फर्जी सेठ बनकर समृद्धि की राह में रोड़ा बना था लूजर भास्कर

भोपाल,4 जुलाई (प्रेस इंफार्मेशन सेंटर)।आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय समेत देश की तमाम एजेंसियां इन दिनों शैल कंपनियों के सहारे काला धन सफेद करके उद्योगपति बन बैठे जेबकतरों की खाना तलाशी ले रहीं हैं। केरल के गोरखधंधेबाजों के बाद देश के अन्य प्रांतों में भी इन ठगों की धरपकड़ जारी है। मुद्रा को खोखला करने वाले इन फर्जी उद्योगपतियों से जूझने में राज्यों की सरकारें सबसे बड़ा अड़ंगा साबित हो रहीं हैं। पुलिस राज्य का विषय है और पुलिस की आंखें मूंदने के लिए काले धन के इन धोबियों ने राजनेताओं से गहरी सांठगांठ कर ली है। गुजरात के अहमदाबाद में पंजीकृत कराई गई डीबी कार्प लिमिटेड और इसके सहयोगी संस्थानों पर डाले गए छापे में पता चला कि बैंकों से लगभग 28 हजार करोड़ रुपए का कर्ज लेकर भास्कर समूह ने शैल कंपनियों के सहारे लगभग छह हजार करोड़ रुपयों का सालाना टर्नओवर हासिल कर लिया था। देश के वित्तीय ढांचे की आंखों में धूल झोंकने के लिए इस समूह ने बाजार से मंहगी दर पर निवेश जुटाया और पुलिस के रिश्वतखोरों की सहायता से इन छोटे निवेशकों की पूंजी हड़पकर उसे अपनी आय बता दिया.जबकि हकीकत में ये समूह देश के संसाधनों का लूजर बनकर सामने आया है.

डीबी कार्प लिमिटेड में आ रहे विदेशी निवेश की जांच करने पर पता चला है कि कांग्रेस नेता दिग्गी के सहयोग से शुरु किए गए इस गोरखधंधे में भाजपा के कई बड़े दिग्गज भी शामिल हैं। सत्ताधीशों का ये गिरोह राज्य के खजाने से फर्जी योजनाओं के नाम पर मोटी रकमें निकालकर इस समूह को मुहैया कराता रहा है। आयकर अधिनियम की धारा 132 में जो तलाशी ली गई उससे इस काले कारोबार की पोल खुल गई है। समूह के मुंबई, दिल्ली, भोपाल, इंदौर,जयपुर, कोरबा,, नोयडा, अहमदाबाद, समेत लगभग 40 परिसरों की तलाशी ली गई है। लगभग सात दिनों तक डेरा डाले रहे अन्य प्रदेशों से भेजे गए अधिकारियों ने इस गोरखधंधे के पूरे दस्तावेज जब्त कर लिए हैं। अपने समाचार पत्र समूह और राज्य के गृहमंत्री के सहारे दबाव बनाने के प्रयास भी नाकाम होने के बाद अब समूह के कर्ताधर्ता संघ के दरबार में दंड बैठक लगाने की जुगत भी बिठा रहे हैं।

सरे चौराहे कथित प्रगति की पोल खुलने से शेयर मार्केट में औंधे मुंह गिरने लगा कंपनी का शेयर

यह समूह मीडिया, बिजली, कपड़ा और रियल एस्टेट के अलावा कई अन्य धंधों से भी अपनी आय होना दिखाता रहा है। जबकि इसका मुख्य धंधा मनी लांड्रिंग(धनशोधन) का रहा है। समूह ने अपना सालाना कारोबार 6000 करोड़ रुपए दिखाया है।समूह से जुड़े उद्योगपति नमक, अगरबत्ती, साबुन, प्रिंटिंग आदि तमाम धंधों से अपनी आय दिखाते रहे हैं।प्रेस को बुद्धू समझने वाले इस गिरोह के सदस्य लोटा बाल्टियां बांटते रहते है विदेशों में अय्याशी करने वाले इन कारोबारियों की जान इन दिनों सांसत में फंसी हुई है क्योंकि देश के मुद्रा तंत्र से काले धन की धरपकड़ का शिकंजा भारत सरकार की पहल पर ही कसा गया है।

सूत्रों के अनुसार समूह की फ्लैगशिप कंपनी डीबी कॉर्प लिमिटेड है, जो दैनिक भास्कर समाचार प्रकाशित करती है। कोयला आधारित बिजली उत्पादन व्यवसाय मेसर्स डीबी पावर लिमिटेड के नाम से किया जाता है। सरकारी सूत्र कहते हैं कि फर्जी खर्च और शेल संस्थाओं की आड़ में समूह ने सरसरी नजर में लगभग सात सौ करोड़ की टैक्स चोरी की है। समूह ने अपने कर्मचारियों के साथ शेयर धारकों और निदेशकों के रूप में कई कागजी कंपनियां बनाई हैं। इस तरह से निकाले गए धन को मॉरीशस स्थित संस्थाओं के माध्यम से शेयर प्रीमियम और विदेशी निवेश के रूप में विभिन्न व्यक्तिगत और व्यावसायिक खातों में वापस भेज दिया गया। परिवार के सदस्यों के नाम पनामा पेपर लीक मामले में भी सामने आए। विभागीय डेटा बेस बैंकिंग पूछताछ और अन्य तरीकों से पूछताछ का विश्लेषण करने के बाद तलाशी का सहारा लिया गया।

जांच से जुड़े सूत्र बताते हैं कि डीबी कार्प लिमिटेड के रूप में समूह को कमाई का एक नया साधन मिल गया था। शासन की अनुमति प्राप्त किए बगैर समूह ने मध्यप्रदेश हाऊसिंग बोर्ड से वह जमीन खरीद ली थी। खरीद का अनुबंध करने वाली कंपनी से मिलता जुलता नाम वाली नई कंपनी बनाकर मॉल खरीदा गया। बाद में आकार ली कंपनी देश भर में मॉल बनाने का दावा करके लोन पर लोन लेती चली गई।लगभग ढाई सौ करोड़ रुपयों से बने डीबी कार्प लिमि. पर आज हजारों करोड़ रुपयों का कर्ज है। ये राशि समूह की संपत्तियों से कई गुना अधिक है।इस राशि से समूह ने आय तो की लेकिन उस पर न तो टैक्स दिया न जुर्माना भरा।मुनाफे को शैल कंपनियों में घुमाकर और अधिक लोन लिया जाता रहा।

बड़े समाचार प्रतिष्ठान देश के वित्तीय प्रबंधकों को धमकाने की आड़ बन गए थे.

कंपनी ने मॉल बनाने के नाम पर भारी लोन उठाया है।बताते हैं कि इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक से सितंबर 2011 में 1,080,000,000रुपए, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक से अगस्त 2010 में 500,000,000 रुपए,आईडीबीआई बैंक से 1,890,000,000 रुपए,राबो इंडिया फाईनेंस लिमि.से 1,400,000,000रुपए,एबीएन एंब्रो बैंक एनवी से जून 2009 में 250,000,000 रुपए,यूको बैंक से चल संपत्तियों पर 120,000,000 रुपए,स्टेट बैंक आफ इंदौर से फरवरी 2010 में 517,000,000 रुपए, यस बैंक लिमिटेड से 700,000,000 रुपए, स्टेट बैंक आफ इंदौर से 20,000,000 रुपए,स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक से 250,000,000 रुपए, आईडीबीआई बैंक से 700,000,000रुपए, 31इंफोटेक ट्रस्टीशिप सर्विसेज लिमिटेड से 1,000,000,000 रुपए,एगको फाईनेंस जीएमबीएच से 1,778,500,000 रुपए, आईएल एंड एफएस ट्रस्ट कंपनी लिमिटेड से अक्टूबर 2007 में 250,000,000 रुपए,इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक आफ इंडिया लिमिटेड से फरवरी 2008 में 200,000,000 रुपए लोन के नाम पर जुटाए गए। ये तो प्राप्त जानकारी का बहुत छोटा हिस्सा है।

जासूस बादशाह समाचार पत्र के ब्यूरो प्रमुख अनिल तिवारी बताते हैं कि समूह की वित्तीय अनियमितताओं पर देश की जांच एजेंसियां लंबे समय से निगाह रख रहीं थीं।कई दस्तावेजों को एकजुट करने का काम चल रहा है।अभी तक जो जानकारियां सामने आईं है उससे वित्तीय अनियमितताओं की केवल सरसरी जानकारी मिली है।इससे जुड़ी अन्य जानकारियां सामने आने पर पता चलेगा कि किस तरह उद्योग खड़े करने के नाम पर देश में ही धनशोधन की फेक्टरी चलाई जा रही थी।

लूटो और भागो की तर्ज पर काम करता रहा समूह जिद करो दुनिया बदलो का टैग वाक्य सुनाता रहा लेकिन उसने न तो दुनिया बदली न ही देश को समृद्ध बनाया। बैंकों का पैसा हड़पकर समूह के कर्ता धर्ता अपने रिश्तेदारों के घरों में ये जायदाद छुपाते रहे।प्रदेश के नेता और अफसर तो समूह के दरवाजे पूंछ हिलाते रहे लेकिन पहली बार देश की जांच एजेंसियों ने तिजोरी में बंद लक्ष्मी को आजाद कराने की पहल की है। निश्चित तौर पर ये पहल कई करोड़ गरीबों के औद्योगिक संस्थान रोशन करेगी और हजारों करोड़ घरों में रोजगार के दीप जलाएगी।

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