कांग्रेस वाकई रसातल की ओर जा रही है। लहरों की सवारी करने वाली उसकी राजनीति अब दलदल में गोता लगा रही है। जबकि उसकी सबसे बड़ी राजनीतिक प्रतिद्वंदी भारतीय जनता पार्टी निरंतर अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत बनाती जा रही है। निठल्ले बैठकर हर हलचल को गाली और बददुआ देने वालों के सुर में सुर मिलाकर कांग्रेसी एक बार फिर मध्यप्रदेश के विपक्ष में बैठने की तैयारी कर रहे हैं। जिस तरह कांग्रेस के शोरगुल के बीच मध्यप्रदेश का अनुपूरक बजट बगैर चर्चा कराए पास हो गया उससे सत्ता पक्ष का नहीं बल्कि कांग्रेस का नुक्सान ज्यादा हुआ है। सत्ता पक्ष को तो जनता के अपने हित के काम करने का जनादेश दिया था। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकारें पिछले साढ़े चौदह सालों से जनसुविधाओं की डिलीवरी कर रहीं हैं। आने वाले चुनावों से पहले सरकार ने कल्याणकारी योजनाओं की पूरी फेरहिस्त तैयार की है। वह उस दिशा में अपना काम किए जा रही है। नाकारा और गैरजिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस ने अपने ही दंभ के जाल में उलझकर वो मौका गंवा दिया जिसके माध्यम से वो सरकारी योजनाओं में कथित सुधार कराने का श्रेय लूट सकती थी। भाजपा की उमाभारती सरकार ने दिसंबर2003 में जब सत्ता संभाली थी तब मध्यप्रदेश का बजट मात्र तेईस हजार करोड़ हुआ करता था। आज वो दो लाख करोड़ पार कर चुका है। पंद्रह सालों में दस गुना बढ़ा बजट प्रदेश की बेहतर होती अर्थव्यवस्था का उद्घोष कर रहा है। लगातार बढ़ती अर्थव्यवस्था ने आम उद्यमियों के दिल में अपेक्षाओं का ज्वार पैदा कर दिया है। भाजपा सरकार उस ज्वार पर सवार होकर अपने नीति निर्धारकों के उस सूत्र वाक्य को साकार करने आगे बढ़ रही है कि तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें। इस घोषित वाक्य के सामने खड़ी होकर कांग्रेस और उसके नेतागण आरोप प्रत्यारोप की राजनीति कर रहे हैं। विधानसभा में प्रस्तुत अनुपूरक मांगें बगैर चर्चा पारित हो गईं इसे कांग्रेस इतिहास का काला दिन बता रही है। जबकि ये घटना कांग्रेस के लिए काला दिन साबित होने जा रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी मंत्री रामपाल सिंह ने अपनी बहू प्रीति की कथित आत्महत्या पर सच स्वीकार करने में भले देरी की हो। उनकी पारिवारिक वजहें जो भी रहीं हों। बेटे गिरिजेश की मनोदशा ने उन्हें तथ्यों से अनभिज्ञ भले ही रखा हो लेकिन देर से ही सही उन्होंने प्रीति को अपनी बहू स्वीकार तो कर ही लिया था। ये इतना लोक महत्व का मुद्दा भी नहीं था जिसके कारण कांग्रेस ने प्रदेश के सात करोड़ लोगों के भविष्य को ठेंगा दिखा दिया। जबकि ये सर्वविदित तथ्य है कि प्रीति ने अपने कथित पत्र में गिरिजेश या मंत्रीजी के नाम तक का उल्लेख नहीं किया था। इसके बावजूद महिला वोट अर्जित करने के लिए कांग्रेस ने इस लिजलिजे मुद्दे को ही अपने माथे पर सजा लिया। कांग्रेस के नेता भूल गए कि प्रदेश की महिलाएं अपनी विकास यात्रा भाजपा के साथ बेहतर तरीके से कर रहीं हैं।रही सही कसर उसने विधानसभा अध्यक्ष डाक्टर सीतासरन शर्मा के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लाकर पूरी कर दी। प्रदेश की आम जनता को जीवन के हर जरूरी मुद्दे पर तरसाने वाली दिग्विजयसिंह सरकार की तुलना में शिवराज सरकार महिलाओं के करीब ज्यादा रही है। उनका बेटी बचाओ नारा हो या बच्चों के मामा के रूप में जनकल्याण की योजनाएं चलाना सभी प्रदेश के आम मतदाता के दिलों को छूते रहे हैं। न केवल विधानसभा में बल्कि दूसरे दिन सड़कों पर भी कांग्रेस प्रीति की मौत को भुनाने की असफल कोशिश करती रही। गलती एक बार हो जाए तो उसे सुधारा भी जा सकता है पर कांग्रेस के नेतागण अपनी निरंतर गलतियों से कोई सबक लेने तैयार नहीं हैं। वोटरों को बहकाने के उसके षड़यंत्र कई बार केवल इसलिए सफल होते नजर आते हैं क्योंकि लोगों की अपेक्षाएं बढ़ गईं हैं। सरकारी कर्मचारियों को इस सरकार ने जितनी अधिक वेतनमान दिया है उतना आजादी के बाद कभी नहीं मिला इसके बावजूद सरकारी अधिकारी कर्मचारी ज्यादा वेतन भत्तों की मांग कर रहे हैं। वे ये समझने भी तैयार नहीं कि जिन लोगों के घरों में सरकारी वेतन नहीं आता है वे पूंजी के उत्पादन के लिए कैसे पसीना बहा रहे हैं। दरअसल में भाजपा की शिवराज सिंह सरकार की ज्यादातर नीतियां पिछली सरकारों की असफल नीतियों में फेरबदल करके उन पर अमल करने की रहीं हैं। इसलिए आम नागरिकों को ज्यादा फर्क नजर नहीं आ रहा है। जबकि आंकड़ों की बिसात पर देखें तो उपलब्धियों का मंच अतिविशाल नजर आता है।
कांग्रेस के बतोलेबाज नेताओं से जब पूछा जाता है कि यदि मान लें कि भाजपा सरकार असफल रही है तो आप प्रदेश के विकास का क्या ब्लूप्रिंट सोचते हैं। इस पर वे अपनी वही सड़ी गली सबसिडी वाली नीतियों की दुहाई देने जुट जाते हैं जो वैश्विक अर्थपटल पर अप्रासंगिक हो चलीं हैं। वे श्रमिकों को लुभाने वाली वही भाषा बोलते हैं जो कभी साम्यवादी अर्थव्यवस्था वाले देशों से आयातित की गईं थीं। बरसों तक कांग्रेस उन्हीं साम्यवादी परिभाषाओं को गांधीवादी समाजवाद की चासनी में लपेटकर जनता को चुसाती रही है। उनसे जनता का भला न होना था न हुआ। फूट डालो और राज करो की नीति को धर्मनिरपेक्षता के धारदार चाकू से छीलकर पेश करती रही पर सोशल मीडिया की आंधी ने उसकी भी कलई उतारकर रख दी। अब कांग्रेस के नेताओं को समझ नहीं आ रहा है कि वे आगामी चुनावों में जनता को क्या कहानियां सुनाएंगे। इसलिए उसके नेता झूठे जुमलों को उछालकर भ्रम फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। भारत का इतिहास गवाह है कि यहां प्याज की मंहगाई भी सरकारें बना बिगाड़ देती रही हैं। इसके बावजूद समय जितनी तेजी से बदला है उसके चलते अब झूठे मुद्दों की कलई खोलना बड़ा सरल हो गया है। चंद मिनिटों में ऐसे गुब्बारों की हवा देश भर में निकाली जा सकती है जो केवल जनता को बरगलाने के लिए फुलाए जाते हैं। आज जब कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व ने राजभवन के दरवाजे पर प्रीति सिंह रघुवंशी की मौत पर बासी कढ़ी में उबाल लाने की कोशिश की तब वह अपने सभी समर्थकों को भी नहीं जुटा पाई।जनता के पास ऐसे मुद्दों के लिए अब समय ही नहीं है। ऐसी कांग्रेस यदि बजट जैसे गूढ़ मुद्दे पर सरकार को लांछित करने का प्रयास करे तो भला उसकी आवाज को कौन सुनेगा। सरकार के संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने जिस तरह से आगे बढ़कर कांग्रेस के योद्धाओं को शस्त्र विहीन कर दिया वो संसदीय ज्ञान की परिपक्वता की मिसाल बन गया है। कांग्रेस के कुतर्कों को रौंदने का इससे अधिक सैलाबी जवाब दूसरा नहीं हो सकता था।
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