क्रीमी लेयर का आरक्षण बंद करने पर बाल्मिकी समाज ने लड्डू बांटे

जालंधर में बाल्मिकी समाज ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए लड्डू बांटे


भोपाल,21 अगस्त(प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)। क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर करने और अन्य उपेक्षित वर्गों को आरक्षण में तय कोटा देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरुद्ध आज देश में कई दलित और आदिवासी संगठनों ने ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है। अनुसूचित जाति आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के 1 अगस्त को आए फैसले के विरोध में यह राष्ट्रव्यापी हड़ताल की जा रही है। आज के बंद को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल ने अपना समर्थन देने की घोषणा की है। वामपंथी दलों ने भी हड़ताल के आह्वान का समर्थन किया है। एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी इस बंद को समर्थन दिया है। इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि वो संवैधानिक तौर पर दिए गए एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर को नहीं मानती।
सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ भारत बंद बुलाया गया है, जिसमें राज्यों को एससी श्रेणी के भीतर उप-वर्गीकरण बनाने की अनुमति दी गई है। इसे लेकर देश के कई दलित और आदिवासी संगठनों ने बुधवार को ‘भारत बंद’ का आह्वान किया है। इस बंद का देश में मिला-जुला असर देखने को मिल रहा है। कई जगह हड़ताल से परिवहन और व्यावसायिक गतिविधियां बाधित हुई हैं। वहीं कई राज्यों में शैक्षणिक संस्थान भी बंद हैं। सबसे ज्यादा असर बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में दिख रहा है।
इस विरोध के पीछे 1 अगस्त, 2024 को आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला है। दरअसल, उच्चतम न्यायालय के सात न्यायधीशों की संविधान पीठ में से छह जजों ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है। फैसले का मतलब है कि राज्य एससी श्रेणियों के बीच अधिक पिछड़े लोगों की पहचान कर सकते हैं और कोटे के भीतर अलग कोटा के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकते हैं।पंजाब सरकार के निर्णय पर फैसला सुनाते समय सात में से एक जज ने क्रीमीलेयर के विचार से अपनी असहमति जताई है।
यह फैसला भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया था। इसके जरिए 2004 में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया। बता दें कि 2004 के निर्णय में कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है।
फैसले के दौरान हुई बहस में अदालत ने एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की आवश्यकता पर जोर दिया था। कई जजों ने न्यायालय ने अनुसूचित जातियों के भीतर ‘क्रीमी लेयर’ को अनुसूचित जाति श्रेणियों के लिए निर्धारित आरक्षण लाभों से बाहर रखने की पर राय रखी थी। वर्तमान में, यह व्यवस्था अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर लागू होती है। मुख्य रूप से न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा था कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए।
देशभर में कई सामाजिक संघों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असंतोष जताया है। दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) का तर्क है कि एससी में उप-वर्गीकरण का निर्णय आरक्षण ढांचे और संवैधानिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है। इसने सरकार से अनुरोध किया है कि इस फैसले को खारिज किया जाए, क्योंकि यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है।
कांग्रेस, बसपा, चिराग पासवान की लोजपा और रामदास अठावले की आरपीआई समेत कई पार्टियों ने कोर्ट के फैसले के कई पहलुओं की आलोचना की। चिराग पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी।
देश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे समेत पार्टी नेतृत्व ने उपवर्गीकरण मुद्दे पर बैठक की थी। खरगे के आवास पर हुई बैठक में पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला, महासचिव जयराम रमेश और पार्टी के कानूनी और दलित चेहरे शामिल थे। बैठक के बाद जयराम रमेश ने जाति जनगणना और अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा को हटाने की पार्टी की मांग दोहराई।
इसके अलावा, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि प्रधानमंत्री संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर सकते थे और इसे वहां ला सकते थे। उन्होंने कहा था, ‘प्रधानमंत्री कुछ घंटों में विधेयक बना सकते हैं। इसके लिए आपके पास कई दिन बीत जाने के बावजूद समय नहीं है।’
खरगे ने कहा था कि आरक्षण नीति में कोई बदलाव तब तक नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि ‘देश में अस्पृश्यता की प्रथा बनी रहे। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने क्रीमी लेयर का मुद्दा उठाकर अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों के बारे में नहीं सोचा है। उन्होंने कहा था कि विपक्षी दल इस मुद्दे पर एकजुट हैं।
हालांकि, कांग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों- कर्नाटक के सिद्धारमैया और तेलंगाना के रेवंत रेड्डी ने स्थानीय समीकरणों के चलते इस फैसले का स्वागत किया था। कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा था कि पार्टी का नजरिया दिल्ली में नेतृत्व द्वारा तय किया जाएगा।
उधर, केंद्रीय मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया है। एनडीए के नेता ने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण में जो जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हैं, उन्हें कोटे में कोटा का लाभ दिया जाना चाहिए।
सर्वोच्च अदालत के फैसले के करीब हफ्तेभर बाद 9 अगस्त को एससी और एसटी समुदायों से आने वाले भाजपा सांसदों ने पीएम मोदी से मुलाकात की। करीब 100 सांसदों ने एससी/एसटी आरक्षण के भीतर क्रीमी लेयर अवधारणा के कार्यान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए एक ज्ञापन दिया। उन्होंने आग्रह किया कि इस निर्णय को लागू नहीं किया जाना चाहिए। सांसदों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे इस मुद्दे को हल करेंगे।
उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक हुई जिसमें कहा गया कि संविधान में एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने फैसले के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुझाव दिया था। इसे लेकर कैबिनेट बैठक में चर्चा हुई। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार डॉ. बीआर आंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान से बंधी है। साथ ही संविधान में एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है। (आज तक से साभार).

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