमलनाथ सरकार सबसे बड़ा खतरा महसूस करती है। पश्चिम बंगाल के प्रभारी होने के कारण कैलाश विजयवर्गीय राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। ममता बैनर्जी के गुंडों से लड़ते हुए कैलाश ने पश्चिम बंगाल में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। वहां कांग्रेस का मुकाबला ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से तो है ही साथ में भाजपा से भी है। जिस तरह महाराष्ट्र में कांग्रेस ने शरद पंवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से तालमेल बिठाकर सत्ता पाई है उसी तरह वह बंगाल में भी ममता बैनर्जी के सामने झुकने तैयार है। इसलिए कांग्रेस का हाईकमान नहीं चाहता कि वह बंगाल में भी कैलाश की भाजपा को सफलता के झंडे गाड़ने की छूट दे दे। यही वजह है कि मध्यप्रदेश में वह कैलाश को घेरकर भाजपा के सफल हथियार को भौंथरा करना चाहती है। धारा 144 के उल्लंघन जैसे छोटे से मुद्दे को उठाकर वह कैलाश को घुटना टेक कराना चाहती है। कांग्रेस की इस रणनीति का दूसरा असर यह भी हो रहा है कि कैलाश मध्यप्रदेश भाजपा का चेहरा भी बनते जा रहे हैं। हाईकमान से करीबी होने के नाते भाजपा संगठन का भी एक बड़ा धड़ा कैलाश से जुड़ता जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार जाने अनजाने में कैलाश पर प्रहार करके भाजपा को उसका सर्वमान्य नेता दिए दे रही है। कांग्रेस का दिग्विजय सिंह गुट भी कैलाश से करीबी महसूस करता है। ऐसे में कमलनाथ सरकार अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा कार्य कर रही है। जब प्रदेश में कमलनाथ सरकार के प्रति बैचेनी बढ़ रही है तब उसे विकासात्मक कार्यों पर जोर देना चाहिए। इसके विपरीत वह तोड़फोड़ की राजनीति में ही उलझी बैठी है। कमलनाथ सरकार की यह रणनीति आने वाले समय में प्रदेश की राजनीतिक स्थितियों में बड़ा बदलाव लाने वाली साबित हो सकती है।
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