देश भर की भाजपा मिलकर जिताएगी एमपी का चुनाव

-आलोक सिंघई-

बढ़ते जनाधार के बावजूद पिछले चुनाव में सत्ता से बाहर होने का दंश झेल चुकी भारतीय जनता पार्टी इस बार फूंक फूंककर कदम रख रही है। कर्नाटक का चुनाव हारने के बाद तो पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व ने अपने सभी स्तरों को सक्रिय कर दिया है। जिस तरह वह मोदी सरकार की उपलब्धियां हर नागरिक तक पहुंचाने में जुटी है उसी तरह उसने जमीनी नेतृत्व को उभारने की कवायद भी शुरु कर दी है। पिछले चुनाव में अपने अतिलोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का करिश्मा दरकने के बाद तो पार्टी ने सभी संभावित कार्यकर्ताओं को टटोलना शुरु कर ही दिया था। यही वजह है कि छोटे बड़े सभी नेता और कार्यकर्ता इस बार खुद को प्रदेश का नेता साबित करने में जुट गए हैं। पिछले चुनाव में गद्दी छिनने के बाद सार्वजनिक तौर पर- मैं मुक्त हो गया- कहने वाले शिवराज सिंह मनःस्थिति बना चुके हैं कि पार्टी उन्हें अब कोई दूसरा काम देने वाली है। इसके बावजूद पिछले लगभग अठारह सालों में जिस तरह शिवराज मामा को एक ब्रांड के रूप में स्वीकार्यता मिली उसका कोई और चमकदार विकल्प अब तक नहीं उभर पाया है।

आमतौर पर चुनाव के ऐन पहले हर राजनीतिक दल आत्ममंथन करता ही है। पांच सालों के दौरान उभरते नेतृत्व को भी विभिन्न स्तरों पर समायोजित किया जाता है। एमपी में तो लगातार चार कार्यकाल पूरे करने के बाद नई पीढ़ी नेतृत्व की कमान थामने तैयार हो गई है। यही वजह है कि पार्टी का हर जिलाध्यक्ष खुद को भावी विधायक के तौर पर प्रस्तुत करने लगा है। भाजपा संगठन और सरकार की इसी नरमदिली का लाभ लेते हुए प्रमुख विपक्षी कांग्रेस खुद को सत्ता का विकल्प बताने जुट गई है। लगभग डेढ़ साल की कमलनाथ सरकार की नाकामियों को जनता अभी भूली नहीं है। फूट डालने और वादों की रेवड़ियां बांटने की रटी रटाई शैली पर चलते कमलनाथ इस बार भी खुद को भावी मुख्यमंत्री के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं। राहुल गांधी ने तो डेढ़ सौ सीटों की जीत का दावा जताना शुरु कर दिया है। जैसे हवा हवाई वादे कांग्रेस कर रही है और खजाना खाली होने का रोना रो रही है उसे देखकर तो लगता है कि इस बार उसके दावे मतपेटी पर ही दम तोड़ देंगे।

कांग्रेस वचनपत्र समिति के प्रभारी और पूर्व विधानसभा उपाध्यक्ष राजेन्द्र सिंह दावा करते हैं कि भाजपा का तिलिस्म टूट चुका है। दलित, आदिवासी, मुस्लिम, ब्राह्मण, पिछड़ा,श्रमिक, कर्मचारी सभी वर्ग सत्ता से खफा हैं। महिलाओं को कमलनाथ कांग्रेस के वादों ने अपने खेमे में ला खड़ा किया है। वे लाड़ली बहना योजना में अपना नांमांकन तो करा रहीं हैं लेकिन उन्हें पता है कि कमलनाथ जी सरकार में आते ही उनकी ये राशि बढ़ाकर डेढ़ हजार रुपए कर देंगे. साथ में पांच सौ रुपयों में गैस का सिलेंडर भी देंगे। कांग्रेस ने अपनी दस महत्वाकांक्षी योजनाओं को शहरों के आटो रिक्शों पर चिपकाकर जन जागरण शुरु कर दिया है। इसका जवाब भाजपा अभी जमीनी स्तर पर नहीं दे पा रही है। इसकी वजह उसके संगठन में नेतृत्व को लेकर जो विचार विमर्श चल रहा है उसमें ऐसे नेतागण तलाश रहे हैं जिनकी लोकप्रियता को अलग अलग क्षेत्रों में भुनाया जा सके।

यही वजह है कि सागर संभाग में पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव, सिंधिया समर्थक राजस्व मंत्री गोविंद राजपूत और नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेन्द्र सिंह सभी खुद को भावी नेतृत्व के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। भूपेन्द्र सिंह को लगता है कि यदि पार्टी शिवराज सिंह चौहान को केन्द्र में कोई जवाबदारी देती है तो फिर शिवराज जी अपनी गद्दी उन्हें सौप सकते हैं। उनके सलाहकार के रूप में सागर के कद्दावर नेता सुशील तिवारी उनकी राह प्रशस्त करने में जुटे हैं। जबकि इसी तरह गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा हाईकमान संभाले अमित शाह से अपनी नजदीकी के बलबूते खुद को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं। खुद प्रदेश अध्यक्ष विष्णुद्त्त शर्मा पार्टी संगठन और खासतौर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा के प्रतिनिधि के तौर पर खुद को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। कहा जाता है कि विष्णुशर्मा ने हर जिलाध्यक्ष को कह दिया है कि वह स्वयं को भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत करे। भाजपा का प्रवक्ता पद लंबे समय तक संभाले रहे लोकेन्द्र पाराशर तो खुद को भावी विधायक ही मान बैठे हैं। नेतृत्व की इसी फैशन परेड में भाजपा का प्रचार तंत्र फिलहाल बुरी तरह पिछड़ गया है। सिंधिया समर्थक मंत्रियों को लगता है कि ये सरकार तो उनकी कृपा से ही बनी है इसलिए भाजपा संगठन की ओर से उन्हें पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए। जाहिर है हर विधानसभा सीट का दावेदार खुद का महत्व साबित करने में जुटा हुआ है। कांग्रेस इसी दरार के बीच से सरककर सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना चाह रही है।

सिंधिया खेमे के प्रभावी नेता गोविंद सिंह राजपूत के समर्थक देवेन्द्र फुसकेले कहते हैं कि भाजपा हाईकमान को मध्यप्रदेश में देश के आर्थिक सुधारों के साथ कदमताल करने वाले नेतृत्व की जरूरत है।कांग्रेस नेता बोल रहे हैं कि शिवराज सरकार ने प्रदेश को कर्ज के दलदल में फंसा दिया है। उनके इन आरोपों का जवाब प्रदेश का वो आम मतदाता देगा जिसने विकास योजनाओं से जमीनी तस्वीर बदलती देखी है। हमारे नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी दादी श्रीमती विजया राजे सिंधिया की बनाई पार्टी में लौटकर आर्थिक सुधारों की जिन नीतियों का श्रीगणेश किया है वे आगामी चुनावों में ऐतिहासिक जीत की इबारत लिखेंगी। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का सबका साथ सबका विकास उद्घोष भाजपा की रग रग में समाया है। जो लोग आज भाजपा में फूट के बीज बोने का ख्वाब पाले बैठे हैं उन्हें जल्दी ही पता चल जाएगा कि जनता की आवाज अपनी विजय का उपकरण खुद ही तैयार कर लेती है।

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