भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवादी सोच को लेकर सत्ता में पहुंची है। इसके बावजूद पार्टी के कई पुरातनपंथी आज भी राजनीति में धर्म की मिलावट करने से बाज नहीं आ रहे हैं। उन्हें लगता है कि यदि उन्होंने जनता को धर्म की अफीम नहीं चटाई तो शायद वह दुबारा कांग्रेस की ओर मुड़ जाए और भाजपा को फिर निर्वासन झेलना पड़े। शायद यही कारण है कि सत्ता के गलियारों में यदा कदा धार्मिकता का बुखार महामारी बनकर उभरता रहता है। इसका लाभ लेने के लिए तैयार अवसरवादी कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते और वे धर्म में आस्थाएं दर्शाकर खुद को सरकार का हनुमान बताने में जुट जाते हैं। कुछ इसी तरह की पहल भोपाल में लड़कियों के एक सरकारी स्कूल की प्रिंसिपल ने कर डाली। मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग की धींगामुश्ती के बीच भोपाल के इस सरकारी स्कूल में पोस्टिंग करवा लेने में सफल प्राचार्या निशा कामरानी को अपनी उपयोगिता सिद्ध करने की जल्दी पड़ी थी। सत्ताधारी दल के कतिपय बड़े नेताओं की कृपा से इस स्कूल में पदस्थ हुईं प्राचार्या ने अपनी स्वामिभक्ति दिखाने के चक्कर में सरकार की सोच की पोल खोल दी। उसने बालसभा कार्यक्रम के अंतर्गत मिट्टी के शिवलिंग बनाने की पूजा आयोजित कर डाली। बाकायदा पंडितजी बुलाए गए। हवन हुआ। लाऊडस्पीकर पर विधिविधान से हुई पूजा छह घंटे चली। इस दौरान छात्राएं और शिक्षिकाएं पूजा में शामिल हुईं। हालांकि स्कूल की मुस्लिम शिक्षिका और छात्राओं ने पूजा में शामिल होने से साफ इंकार कर दिया। इस पर उन्हें एक अलग कमरे में बिठा दिया गया।
पूजा संचालन का माईक प्राचार्या महोदया ने संभाल रखा था। उन्होंने लड़कियों से कहा कि यदि वे विधि विधान से शिवलिंग बनाएंगी तो परीक्षा में पास हो जाएंगी और उन्हें जल्दी नौकरी मिल जाएगी।लड़कियों से कहा गया कि वे आम की पत्तियों को अंगूठी मानकर अपनी उंगली में धारण कर लें। छात्राओं से सूत के कलावे का स्पर्श करवाकर कहा गया कि भगवान ने उनकी भेंट स्वीकार कर ली है। अब पूजा में शामिल सभी छात्राएं आसानी से पास हो जाएंगी।उन्हें सुंदर जीवन भी मिल जाएगा।इस पूजन कार्यक्रम के लिए लड़कियों से चंदा जुटाया गया था। एक शिक्षिका के रिटायरमेंट का आयोजन भी पूजा के बाद किया गया। जिसमें भोज का चंदा भी छात्राओं ने जुटाया था। इसके लिए शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों और भाजपा के स्थानीय नेताओं को भी आमंत्रित किया गया था। प्राचार्या महोदया ने बाकायदा अपने मोबाईल फोन से मैसेज भेजकर ये आमंत्रण वितरित किए थे। हालांकि कई अधिकारियों ने बहाने बनाकर आयोजन से बच निकलने की जुगत भी भिड़ा ली।
इस संबंध में जब प्राचार्या महोदया से पूछा गया कि हिंदू तुष्टिकरण करने वाले इस गैर संवैधानिक कार्य के लिए उन्होंने किससे अनुमति ली थी तो उन्होंने कहा कि मैंने तो सभी अधिकारियों और नेताओं को सूचित किया था। सभी ने सहमति जताई थी,लिखित अनुमति आने में समय लगता इसलिए मैंने शिक्षिकाओं के सहयोग से ये आयोजन कर लिया।हालांकि इस दौरान उन्होंने संवाददाता का मोबाईल कैमरा छीन लिया और कहा कि यदि उनकी ये बातें जनता के बीच आ जाएंगी तो दंगा हो जाएगा। स्वयं प्राचार्या निशा कामरानी ने कहा कि इस आयोजन से चमत्कार हुआ है और स्कूल में प्रेम का वातावरण निर्मित हो गया है। अब हम भविष्य में ईद मिलन समारोह भी आयोजित करेंगे। उनसे पूछा गया कि आप साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण फैलाकर आखिर छात्राओं को क्या शिक्षा देना चाहती हैं तो उन्होंने कहा कि हम तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान को बल देने के लिए उन्हें आध्यात्मिकता से जोड़ने का प्रयास कर रहे थे। इस दौरान लड़कियों ने जो शिवलिंग बनाए उनसे उनकी रचना धर्मिता सामने आई है।
प्राचार्या निशा कामरानी से जब पूछा गया कि आप इस पूजा को जिस तरह परीक्षा पास करने और नौकरी पा लेने का फार्मूला बता रहीं थीं वो कैसे संभव है। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि पूजा विधान की प्रक्रिया से लड़कियों को आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं से दूर रखने का प्रयास किया गया है। आजकल लड़कियां असफलताओं के कारण आत्महत्याएं कर रहीं हैं इसलिए उन्हें पूजा के माध्यम से खुद को भगवान के सुपुर्द करने की शिक्षा दी गई है। यदि वे अपने कर्म का श्रेय भगवान के सुपुर्द करना सीख जाएंगी तो उन्हें बेवजह असफलता का तनाव नहीं झेलना पड़ेगा।
भारतीय दर्शन में विद्या को मुक्तिदाता बताया गया है। संस्कृत में इसे …. या विद्या सा मुक्तये …..कहा गया है। बच्चों की तर्कशक्ति और सवाल पूछने की शक्ति को बढ़ाने के लिए ……..विज्ञान आओ करके सीखें ………के वाक्य तमाम स्कूलों में लगाए जाते हैं। प्रख्यात शिक्षाविद इवान इलिच ने तो शायद इसीलिए……. डी स्कूलिंग सोसायटी….. पुस्तक लिखकर ये जताने का प्रयास किया कि स्कूल विद्यार्थियों की मौलिकता को कुचल देते हैं इसलिए स्कूलों को भंग कर देना चाहिए। इसके बावजूद भोपाल के कमला नेहरू स्कूल में छात्राओं को …..जान लेने …..के बजाए …..मान लेने…. की शिक्षा दी जा रही है। ये बात तो इसलिए उजागर हो गई क्योंकि राजधानी में शिक्षा के कारोबार को जानने बूझने वाले लोग आसानी से उपलब्ध हैं। जाहिर है कि भक्तों की नाकारा फौज तैयार करने में जुटे प्रदेश के हजारों स्कूलों में क्या चल रहा है ये इस घटना से आसानी से समझा जा सकता है।
जब प्राचार्या से कहा गया कि आपने स्कूल में पूजा और शिवलिंग निर्माण का आयोजन करके गैर संवैधानिक अपराध कर डाला है। संविधान में धर्म निरपेक्षता का प्रावधान इस उद्देश्य से डाला गया है कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से धार्मिक मान्यताओं को मानने की तो आजादी है लेकिन सार्वजनिक तौर पर उन्हें सर्व धर्म समभाव रखना होगा। इसी कानूनी बाध्यता के कारण देश की सरकार सबका साथ सबका विकास का नारा लेकर चल रही है। इस पर प्राचार्या महोदया ने कहा कि कुछ लोग उनके खिलाफ षड़यंत्र कर रहे हैं। इसमें कुछ पत्रकार भी शामिल हैं । इनके बारे में वे सब जानती हैं और समय आने पर उनके नाम उजागर करेंगी।जब उनसे पूछा गया कि नाबालिग बच्चियों को वे संघर्ष के लिए तैयार करने के बजाए समर्पण की सीख क्यों दे रहीं हैं। तो उन्होंने कहा कि उन पर भगवान की विशेष कृपा है इसलिए वे विरोधियों के जाल से हमेशा बच जाती हैं।
प्राचार्या निशा कामरानी शासकीय नौकरी में आने के बाद से लगातार विवादों में घिरी रहीं हैं। सिक्किम के नवोदय विद्यालय जाने और वापस आने की कहानी भी उनकी जुगाड़ गाथा को समृद्ध बनाती है। माननीय उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस राजेन्द्र मेनन ने अपने फैसले में उन्हें अयोग्य पाया था। इसके बावजूद उन्होंने एक बार फिर राजधानी के प्रमुख स्कूल के प्राचार्य को धकियाकर ये कुर्सी कबाड़ ली। स्कूल शिक्षा विभाग के लगभग बीस अधिकारियों कर्मचारियों के विरुद्ध वे शिकायतें कर चुकीं हैं। एक शिकायत को तो पुलिस ने प्राथमिक जांच के बाद न केवल नस्तीबद्ध किया बल्कि निशा कामरानी को फटकार भी लगाई कि वे शिकायतें करने से पहले अपने गिरेबान में झांककर जरूर देखें।
बालीवुड की चर्चित फिल्म है ….चांदनी चौक टू चायना… इस फिल्म का हीरो सिद्धू (अक्षय कुमार) आलू को अपना भगवान मानकर उसकी पूजा करता है। जब कुछ चीनी गुंडे उसे पीटते हैं तो वह अपने उस आलू भगवान से विनती करता है कि वो उसे गुंडों से बचाए। तब भगवान तो प्रकट नहीं होते बल्कि एक चीनी नागरिक जो निर्वासन भोग रहा था वो आकर उसे बचाता है। इसके बाद वह हीरो को युद्धकला में इतना पारंगत बना देता है कि हीरो सिद्धू उस चीनी माफिया का नाश कर देता है।
आज जब एक बार फिर चीनी सेनाएं सीमा पर खड़ीं हमें युद्ध के लिए ललकार रहीं हैं तब मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार के स्कूल अपने विद्यार्थियों को ईश्वरवादी बनाकर चुनौतियों से भागना सिखा रहे हैं। हथियार डाल देने वाली ये सोच भला चीनी सेनाओं का मुकाबला कैसे कर पाएगी। सरकार की इस सोच के बारे में जब शिक्षा मंत्री विजय शाह की प्रतिक्रिया जानना चाही तो उन्होंने चुप्पी साध ली। स्कूल शिक्षा विभाग के आयुक्त नीरज दुबे से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उन्हें इस घटना की जानकारी ही नहीं है। जिला शिक्षा अधिकारी ये कहकर बच निकले कि उन्हें क्यों झगड़े में फंसा रहे हो। दरअसल में शिवराज सिंह सरकार का पूरा शिक्षा तंत्र नई पीढ़ी को लाचार और असहाय बनाने पर तुला हुआ है। प्रदेश की नई पीढ़ी शिक्षा माफिया के हाथों लूटी जा रही है। डिग्रियां कबाड़ने में जुटे युवा बेरोजगारी झेलने के लिए अभिशप्त हैं। जबकि हर असफलता का ठीकरा कांग्रेस की पूर्ववर्ती भ्रष्ट सरकारों पर थोपने में सिद्धहस्त हो चुके भारतीय जनता पार्टी के नेतागण अपनी जवाबदारी स्वीकारने को तैयार ही नहीं हैं। प्रदेश को लगातार कर्ज के दलदल में धकेलने में जुटी ये सरकार सवाल खड़े करने वाले युवाओं से घबराती है ।शायद इसीलिए षड़यंत्र पूर्वक निशा कामरानी जैसी प्राचार्या को राजधानी के प्रमुख स्कूल में तैनात करके ये माडल वह प्रदेश के अन्य स्कूलों के लिए भी प्रस्तुत करने का प्रयास कर रही है। इस स्कूल से निकली छात्राएं जिन 1400 घरों में जाकर संघर्ष की जगह समर्पण का भाव जगाएंगी वहां एक लाचार समाज ही तो जन्म लेगा। सरकारी योजनाओं के लिए कर्ज का साम्राज्य चलाने वाले विदेशी सूदखोरों का भी शायद यही उद्देश्य है जिसे शिवराज सिंह सरकार बखूबी पूरा कर रही है।
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