सफल संवाद के लिए विचार के नए मुखौटों को पहचानें



स्व.भुवन भूषण देवलिया स्मृति व्याख्यान 2018 के मंथन से निकला पत्रकारिता का ताजा फार्मूला
भोपाल,4 मार्च,(पीआईसीएमपीडॉटकॉम)।पत्रकारिता विचार यात्रा से बाजार यात्रा तक विषय पर आयोजित स्वर्गीय भुवन भूषण देवलिया स्मृति व्याख्यान 2018 में मीडिया के असमंजस पर कुछ नायाब फार्मूले सामने आए हैं। व्याख्यान माला में भाग लेने वाले विद्वानों और पत्रकारों का मानना है कि जबसे देश ने पूंजीवाद की राह पकड़ी है तबसे जनसंचार के साधन समाजोन्मुख रास्ता भूल चले हैं। समाज केन्द्रित पत्रकारिता के बगैर सफल संवाद संभव नहीं है इसलिए पत्रकारों को पूंजीवादी दौर में उभरे विचार के नए मुखौटों को पहचानना सीखना होगा। मीडिया संस्थानों की बुराई किए बगैर यदि हम मर्यादाओं का पालन करेंगे तो हमारा सफल संवाद समाज को भी स्वीकार्य होगा।
डॉ.सर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्राध्यापक स्वर्गीय भुवन भूषण देवलिया की स्मृति में ये लगातार छटवां सफल आयोजन था। इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश शासन के राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता, दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक प्रकाश दुबे, नईदिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार ने पत्रकारिता विचार यात्रा से बाजार यात्रा तक विषय पर आयोजित व्याख्यान में अपने अपने नजरिए से पत्रकारिता के संवाद को सार्थक बनाने के रास्ते सुझाए। अध्यक्षीय उद्बोधन में माधव राव सप्रे संग्रहालय के स्थापक पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर ने विषय का प्रवर्तन किया।

इस अवसर पर दैनिक भास्कर ग्वालियर के पत्रकार अनिल पटैरिया को उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए ग्यारह हजार रुपए के स्वर्गीय भुवन भूषण देवलिया स्मृति पत्रकारिता सम्मान से अलंकृत किया गया। उन्हें राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने शाल श्रीफल भेंटकर प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। आयोजकों ने सभी आमंत्रित वक्ताओं को स्मृति चिन्ह और तुलसी के पौधे देकर सम्मानित किया। मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण के साथ आयोजन का विधिवत शुभारंभ हुआ। अतिथियों ने स्वर्गीय भुवन भूषण देवलिया के चित्र पर माल्यार्पण भी किया। स्वागत भाषण वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया ने दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए समिति की ओर से जनसंपर्क अधिकारी अशोक मनवानी ने अतिथिओं और आगंतुकों के प्रति आभार प्रकट किया। आयोजन के उपरांत अनौपचारिक सत्र भी आयोजित किया गया जिसमें वक्ताओं ने श्रोताओं की जिज्ञासाओं का समाधान किया। सहभोज का आयोजन भी किया गया।

अध्यक्षीय उद्बोधन में पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर ने कहा कि आत्मआलोचना के नाम पर हम लोग आत्म निंदा में जुट जाते हैं। बाजार और पत्रकारिता के रिश्ते चिंताजनक नहीं हैं। पत्रकार यदि सूझबूझ से लिखेंगे तो उन्हें कभी मालिकों की ओर से तनाव नहीं झेलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि गायत्री परिवार के (हम सुधरेंगे जग सुधरेगा ) नीतिवाक्य की रोशनी में हमें आगे बढ़ते रहना होगा।

विषय का तकनीकी विश्लेषण करते हुए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार ने कहा कि सागर में पत्रकारिता के प्रशिक्षण के दौरान हम सभी सहपाठियों को स्व.देवलिया जी का स्नेह मिला। उनके ही मार्गदर्शन पर हमने दिल्ली में अपनी जमीन तलाशी। उन्होंने कहा कि आज के जनसंचार में भावनात्मक अपीलें की जाती हैं जिनमें नीतियां दफन हो जाती हैं। लोकतंत्र में चुनाव जीतना ही अंतिम लक्ष्य हो गया है। आज के राजनेताओं ने जनता के मुद्दों के समाधान खोजना बंद कर दिया है। जबसे बाजारवाद की स्वीकार्यता बढ़ी है और साम्यवाद का अंत हुआ है तबसे मीडिया प्रोपेगंडा करने लगा है। ये मॉडल सत्ताधीशों को भी मुफीद पड़ता है और धनपशुओं के लिए भी भरपूर नतीजे लाने वाला है। यही वजह है कि आज बाजार स्वयं एक विचार बन गया है। उसने कई पुराने विचारों की जगह ले ली है। मीडिया में विचारों का यही फंडामेंटलिज्म(कट्टरपंथ) हावी हो गया है। इसलिए जो लोग कहते हैं कि आज का मीडिया विचार हीन हो गया है मैं उसका खंडन करता हूं। आज तो फेसबुक और गूगल जैसे सोशल मीडिया भी बाजार को नियंत्रित कर रहे हैं। दरअसल मीडिया ने अपने मुखौटे बदल लिए हैं और इन बदले मुखौटे में छिपे मीडिया के नियंताओं की पहचान जरूरी हो गई है। इसे पहचाने बगैर हम मीडिया को जनता के करीब नहीं ले जा सकते।

दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक प्रकाश दुबे ने कहा कि स्वर्गीय देवलिया जी ने गुरु द्रोणाचार्य की तरह शिष्य तो बनाए पर उन्होंने कभी एकलव्य की तरह शिष्यों से उनका अंगूठा नहीं मांगा। उनके पास आसपास की घटनाओं की सटीक जानकारी होती थी। यूनीवार्ता के प्रतिनिधि रहते हुए उन्होंने समाज से गहरा नाता बना लिया था। उन्होंने कहा कि आज बाजार की ताकतें और सत्ता का दबाव बेशक मीडिया को नियंत्रित कर रहा है लेकिन ये समाचार संस्थान कभी नहीं चला सकते। यदि ऐसा होता तो देश पर एकछत्र राज्य करने वाली कांग्रेस और उसका गांधी परिवार नेशनल हेराल्ड समूह को भी चला सकती थी। उन्होंने कहा कि तमाम दावों के बावजूद प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया का दबदबा बढ़ता चला गया है।

श्री प्रकाश दुबे ने यूनियन कार्बाइड गैस कांड की घटना के माध्यम से बताया कि जब अमेरिकी राष्ट्रपति के दबाव मे देश की सत्ता ने अपने मुख्यमंत्री को बाकायदा फोन करके दबाव डाला था। राज्य सरकार ने इसके बाद अपने प्रिय अधिकारी के संरक्षण में यूका के अपराधी वारेन एंडरसन को देश से बाहर भेजने में बडी भूमिका निभाई थी,तब भी एक छोटे से अखबार के पत्रकार राजकुमार केसवानी ने अपने अखबार में खबर छापकर यूनियन कार्बाइड को झुकने पर मजबूर कर दिया था। विश्व जनमत के कारण आज तक यूनियन कार्बाइड उस मुकदमे को बंद नहीं करा सकी है। अखबार की ताकत अपार है इसलिए बाजार कितना भी आततायी क्यों न हो जाए हम उससे डरने वाले नहीं हैं।

मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित राजस्व मंत्री उमाशंकर गुप्ता ने कहा कि आज बाजार के साथ साथ विचार, सत्ताधीशों और धनपशुओं सभी की मर्यादाएं टूट रहीं हैं। बाजार के आशय अनेक स्थानों पर बदलते रहते हैं। इसलिए बाजार किसी विचार को दबा सके ये अब संभव नहीं है। सोशल मीडिया की ताकत आज इतनी बढ़ गई है कि समर्थक या विरोधी विचारों की अभिव्यक्ति किसी न किसी तरह हो ही जाती है। ये हमें तय करना है कि हम लोगों के विश्वास की रक्षा कैसे करें। हम मर्यादाओं का पालन करेंगे तो विचार की रक्षा भी होगी और पाठक तक उसकी यात्रा भी निर्बाध रूप से संभव हो सकेगी।

व्याख्यान माला के अंत में सर्वश्री शंभुदयाल गुरु, विनय द्विवेदी, आरएस अग्रवाल, अनिल सौमित्र, और कई अन्य आगंतुकों ने वक्ताओं से सवाल पूछे। समाधान करने की जवाबदारी मुकेश कुमार और प्रकाश दुबे दोनों ने संभाली। मुकेश कुमार ने कहा कि जिस तरह तेल, आटा, मिठाई में मिलावट हमें मंजूर नहीं। हम उसका विरोध करते हैं। उसी प्रकार हमें मीडिया में मिलावट का भी विरोध करना होगा। जो मीडिया लोकतंत्र के खिलाफ ही खडा़ हो जाए उसे हम गोदी मीडिया कहकर पीछे न लौट आएं उसे सुधारने के लिए भी आगे आएं।

प्रकाश दुबे ने कहा कि हम अपनी भूमिका उस मोची के समान मानते हैं जिसे फटा जूता ही नजर आता है। वह उसे सुधारने का जतन भी करता है। इसलिए हम अपनी भूमिका निभाते रहें तो विचार की यात्रा को सार्थक बना सकेंगे।

कार्यक्रम के आरंभ में स्वागत उद्बोधन में शिव अनुराग पटैरिया ने कहा कि स्वर्गीय देवलिया जी की उंगली पकड़कर हमने आदर्श पत्रकारिता शुरु की थी। आज यदि हम उन आदर्शों की बात करें तो बदले हालात में उन्हें अप्रासंगिक समझा जाएगा। आयोजन का ये अनुष्ठान हमने जबसे प्रारंभ किया है तबसे सभी मित्रों और सहयोगियों का योगदान हमें मिलता रहा है।

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